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NDA की द्रोपदी मुर्मू के जवाब में विपक्ष की मार्गरेट अल्वा?

Vice President Election 2022: BJP की लाइन पर ही विपक्ष ने मार्गरेट अल्वा के जरिए मास्टर स्ट्रोक खेलने की कोशिश की.

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उपराष्ट्रपति पद के लिए विपक्षी दलों की तरफ से राजस्थान की पूर्व राज्यपाल मार्गरेट अल्वा को उम्मीदवार बनाया गया है. एक दिन पहले जेपी नड्डा ने भी ऐलान किया कि पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ एनडीए की तरफ से प्रत्याशी होंगे. राजनीतिक करियर की बात करें तो दोनों उम्मीदवार वकील, केंद्रीय मंत्री और राज्यपाल रहे हैं. सबसे पहले मार्गरेट अल्वा की बात करते हैं.

मार्गरेट अल्वा: कर्नाटक में जन्म, 4 राज्यों की राज्यपाल-केंद्रीय मंत्री रहीं

कर्नाटक के मंगलौर में जन्मीं मार्गरेट अल्वा 1974 से लगातार 4 बार राज्यसभा के लिए और 1999 में लोकसभा के लिए निर्वाचित हुईं.  1984 में राजीव गांधी सरकार में संसदीय मामलों का केंद्रीय राज्य मंत्री बनाया गया. बाद में मानव संसाधन विकास मंत्रालय में युवा मामले तथा खेल, महिला एवं बाल विकास के प्रभारी मंत्री का दायित्व दिया गया.

4 राज्यों गोवा, गुजरात, राजस्थान और उत्तराखंड की राज्यपाल भी रहीं. उन्हें एक मुखर वक्ता के तौर पर भी देखा जाता है. साल 2008 में विधानसभा चुनाव के दौरान अल्वा ने कांग्रेस हाईकमान पर टिकट बेचने का आरोप लगाया था. हालांकि बाद में उन्हें कांग्रेस ने महासचिव पद से हटा दिया.
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जगदीप धनखड़: राजस्थान में जन्म, 1 राज्य के राज्यपाल-केंद्रीय मंत्री रहे

अब बात पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ की. राजस्थान के झुंझुनूं में जन्में धनखड़ एक मझे हुए वकील रहे हैं. राजस्थान हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में वकालत की है. साल 1989 में जब 9वीं लोकसभा के चुनाव हुए तो वो जनता दल के टिकट पर झुंझुनू संसदीय क्षेत्र से सांसद बने. 1990 में केंद्रीय मंत्री का पद मिला.

इसके बाद 1993 से 1998 तक अजमेर के किशनगढ़ विधानसभा क्षेत्र से राजस्थान विधानसभा के लिए चुने गए. इसके बाद कांग्रेस का हाथ थाम लिया, लेकिन लोकसभा में मिली हार के बाद 2003 में बीजेपी में शामिल हो गए. उन्हें 2019 में पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनाया गया.
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जगदीप धनखड़ के जरिए किसान-जाट समुदाय को साधने की कोशिश

दोनों उम्मीदवारों के राजनीतिक करियर की बात तो हो गई, लेकिन सवाल कि आखिर इन दोनों उम्मीदवारों को ही क्यों चुना गया? सबसे पहले जगदीप धनखड़ की बात कर लेते हैं. ये जाट समुदाय से आते हैं. किसान आंदोलन के बाद जब यूपी में चुनाव था, तब बीजेपी को डर था कि पश्चिम यूपी में जाटों की नाराजगी न झेलनी पड़ जाए. हालांकि पार्टी को ज्यादा नुकसान नहीं हुआ. लेकिन नाराजगी का डर शायद नहीं गया.

राजस्थान सहित हरियाणा में जाटों की अच्छी संख्या है. ऐसे में बीजेपी को लगा हो कि इससे जाटों की नाराजगी कुछ कम हो सकती है. दूसरा मैसेज किसानों को दिया गया. जगदीप धनखड़ के नाम का ऐलान करने के दौरान जेपी नड्डा बार-बार उन्हें किसान पुत्र कहकर संबोधित कर रहे थे. यानी वो मैसेज देना चाहते थे कि एनडीए ने किसान के बेटे को उपराष्ट्रपति पद के लिए चुना है. इससे किसान आंदोलन से हुआ डेंट कुछ हद तक ठीक हो जाए.

तीसरी वजह है कि राज्यसभा में किसी ऐसे व्यक्ति की जरूरत थी जो मुखर वक्ता और कानून का जानकार हो. ऐसे में धनखड़ फिट बैठते हैं. उन्होंने कानून की पढ़ाई की है. सुप्रीम कोर्ट में वकील रहे हैं. मुखर वक्ता होने का उदाहरण उनके बयानों से मिल जाता है, जिसमें वो लगातार ममता बनर्जी की सरकार पर निशाना साधते रहे हैं. उन्होंने जिस तरह से ममता शासन पर सवाल उठाए हैं उसे देखकर उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार के लिए उनके नाम को रिवार्ड के तौर पर भी देखा जा रहा है.

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बीजेपी की लाइन पर विपक्ष का अल्वा के जरिए मास्टर स्ट्रोक?

अब बात मार्गरेट अल्वा की. अल्वा धर्मांतरण बिल लाने पर बीजेपी सरकार के खिलाफ मुखर रहीं. उन्होंने बीजेपी के नेतृत्व वाली कर्नाटक सरकार की जमकर आलोचना की थी. हालांकि विपक्षी दलों ने बीजेपी की लाइन पर ही मास्टर स्ट्रोक खेलने की कोशिश की है. बीजेपी ने आदिवासी समुदाय से आने वाले महिला को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया, वैसे ही कांग्रेस ने उपराष्ट्रपति पद के लिए महिला उम्मीदवार को आगे किया. अभी तक कोई महिला उप राष्ट्रपति नहीं रही है.

मार्गरेट अल्वा के जरिए कर्नाटक चुनाव में भी फायदा मिल सकता है. अल्वा ईसाई हैं. ऐसे में अल्पसंख्यक समुदाय से उम्मीदवार बनाए जाने पर मुस्लिम और अन्य अल्पसंख्यकों को अपनी ओर खींचने में कांग्रेस को मदद मिल सकती है. नाम का ऐलान करते हुए शरद पवार ने कहा कि 17 विपक्षी दलों ने मार्गरेट अल्वा के नाम पर सहमति दी है.

जगदीप धनखड़ की तरह ही मार्गरेट अल्वा ने वकील के तौर पर करियर की शुरुआत की. हालांकि धनखड़ की तुलना में मार्गरेट अल्वा का राजनीतिक करियर ज्यादा रहा है. धनखड़ एक राज्य तो अल्वा 4 राज्यों की राज्यपाल रह चुकी हैं. केंद्रीय मंत्री के तौर पर धनखड़ से ज्यादा मार्गरेट अल्वा का अनुभव रहा है. ऐसे में अब देखना होगा कि उपराष्ट्रपति चुनाव नतीजों में कौन भारी पड़ता है.

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