यूपी का विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh Election 2022) आखिरी फेज में पहुंच चुका है. 7 मार्च को सातवें चरण के लिए वोट डाले जाएंगे. 9 जिलों की 54 सीटों पर 613 उम्मीदवार हैं. इस फेज की सबसे दिलचस्प बात है कि पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी और अखिलेश यादव के आजमगढ़ में मतदान होना है. मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास, मऊ सदर से सुहेलदेव पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं. ऐसे में दो विधानसभा चुनावों के नतीजों से समझते हैं कि इन 54 सीटों पर कौन किस पर भारी रहा?
आजमगढ़, मऊ, जौनपुर, गाजीपुर, चंदौली, वाराणसी, मिर्जापुर, भदोही और सोनभद्र में 7 मार्च को मतदान है.
जैसे मोदी का मजबूत गढ़ वाराणसी-वैसे अखिलेश के लिए आजमगढ़
साल 2012 और 2017 के नतीजे बताते हैं कि जैसे पीएम मोदी के लिए वाराणसी मजबूत गढ़ है. वैसे ही अखिलेश यादव के लिए आजमगढ़ हैं. 2012 में अखिलेश की सरकार बनी थी. तब उन्हें आजमगढ़ की 10 में से 9 सीट मिली. वाराणसी की सिर्फ 1 सीट. 2017 में मोदी लहर में भी अखिलेश यादव ने आजमगढ़ की 5 सीटों पर कब्जा किया. वाराणसी से एक भी सीट नहीं जीत सके.
पीएम नरेंद्र मोदी का गढ़ वाराणसी है. साल 2012 में अखिलेश की सरकार बनी, लेकिन उस माहौल में भी बीजेपी ने वाराणसी की 3 सीटों पर कब्जा किया. लेकिन आजमगढ़ की एक भी सीट नहीं जीत सकी. 2017 में मोदी लहर में बीजेपी ने वाराणसी की 6 सीटों पर कब्जा किया था. आजमगढ़ की फूलपुर विधानसभा सीट भी जीत ली थी.
अखिलेश राज आया या मोदी लहर, बीएसपी पर नहीं पड़ा फर्क
सातवें फेज में जिन 54 सीटों पर मतदान होना है, उन पर एक दिलचस्प आंकड़ा ये भी है कि 2012 में अखिलेश की सरकार बनी और 2017 में मोदी लहर थी, लेकिन दोनों बार बीएसपी की सीटों पर बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ा. 2012 में बीएसपी ने 7 और 2017 में 6 सीटों पर कब्जा किया.
साल 2012 में मायावती ने वाराणसी से 2, सोनभद्र, मिर्जापुर, मऊ, चंदौली और आजमगढ़ के मुबारकपुर से एक-एक सीट अपने खाते में की. 2017 में आजमगढ़ से 4, मऊ और जौनपुर से एक-एक सीट. यानी 2017 में बीएसपी को मोदी लहर का फायदा मिला और अखिलेश के गढ़ आजमगढ़ से 4 सीटों पर जीत दर्ज की.
2017 में बीजेपी ने 54 में से 29 सीटों पर कब्जा किया, जिसमें 13 सीटें ऐसी थी, जिनपर 0.30% से लेकर 10% वोटों के मार्जिन से जीत हुई. सभी 29 सीटों की बात करें तो सबसे बड़ी जीत मिर्जापुर के चुनार से 62 हजार वोटों की थी.
अपना दल और सुहेलदेव पार्टी 54 में से कई सीटों पर प्रभावी
बीजेपी से गठबंधन करने वाली अपना दल और एसपी के साथ चुनाव लड़ने वाली सुहेलदेव पार्टी का 54 में से कई सीटों पर प्रभाव है. 2012 में अपना दल की अनुप्रिया पटेल ने वाराणसी से जीत दर्ज की थी. 5 साल बाद साल 2017 में जौनपुर, वाराणसी, मिर्जापुर और सोनभद्र से एक-एक सीट मिलाकर 4 सीटें जीत ली. वहीं सुहेलदेव ने गाजीपुर से 2 और मोदी के गढ़ वाराणसी से 1 सीट पर जीत दर्ज की.
54 सीटों पर मुस्लिम आबादी अन्य जिलों की तुलना में कम
सातवें चरण में 9 जिलों की 54 सीटों पर मतदान है, जिसमें मऊ में सबसे ज्यादा 20% मुस्लिम आबादी है. आजमगढ़ में 16% और वाराणसी में 15% मुस्लिम आबादी है.
2017 में मऊ की सभी 4 सीटों में से 4 पर बीजेपी काबिज हुई. हालांकि 3 में से एक दारा सिंह चौहान थे, जो अब एसपी के साथ हैं. चौथी सीट पर बीएसपी से मुख्तार अंसार जीते थे. मऊ सदर से 3% वोट मार्जिन से सीट अपने नाम की. 2012 में 4 में से मऊ की घोसी और मोहम्मदाबाद सीट पर एसपी ने कब्जा किया. मधुबन सीट पर बीएसपी और मऊ सदर से कौमी एकता दल के मुख्तार अंसारी जीते.
यूपी चुनाव के आखिरी चरण में मायावती दे सकती हैं टक्कर?
उत्तर प्रदेश के आखिरी दो चरणों में मायावती फाइट में नजर रही हैं. इसकी एक बड़ी वजह उन क्षेत्रों में मतदान है, जहां एससी वोटर की संख्या ज्यादा है. सातवें फेज में जिन 9 जिलों में चुनाव है, उसमें सोनभद्र, मिर्जापुर, आजमगढ़, चंदौली और मऊ ऐसी जगहें पर जहां पर अनुसूचित जाति का वोटर औसत 29% है.
सोनभद्र में सबसे ज्यादा 41% अनुसूचित जाति का वोटर है. यहां 2012 में एसपी ने 2, बीएसपी ने 1 और एक निर्दलीय उम्मीदवार जीता था. हालांकि सभी जीतने वाले उम्मीदवार अनुसूचित जाति से थे. साल 2017 में सोनभद्र से बीएसपी और एसपी का सूपड़ा साफ हो गया. 3 सीटों पर बीजेपी और एक पर अपना दल ने कब्जा किया. हालांकि अबकी बार समीकरण कुछ बदले हुए हैं.
योगी सरकार में मंत्री रहे दारा सिंह चौहान एसपी के साथ है. उनके अलावा सुहेलदेव पार्टी से ओपी राजभर, धनंजय सिंह, दुर्गा प्रसाद यादव, मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास जैसे कई बड़े नाम मैदान में हैं. ऐसे में देखना होगा कि आखिरी चरण के चुनाव में ये दिग्गज अपनी पार्टी के लिए कितनी सीटों का इजाफा करा पाते हैं.
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