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किसानों के एक साल के आंदोलन के बाद आखिरकार मोदी सरकार ने किसान बिल वापस लेने का फैसला लिया है. मोदी सरकार के इस फैसले के बाद किसानों के रिएक्शन भी सामने आ रहे हैं.भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) ने कहा-
जब तक तीनों कृषि कानून संसद में वापस नहीं होते हैं तब तक किसान वहीं पर है. यह किसानों की जीत है. इस जीत का श्रेय उन 700 किसानों को जाता है, जिनकी एक साल के अंदर मृत्यु हुई। यह संघर्ष और लंबा चलेगा और जारी रहेगा. वह संसद में जाएं और जो भी कार्यवाही है (कृषि कानून वापस लेने की) उसको पूरा करें. आज संयुक्त किसान मौर्चा की बैठक है, उसमें सारी चीजें तय होगीं. हमारी एक कमेटी बनेगी जो अलग-अलग मुद्दों पर भारत सरकार से बात करेगी
भारतीय किसान यूनियन (भानु) के राष्ट्रीय अध्यक्ष भानु प्रताप सिंह ने कहा- 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की जो घोषणा की है मैं उसका स्वागत करता हूं. 75 साल किसान विरोधी नीतियों के कारण देश का किसान कर्जदार हो गया है, उसे फसलों के दाम नहीं मिले हैं.
इसके लिए किसान आयोग का गठन किया जाए, इसलिए किसानों का कर्जा माफ करने की घोषणा करके किसान आयोग का गठन कर दो प्रधानमंत्री जी और किसान आयोग को फसलों के दाम तय करने का अधिकार दे दिए जाएं.
संयुक्त किसान मोर्चा ने एक नोट जारी कर लिखा है-
भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने जून 2020 में पहली बार अध्यादेश के रूप में लाए गए सभी तीन किसान-विरोधी, कॉर्पोरेट-समर्थक काले कानूनों को निरस्त करने के भारत सरकार के फैसले की घोषणा की है. उन्होंने गुरु नानक जयंती के अवसर पर यह घोषणा करने का निर्णय लिया. संयुक्त किसान मोर्चा इस निर्णय का स्वागत करता है और उचित संसदीय प्रक्रियाओं के माध्यम से घोषणा के प्रभावी होने की प्रतीक्षा करेगा. अगर ऐसा होता है, तो यह भारत में एक वर्ष से चल रहे किसान आंदोलन की ऐतिहासिक जीत होगी. हालांकि, इस संघर्ष में करीब 700 किसान शहीद हुए हैं. लखीमपुर खीरी हत्याकांड समेत, इन टाली जा सकने वाली मौतों के लिए केंद्र सरकार की जिद जिम्मेदार है.
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