सहयोगी दलों की तीखे तेवरों का सामना कर रही बीजेपी डैमेज-कंट्रोल की कोशिश में जुट गई है. जिम्मेदारी संभाली है खुद पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने जो एनडीए के तमाम सहयोगियों से गिले शिकवे दूर करने निकले हैं. नाराजगी दूर करने के लिए मान-मुनव्वल के अलावा 2019 आम चुनावों के सीट शेयरिंग फॉर्मूले पर चर्चा भी शाह की योजना में शामिल है.
‘ऑपरेशन बिहार’
3 जून को लोक जनशक्ति पार्टी प्रमुख रामविलास पासवान से अमित शाह की मुलाकात इस सिलसिले की पहली कड़ी थी.
हाल ही में लालू प्रसाद यादव के बेटे और बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव की तारीफ कर पासवान ने सियासी गलियारों में हलचल मचाई थी. इसके बाद बीजेपी अध्यक्ष ने उनसे मुलाकात की. मुलाकात का मुद्दा दलितों के खिलाफ हो रहे अपराध पर अध्यादेश और बिहार को विशेष राज्य का दर्जा जैसी मांग बताया गया, लेकिन मकसद यही था कि पासवान आने वाले दिनों में नाराजगी का कोई सिग्नल ना दें.
बिहार बीजेपी भी अपने तीनों सहयोगियों यानी नीतीश कुमार के जेडीयू, पासवान की लोकजनशक्ति पार्टी और उपेंद्र कुशवाह की राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी के साथ बैठक करेगी.
ठाकरे की ठसक
संपर्क से समर्थन कार्यक्रम के तहत मुंबई पहुंचे अमित शाह 6 जून को शिवसेना सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से मुलाकात करने वाले हैं. इस मुलाकात पर सबकी नजर है.
पालघर उपचुनाव में बीजेपी के खिलाफ लड़ी शिवसेना 2019 में भी अलग लड़ने की बात कह चुकी है. शाह-उद्धव की मुलाकात तय होने के बाद भी सेना के मुखपत्र ‘सामना’ में संपर्क से समर्थन अभियान की खिल्ली उड़ाई गई है. लेकिन इसके बावजूद अमित शाह का उद्धव ठाकरे से मिलना दिखाता है कि बीजेपी बैकफुट पर है.
7 जून को शाह चंडीगढ़ में ‘फ्लाइंग सिख’ मिल्खा सिंह से मिलेंगे. इस दौरान वो अकाली दल के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल से भी मिलेंगे. हाल में अकाली दल ने भी बीजेपी पर सहयोगियों की अनदेखी का आरोप लगाया था.
मोदी-मैजिक का भरोसा
उपचुनावों में लगातार जारी बीजेपी के फ्लॉप शो और उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में पड़ी विपक्षी महागठबंधन की बुनियाद ने बीजेपी आलाकमान की नींद उड़ा रखी है. हाल ही में सरकार ने शामिल रही टीडीपी ने एनडीए का साथ छोड़कर बीजेपी पर सहयगियों को साधे रखने का दबाव बढ़ा दिया था.
यूपीए-2 के दौरान कांग्रेस को ‘गठबंधन-धर्म’ का पाठ पढ़ाने वाली बीजेपी खुद ही इस मोर्चे पर हिचकोले खा रही है. लेकिन अमिल शाह के संपर्क अभियान के बावजूद जानकारों का मानना है कि बीजेपी लोकसभा चुनाव के लिए अपनी शर्तों से ज्यादा समझौता नहीं करेगी.
बीजेपी को अब भी लगता है कि मोदी-मैजिक का जो फायदा उसके पास है वो 2019 में किसी के पास नहीं होगा. लिहाजा बीजेपी क्षेत्रिय दलों के साथ विधानसभा बनाम लोकसभा फॉर्मूले पर समझौता चाहेगी. यानी विधानसभा में ज्यादा सीटें आपकी लेकिन लोकसभा में हमारी.
लेकिन ये तय है कि तेजी से करीब आते विरोधियों और बिदकते सहयोगियों ने बीजेपी को बैकफुट पर धकेल दिया है और आने वाले दिनों में उसे कई समझौते करने पड़ेंगे.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)