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येदियुरप्पा तो झांकी, BJP में कलह की कहानी बाकी, 3 महीने में तीसरा CM नपा

यूपी-राजस्थान बीजेपी में रार, बंगाल में पार्टी तार-तार, सहयोगियों से भी तकरार

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पार्टी विद ए डिफरेंस, सबसे अनुशासित पार्टी, सत्ता नहीं संगठन का महत्व....अक्सर अपनी तारीफ में ये बातें कहने वाली पार्टी, कांग्रेस ही क्या विपक्ष मुक्त भारत का अभियान चला रही पार्टी के अंदर झगड़े का आलम देखिए कि करीब तीन महीने में पार्टी के तीन राज्यों के सीएम को पद छोड़ना पड़ा है. न, न किसी विपक्षी की साजिश नहीं थी, सारी उठापटक पार्टी के अंदर ही हो रही है. जिन येदियुरप्पा (B. S. Yediyurappa) ने दो साल पहले JDS-कांग्रेस की सरकार का साम-दंड-भेद से तख्तापलट किया था, आज उन्हें ही तख्त से उतार दिया गया.

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कर्नाटक

दो साल से बीजेपी कनार्टक में बीएस येदियुरप्पा के नेतृत्व में सरकार चला रही थी लेकिन 26 जुलाई को बीएस येदियुरप्पा ने भावुक अंदाज में विधानसभा में अपने इस्तीफे का ऐलान कर दिया. हालांकि बीएस येदियुरप्पा इस्तीफा दे सकते हैं, इसकी भूमिका पिछले दो महीने से बन रही थी. जाते-जाते वो रोए और कहा उन्हें सियासत में हमेशा से अग्निपरीक्षा देनी पड़ी है. सवाल ये है कि इस बार उन्हें आग पर किसने चलाया. अपने ही पार्टी के लोगों ने.

बीजेपी विधायक बासनगौड़ा पाटिल जैसे विरोदी येदियुरप्पा पर परिवार वाद का आरोप लगाते रहे. पार्टी में उनके विरोधी उनसे इसलिए भी खफा थे क्योंकि उनका आरोप था कि येदियुरप्पा कांग्रेस-जेडीएस से आए विधायकों को तरजीह देते हैं. कहा जाता है कि आलाकमान येदियुरप्पा पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर भी चिंतित था

येदियुरप्पा तो अब चले गए हैं लेकिन उनके समर्थक और कर्नाटक में बेहद ताकतवर लिंगायत समुदाय खफा है, जिसका खामियाजा बीजेपी को भुगतना पड़ सकता है.

उत्तराखंड

कनार्टक से पहले इसी महीने बीजेपी में सियासी भूचाल देखने को मिला था उत्तराखंड़ में जब तीरथ रावत ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था. महज 4 महीने मुख्यमंत्री पद संभालने के बाद तीरथ रावत का इस्तीफा राजनैतिक गलियों में हलचल मचा गया. हालांकि इसके पीछे एक संवैधानिक वजह बतायी जा रही थी जिसके मुताबिक तीरथ रावत को मुख्यमंत्री पद पर बने रहने के लिए 10 सितंबर तक विधानसभा का सदस्य बनना था. लेकिन राज्य में अगले साल फरवरी-मार्च में ही विधानसभा चुनाव होने हैं ऐसे में आर्टिकल 151 के मुताबिक अगर विधानसभा चुनाव में एक साल से कम का टाइम है तो वहां उपचुनाव नहीं कराये जा सकते.

वैसे उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पद के लिये पॉलिटिक्स तो त्रिवेंद्र सिंह रावत के टाइम से ही शुरु हो गयी थी. 2017 में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत मुख्यमंत्री बने लेकिन अगले चुनाव से ठीक एक साल पहले पार्टी में उठापटक हो गयी. माना गया कि बीजेपी में कुछ विधायकों और मंत्रियों के बीच नाराजगी के चलते त्रिवेंद्र सिंह रावत को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा.

त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री बने रहने पर कुछ नेताओं को नाराजगी थी जिसकी वजह से पार्टी में विवाद हो रहा था. विवाद को शांत करने के लिये ही बीजेपी हाईकमान ने मुख्यमंत्री बदल दिया. अब जबकि कम अनुभवी पुष्कर सिंह धामी को सीएम बनाया गया है तो कहा जा रहा है कि सतपाल महाराज जैसे पुराने दिग्गज खफा हैं.

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असम में भी दिखी अंदर की फूट

हाल में असम विधानसभा में बीजेपी ने जीत हासिल की है लेकिन हैरान करने वाली बात ये थी कि बीजेपी ने असम चुनाव लड़ा सर्वानंद सोनोवाल के नेतृत्व में लेकिन जीत के बाद मुख्यमंत्री पद का ताज मिला हिमंता बिस्वा सरमा को. माना जा रहा है कि पूर्व मुख्यमंत्री सोनोवाल को असम में बीजेपी अंदरूनी कलह की वजह से इस बार मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं मिल पायी.

