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शराब घोटाला मामला: AAP सांसद संजय सिंह को ED ने 10 घंटे की पूछताछ के बाद गिरफ्तार किया

Sanjay Singh Arrest: दिल्ली शराब नीति से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में ईडी ने आज तड़के छापेमारी शुरू की थी.

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आम आदी पार्टी के नेता और सांसद संजय सिंह (Sanjay Singh) को प्रवर्तन निदेशालय यानी ED ने 10 घंटे की पूछताछ के बाद गिरफ्तार कर लिया है. दिल्ली शराब नीति से जुड़े कथित मनी लॉन्ड्रिंग केस में ED ने संजय सिंह को गिरफ्तार किया है. इससे पहले आज यानी 4 अक्टूबर की सुबह ED ने संजय सिंह के घर छापेमारी शुरू की थी.

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आपको बता दें कि ED ने दिल्ली शराब नीति मामले में चार्जशीट भी दाखिल की थी जिसमें संजय सिंह का भी नाम है.

संजय सिंह की गिरफ्तारी पर दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष ने कहा है, "गिरफ्तारी से एक बात सच हो गई की सच्चाई छुप नहीं सकती, सच्चाई सामने आती है. संजय सिंह के बाद, अरविंद केजरीवाल, अब देखिए होता है क्या!"

संजय सिंह की गिरफ्तारी से पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा था, "पिछले एक साल से देख रहे हैं कि तथाकथित शराब घोटाले का शोर किया हुआ है, लेकिन इनको एक भी पैसा नहीं मिला. करीब 1,000 से अधिक छापे मारे गए और कहीं से भी कोई रिकवरी नहीं हुई. कभी बोलते हैं कि क्लासरूम घोटाला हुआ, बसों की खरीद में घोटाला हुआ इन्होंने हर चीज में जांच करा ली."

क्या है दिल्ली शराब नीति मामला?

17 नवंबर 2021 को लॉन्च की गई, दिल्ली सरकार की आबकारी नीति 2021-22 को खुदरा शराब क्षेत्र में सुधार, उपभोक्ता अनुभव में सुधार और राजस्व में 9,500 करोड़ रुपये की बढ़ोत्तरी के लक्ष्य से लाया गया था. अरविंद केजरीवाल सरकार द्वारा शुरू की गई नई नीति ने सरकार संचालित 600 दुकानों को बंद करने की मांग की, ताकि नई प्राइवेट वेंडर्स वाली दुकानों से यह काम करवाया जा सके.

शहर के 32 क्षेत्रों में 266 प्राइवेट वेंडर्स समेत 849 शराब की दुकानों को खुदरा लाइसेंस देने के लिए नीति प्रदान की गई. यह शराब की बिक्री से दिल्ली सरकार के बाहर निकलने का संकेत था.

नई आबकारी नीति के लागू होने के बाद सरकार के राजस्व में 27 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जिससे लगभग 8,900 करोड़ रुपये की आय हुई. उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना द्वारा व्यवस्था में कथित विसंगतियों की सीबीआई जांच की सिफारिश करने के बाद जुलाई 2022 में दिल्ली सरकार द्वारा विवादास्पद नीति को वापस ले लिया गया था.

एलजी का निर्णय दिल्ली के मुख्य सचिव नरेश कुमार की एक रिपोर्ट पर आधारित था, जिसमें विशिष्ट उदाहरणों का हवाला देकर नीति के लागू होने में कथित अनियमितताओं को सूचीबद्ध किया गया था.

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