कर्नाटक विधानसभा चुनाव (Karnataka Assembly Election) में बीजेपी को करारी शिकस्त मिली. हार के इस घाव पर मरहम लगाने का काम किया उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव (UP Nikay Chunav) के नतीजों ने, जहां पर बीजेपी ने मेयर चुनाव में क्लीनस्वीप करते हुए प्रदेश के 17 नगर निगमों में कमल का फूल खिला दिया है.
शुरुआती रुझानों में ही बीजेपी 17 में से 15 सीटों पर आगे चल रही थी. मेरठ और आगरा में बीजेपी को प्रतिद्वंद्वियों से कड़ी टक्कर मिली, लेकिन अंत में यह दोनों सीटें भी बीजेपी की झोली में गई.
लोकसभा से लेकर विधानसभा तक लगातार हार का सामना कर रही एसपी को निकाय चुनाव में भी शिकस्त का सामना करना पड़ा. सहारनपुर मुरादाबाद और आगरा समेत कई नगर निगमों में एसपी के मेयर पद के उम्मीदवार तीसरे या चौथे स्थान पर रहे जो एसपी के खराब प्रदर्शन की बानगी है.
प्रदेश में दो विधानसभा में हुए उपचुनाव में भी एसपी का कुछ ऐसा ही प्रदर्शन रहा. रामपुर के स्वार विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में अपना दल सोनेलाल के सफीक अहमद अंसारी ने समाजवादी पार्टी के अनुराधा चौहान को हराया और मिर्जापुर के छानबे विधानसभा सीट पर अपना दल सोनेलाल की रिंकी कौल ने समाजवादी पार्टी की कीर्ति कॉल को 9 हजार से ज्यादा मतों के अंतर से हराया.
मुस्लिम मतदाताओं ने बनाई एसपी से दूरी?
उत्तर प्रदेश में मेरठ, मुरादाबाद, सहारनपुर और बरेली समेत कई ऐसे नगर निगम है जहां पर चुनाव के दौरान मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में रहते हैं. इन सब जगहों पर एसपी का बहुत खराब प्रदर्शन देखने को मिला. सहारनपुर से बीएसपी के कद्दावर नेता इमरान मसूद ने अपनी भाभी खदीजा मसूद को चुनाव लड़वाया था. शुरुआती रुझान में बीएसपी से चुनाव लड़ने वाली खदीजा कुछ समय के लिए बढ़त भी बनाए हुए थी लेकिन धीरे-धीरे बीजेपी प्रत्याशी अजय कुमार ने इस अंतर को खत्म कर अपनी बढ़त बनाकर जीत दर्ज कर ली. एसपी के मेयर प्रत्याशी नूर हसन तीसरे स्थान पर रहे.
कुछ ऐसे ही समीकरण मुरादाबाद में देखने को मिले जहां पर एक कड़े मुकाबले में बीजेपी ने कांग्रेस को 3589 वोटों से हराकर मेयर सीट पर कब्जा किया. एसपी का प्रदर्शन यहां भी निराशाजनक रहा और पार्टी चौथे पायदान पर खिसक गई. पार्टी प्रत्याशी सैयद रईसुद्दीन को मात्र 13441 मत मिले.
वहीं अगर मेरठ की बात करें तो 2017 के मुकाबले इस बार मेयर चुनाव में समीकरण बदले हुए नजर आ रहे थे. 2017 में यह सीट बीएसपी के झोली में गई थी वहीं इस बार बीजेपी ने बाजी मार ली है.
अप्रत्याशित तौर पर असादुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम यहां दूसरे नंबर पर है. तीसरे पायदान पर आने वाली एसपी ने इस बार अखिलेश यादव के खास माने जाने वाले अतुल प्रधान पर भरोसा जताते हुए उनकी पत्नी सीमा प्रधान को टिकट दिया था.
एसपी के इस निराशाजनक प्रदर्शन का बड़ा कारण मुस्लिम वोटरों में पार्टी के प्रति नाराजगी और उनके वोटों का बट जाना है. बीएसपी ने 17 में से 11 मुस्लिम प्रत्याशी मेयर चुनाव में खड़े किए थे और मुस्लिम मतदाताओं का इस बार रुझान बीएसपी की तरफ देखने को मिला. शायद यही कारण था कि बीएसपी मेयर चुनाव में दो जगह बीजेपी से कड़े मुकाबले में हार कर दूसरे नंबर पर है. मेरठ मेयर चुनाव में जहां बीएसपी का मजबूत प्रत्याशी नहीं था वहां पर मुस्लिम मतदाताओं ने ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम पर भरोसा दिखाया. विशेषज्ञों की माने तो आगे आने वाले लोकसभा चुनाव चुनाव में यह रुझान एसपी के लिए चिंताजनक साबित हो सकते हैं वही मुस्लिम वोटों में बंटवारे का सीधा फायदा बीजेपी को मिलेगा.
एसपी की हार: कमजोर चुनावी प्रचार, गठबंधन में समन्वय की कमी
उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव में बीजेपी की तरफ से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत सभी शीर्ष नेताओं ने जमकर प्रचार किया. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक दिन में तीन से चार जनसभाएं कर पार्टी के प्रचार को धार दी वहीं दूसरी तरफ एसपी और अखिलेश यादव ने अप्रैल के अंतिम हफ्ते में चुनाव प्रचार शुरू किया और कुछ जिलों में जनसभाएं कर प्रचार को बीजेपी के मुकाबले काफी सीमित रखा.
SP और राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) के गठबंधन का फायदा भी चुनाव में देखने को नहीं मिला. अखिलेश यादव और आरएलडी मुखिया जयंत चौधरी को जनसभाओं में एक साथ ना देखे जाने पर राजनीतिक गलियारों और मीडिया में गठबंधन में दरार उत्पन्न होने की चर्चाएं आम थी.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कई जगह एक ही सीट पर एसपी और आरएलडी के अलग-अलग उम्मीदवार खड़े किए जाने से गठबंधन में एक समन्वय में की भी कमी देखी गई. दोनों पार्टियों के शीर्ष नेताओं ने हालांकि खुलकर इन मुद्दों के बारे में बातचीत नहीं की लेकिन समन्वय की इस कमी की चर्चाएं जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं के बीच जरूर सुनी गई.
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