बीजेपी को लेकर कहा जाता है कि वह कैडर बेस्ड पार्टी है. पार्टी के पुराने नेताओं को प्राथमिकता देती है. लेकिन पिछले कुछ चुनावों और मंत्रिमंडल विस्तार में ये मिथक टूटता नजर आया. नॉन कैडर नेताओं को कैबिनेट में बड़ी जिम्मेदारी मिली. नए चेहरों पर ज्यादा भरोसा दिखाया गया. जुलाई 2021 में मोदी कैबिनेट विस्तार में 36 नए चेहरों को शामिल किया गया. अब योगी कैबिनेट 2.0 में भी वही दिखा. चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल होने वाले जितिन प्रसाद को पीडब्ल्यूडी जैसा महत्वपूर्ण विभाग मिल गया. ऐसे में सवाल कि बीजेपी यूपी में नए चेहरों को स्थापित कर क्या संदेश देने की कोशिश कर रही है?
योगी कैबिनेट 2.0 में 31 नए चेहरे हैं, जिसमें से कुछ ऐसे हैं जो पार्टी में पहले से हैं और कुछ जो किसी दूसरी पार्टी में बीजेपी में आए हैं. ऐसे ही कुछ चेहरों का जिक्र करते हैं.
योगी कैबिनेट में नए चेहरों में एक नाम जितिन प्रसाद का है, जो हाल ही में बीजेपी में शामिल हुए हैं. कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में मंत्री और राहुल गांधी के बहुत खास माने जाते थे, लेकिन जून 2021 में बीजेपी में शामिल हो गए. अब योगी सरकार बनी तो पीडब्ल्यूडी जैसा महत्वपूर्ण मंत्रालय मिल गया.
राकेश सचान पहले एसपी और कांग्रेस में रह चुके हैं. चुनाव से ठीक पहले बीजेपी में शामिल हुए. योगी कैबिनेट में राकेश सचान को एमएसएमई मंत्रालय मिला. योगी की पहली कैबिनेट में एमएसएमई मंत्रालय सिद्धार्थ नाथ सिंह के पास था.
नॉन कैडर नेता में एक नाम नंद गोपाल नंदी का है. राजनीतिक करियर की शुरुआत बीएसपी से की. 2014 में कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़े. फिर बीजेपी में शामिल हो गए. और अब औद्योगिक विकास मंत्री बनाए गए हैं.
जयवीर सिंह को भी नॉन कैडर नेता माना जाता है. कांग्रेस और बीएसपी से होते हुए बीजेपी में शामिल हुए. योगी कैबिनेट 2.0 में पर्यटन और संस्कृति विभाग दिया गया. इसी तरह पूर्व SP नेता नितिन अग्रवाल को आबकारी और निषेध (स्वतंत्र प्रभार) दिया गया है. ये राजस्व उत्पन्न करने वाला मंत्रालय माना जाता है.
इस लिस्ट में एक नाम एके शर्मा का है. जो गुजरात कैडर के आईएएस अधिकारी रहे हैं. मोदी के करीबी माने जाते हैं. उन्हें शहरी रोजगार और गरीबी उन्मूलन विभाग देकर कैबिनेट मंत्री बनाया गया.
यूपी में ब्राह्मण और कुर्मी लीडरशिप तैयार करने पर फोकस
जितिन प्रसाद और राकेश सचान. दोनों नेताओं को योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिला. दोनों पार्टी में नए चेहरे हैं. किसी अन्य पार्टी से बीजेपी में शामिल हुए हैं. दोनों का कनेक्शन दिल्ली तक माना जाता है. इनके जरिए बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व यूपी में अपने नेताओं की एक लीडरशिप तैयार करना चाहती है.
ब्रजेश पाठक को डिप्टी सीएम बनाया गया है, लेकिन उनके साथ ही जितिन प्रसाद के जरिए एक दूसरा चेहरा भी तैयार करने की कोशिश की गई. जब जितिन प्रसाद कांग्रेस में थे तब कभी भी खुद को ब्राह्मण चेहरे के तौर पर स्थापित नहीं कर पाए. लेकिन बीजेपी में आते ही उनकी छवि ब्राह्मण नेता को तौर पर प्रचारित की गई. वो ब्राह्मण एकता मंच बनाकर राजनीति करते रहे हैं. ऐसे में उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा देकर बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व ब्राह्मणों में खुद के नेताओं की एक लीडरशिप तैयार करना चाहता है जहां किसी अन्य का दखल कम से कम हो.
