डॉलर (Dollar) के मुकाबले रुपया (Rupee) 80 के स्तर पर आ गया है, जो इसका अबतक का निचला स्तर है. पिछले हफ्तों के आंकड़ों को देखे तो रुपया हर दिन अपने निचले स्तर को छू रहा है. ब्लूमबर्ग इकनॉमिक्स के अनुसार अगले कुछ महीनों तक रुपया 79 से लेकर 81 के बीच रह सकता है.
क्यों गिर रहा है रुपया?
बेसिक इकनॉमिक्स के मुताबिक रुपये का स्तर डिमांड-सप्लाय के मुताबिक बदलता है. अगर डॉलर की डिमांड रुपये के मुकाबले ज्यादा होगी तो रुपया गिरेगा.
अर्थव्यवस्था पर पड़ी कोरोना महामारी की मार के बाद रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध छिड़ गया जिसके बाद सप्लाई चेन में आई बाधाओं ने समस्या बढ़ा दी. इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ते कच्चे तेल की कीमत बड़ी वजह है. यही नहीं जैसे-जैसे विदेशी निवेशक भारतीय शेयर बाजार से पैसा बाहर निकाल रहे हैं तो इसका दबाव रुपये पर पड़ रहा है, इसकी वजह से डॉलर की मांग बढ़ रही है और रुपया कमजोर हो रहा है.
मई में रुपया लगभग 1.6 प्रतिशत गिर गया, उभरती हुई एशिया की कई करेंसी में से यह बड़ी गिरावट है.
रुपये पर दबाव बढ़ता रहेगा क्योंकि तेल की कीमतें फिर से बढ़ रही हैं और साथ ही फेड ब्याज दर में वृद्धि लगातार कर रही है. कच्चे तेल की कीमतों में तेजी, विदेशों में मजबूत डॉलर और शेयर बाजार से विदेशी निवेश का लगातार बाहर आना रुपये की गिरावट के प्रमुख कारण हैं.रोहित अरोड़ा, को-फाउंडर, Biz2Credit & Biz2X
क्विंट से बातचीत में रोहित अरोड़ा बताते हैं कि, महंगाई अपने उच्च स्तर पर है, चीन में लंबे समय तक कोरोना लॉकडाउन है, प्रमुख केंद्रीय बैंकों ने अपनी नीति में कड़ा रुख अख्तियार किया है और रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से सप्लाय चेन में बाधा है. इन सब का भी रुपये पर असर दिखेगा. डॉलर के मुकाबले रुपया इस साल अब तक 7.5% से अधिक गिरा है.
वो आगे कहते हैं कि "हमें लगता है कि रुपये की गिरावट अभी और जारी रहेगी और जल्द ही 80 के आंकड़ें को भी रुपया पार करेगा."
रोहित कहते हैं कि, वैसे तो बड़ी तस्वीर को देखते हुए हालिया गिरावट के बावजूद भारतीय रुपया एशिया की बाकी करेंसी के मुकाबले सबसे अच्छा प्रदर्शन कर रहा है. डीबीएस द्वारा 17 जून तक के विश्लेषण के अनुसार रुपया उन 19 करेंसी में से सातवां सबसे बेहतर प्रदर्शन करने वाली करेंसी रहा. क्योंकि कई करेंसी अमेरिकी डॉलर के मुकाबले बेहद कमजोर हो गई हैं.
उन्होंने कहा कि FII यानी विदेशी निवेश अक्टूबर 2021 से लेकर अब तक लगभग 3 लाख करोड़ तक निकाला जा चुका है. अब जब सप्लाई चेन बेहतर होगी और महंगाई नीचे आएगी तभी रुपये का गिरना थम सकता है. हालांकि केंद्रीय बैंक हस्तक्षेप कर रुपये को आगे और गिरने से रोक सकता है.
बीबीसी से बातचीत में आर्थिक विश्लेषक आलोक जोशी ने कहा कि, ''कमजोर रुपया एक्सपोर्ट के लिए अच्छा है. ये कहना ज्यादा अच्छा रहेगा कि रुपये की कमजोरी के बजाय डॉलर की मजबूती बढ़ रही है. दरअसल यह अमेरिकी फेडरल रिजर्व की ओर लिक्वडिटी को सोखने का नतीजा है.''
साथ ही वे कहते हैं कि रुपये को सरकारी हस्तक्षेप कर मजबूत किया जा सकता है. लेकिन यह भारत के लिए नुकसानदेह साबित होगा. इसके बजाय सरकार को उद्योग-धंधों को बढ़ावा देने के कदम उठाए चाहिए ताकि वे निर्यात करें और डॉलर कमाएं.''
रुपये-डॉलर के एक्सचेंज रेट के इतिहास पर एक नजर
एक जमाना था जब कभी एक डॉलर के बराबर एक रुपया हुआ करता था, लेकिन कुछ आर्थिक संकट से निपटने के लिए भारत को रुपया का मूल्य डॉलर के मुकाबले गिराना पड़ा ताकि एक्सपोर्ट को बढ़ावा मिले. एक डॉलर के बराबर कब-कब रुपया कमजोर हुआ-
1983 में 10 के स्तर पर पहुंचा रुपया , 1991 में 20 के स्तर पर, 1993 में 30 के स्तर पर, 1998 में 40, 2011 में 50, 2013 में 60, 2018 में 70 और अब 2022 में 80 के आकड़े को पार कर गया.
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