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यूपी में भी उभरे बगावती तेवर

प्रधानमंत्री के बाद यूपी के सीएम योगी सबसे ज्यादा कड़क माने जाते हैं लेकिन खुद उनके राज्य में उनकी ही पार्टी के नेता सरकार के खिलाफ बोलते रहते हैं. ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं हुई, बीजेपी के इस दावे को उसी की पार्टी के विधायक झूठा साबित कर रहे हैं. यूपी में गोपामऊ के विधायक श्याम प्रकाश ने साफ कहा कि ऑक्सीजन की कमी से सैकड़ों लोग तड़प-तड़पकर मर गये.

इससे पहले सांसद कौशल किशोर ने भी योगी सरकार को निशाने पर लिया था. उन्होंने कोरोना कुप्रबंधन का आरोप लगाया और सरकारी अस्पतालों के इलाज के तरीके पर सवाल उठाये थे. इतना ही नहीं यूपी में संतोष गंगवार जैसे सीनियर नेता भी बीजेपी की योगी सरकार के खिलाफ खुलेआम विरोध कर चुके हैं. यूपी बीजेपी में कलह बस कोरोना को लेकर नहीं सामने आयी. इससे पहले आरके शर्मा को प्रदेश उपाध्यक्ष बनाने पर भी मनमुटाव सामने आये थे.

एके शर्मा पीएम के भरोसमंद थे और उनको चर्चा डिप्टी सीएम बनाने की थी लेकिन माना जाता है कि मुख्यमंत्री योगी की आपत्ति की वजह से उनको प्रदेश उपाध्यक्ष के पद पर बिठाया गया.

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राजस्थान बीजेपी में तकरार

बीजेपी की आपसी कलह से राजस्थान भी अछूता नहीं रहा. राजस्थान में भी पार्टी के अंदर ही विरोध की आवाजें उठ चुकी हैं. राजस्थान में 2023 में विधानसभा चुनाव होने हैं और इन चुनावों में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को कहीं किनारे ना कर दिया जाये इसे लेकर राजे के समर्थक बगावती तेवर दिखा रहे हैं. राजस्थान में बीजेपी की इस फूट की शुरुआत सतीश पूनिया को राजस्थान प्रदेश अध्यक्ष बनाने से हुई जिसके बाद प्रदेश में वसुंधरा राजे और सतीश पूनिया के दो गुट बन गये. हाल ही में राजे समर्थकों ने खुलेआम कहा था कि राज्य में बीजेपी मतलब वसुंधरा है.इसपर पूनिया ने कहा था कि राज्य में पार्टी से बड़ा कोई नहीं. सतह पर अभी शांति है लेकिन सियासी समंदर कब हिलोरे ले, कह नहीं सकते.

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पश्चिम बंगाल में बीजेपी में फूट

बंगाल चुनाव से पहले जहां बीजेपी का पलड़ा ऊपर माना जा रहा था वहीं चुनाव के बाद ममता बनर्जी की जीत के बाद सारा खेल पलट गया. इस वक्त तो राज्य में बीजेपी पूरी तरह बिखर चुकी है. मुकुल रॉय फिर से टीएमसी में चले गये हैं. वो नेता जो बीजेपी की जीत की उम्मीद में टीएमसी छोड़कर गये थे वो बीजेपी के हारने के बाद ममता बनर्जी की सरकार में शामिल होना चाहते हैं.

ऐसे में राज्य में बीजेपी के पुराने नेता और हाल में टीएमसी छोड़कर आये नेताओं की आपसी लड़ाई खूब सामने आ रही है. वो जो कहा जा रहा था कि बीजेपी ने 3 विधायकों से अपनी संख्या बहुत बढ़ा ली है और काफी मजबूत हुई है, ऐसा अब रहा नहीं.

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और भी गम हैं इनके सिवा

जो पार्टी प्रचंड बहुमत के साथ केंद्र पर काबिज है, उसके साथ कौन दल दोस्ती नहीं चाहेगा लेकिन वो क्या मजबूरियां हैं कि बीजेपी के कई साथी कई राज्यों में टूट रहे हैं. कहीं सियासी हेकड़ी तो केंद्रीय नीतियों के कारण एनडीए बिखर रहा है. बिहार के 'सियासी हनुमान' यानी चिराग पासवान को नीतीश ने निपटा दिया. ताज्जुब ये 'हनुमान' के कथित 'राम' मोदी उन्हें बचाने नहीं आए. याद ये तीनों पार्टियां केंद्र में साथी हैं. अब जाति आधारित जनगणना पर नीतीश बीजेपी से अलग बोल रहे हैं.

पंजाब में किसानों के मुद्दे पर बीजेपी की बहुत पुराने सहयोगी अकाली अलग हो चुके. महाराष्ट्र में शिवसेना ने बगावत कर दी. हरियाणा में जेजेपी बीजेपी से असहज हो रही है. गोवा में ऑक्सीजन की कमी से मौतों पर सीएम और स्वास्थ्य मंत्री का झगड़ा वहां की जनता भुगत ही चुकी.

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