राकेश सचान भी केंद्र से जुड़े नेता माने जाते हैं. इनका कनेक्शन कुर्मी वोटर से है. इस बार के चुनाव में कुर्मी वोटर में डिवीजन दिखा. तभी केशव प्रसाद मौर्य हारे. महज 217 वोटों से बेनी प्रसाद वर्मा के बेटे राकेश कुमार हार गए. एसपी में भी यादवों से ज्यादा कुर्मी विधायक जीतकर आए. ऐसे में बंटते वोटर को देखकर शायद बीजेपी को लगा कि कुर्मी लीडरशिप में नए चेहरे की जरूरत है. राकेश सचान सेंट्रल यूपी में कुर्मियों के बड़े नेता हैं. खासकर कानपुर देहात, फतेहपुर और बुंदेलखंड के इलाके में पकड़ रखते हैं. ऐसे में उनके जरिए 2024 के लिए कुर्मी वोटर को अपने पक्ष में करने की कोशिश हो सकती है.
बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व के प्रति प्रतिबद्धता पहली कसौटी?
योगी कैबिनेट को देखकर लगता है कि शायद उन नए चेहरों को प्राथमिकता दी गई है, जिनकी प्रतिबद्धता केंद्रीय नेतृत्व के प्रति ज्यादा दिखती है. मसलन, दशकों तक बनारस में कांग्रेस की राजनीति करने वाले दयाशंकर मिश्र दयालु. 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए. मंत्री बनने की लिस्ट में उनका नाम सबसे ज्यादा चौंकाने वाला था. राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार बनाया गया. वह न तो विधायक हैं और न ही विधान परिषद के सदस्य, लेकिन पीएम मोदी के भरोसेमंद माने जाते हैं.
उदाहरण के तौर पर एक नाम 5 बार से विधायक मयंकेश्वर शरण सिंह का है. कांग्रेस के गढ़ कहे जाने वाले अमेठी की तिलोई विधानसभा सीट से विधायक हैं. योगी के भरोसेमंद माने जाते हैं. लेकिन उन्हें राज्यमंत्री का दर्जा दिया गया है. तर्क ये दिया जाता है कि 2024 का चुनाव है तो उसके हिसाब से बीजेपी टीम तैयार कर रही है, लेकिन मंत्रियों की लिस्ट देखकर लगता है कि 2024 की टीम के बहाने केंद्रीय नेतृत्व प्रदेश में अपने भरोसेमंद नेताओं की अलग कतार तैयार कर रही है.
केंद्रीय नेतृत्व के सांचे में सीएम योगी क्यों फिट नहीं हो पा रहे हैं? इस सवाल के जवाब में पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि इसके लिए पार्टी के प्रति समर्पण नहीं, बल्कि व्यक्ति के प्रति समर्पण पहली शर्त है. योगी आदित्यनाथ यूपी में बीजेपी को आगे बढ़ाने के लिए पार्टी के प्रति समर्पण दिखा सकते हैं. लेकिन अभी केंद्र में वह विश्वास नहीं जीत सके हैं. अभी उन्हें एक प्रतिदंद्वी के तौर पर लिया जाता है. जो उन्हें केंद्रीय नेतृत्व का हिस्सा बनने से रोकता है.
पीएम मोदी और अमित शाह अपने फैसलों से चौंकाते रहे हैं. वजह है कि ये तय फॉर्मूले से हटकर कुछ अलग करने की कोशिश में रहते हैं. अब यूपी में बीजेपी का नया प्रदेश अध्यक्ष चुना जाना है. कहा जा रहा है ये चेहरा कोई दलित या फिर ब्राह्मण हो सकता है, लेकिन योगी कैबिनेट की तरह ही यहां पर भी कोई नॉन कैडर या नया चेहरा सामने आ जाए तो आश्चर्य की बात नहीं होगी. ये बीजेपी के उसी पैटर्न का हिस्सा होगा, जिसके तहत यूपी की नई सरकार में पुराने चेहरों की अनदेखी कर नए लोगों को महत्व दिया गया.
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