बिहार (Bihar) के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) आमने-सामने हैं. दोनों के बीच जुबानी जंग जारी है. जिससे बिहार का सियासी मिजाज गर्माया हुआ है. जन सुराज यात्रा के दौरान पीके ने सीएम नीतीश को लेकर बड़ा दावा कर दिया. उन्होंने कहा कि, नीतीश जी की तरफ से उन्हें पद का ऑफर मिला था. इसके साथ ही प्रशांत किशोर ने बताया कि नीतीश कुमार ने उनसे कहा था कि "आप मेरे राजनीतिक उत्तराधिकारी हैं."
पीके के इस दावे पर सीएम नीतीश भी कहां चुप रहने वाले थे. मीडिया के सामने आते ही उन्होंने जोरदार पलटवार किया. नीतीश कुमार ने उलटे पीके पर आरोप लगा दिया कि वो कांग्रेस में जेडीयू का विलय कराना चाहते थे. तो वहीं प्रशांत किशोर के उत्तराधिकारी वाले दावे को भी झूठा करार दे दिया. कहा कि उन्हें जो कुछ भी बोलना है, बोलें. हमें इससे कोई लेना-देना नहीं है.
बता दें कि प्रशांत किशोर को नीतीश कुमार ने साल 2018 में जेडीयू में शामिल किया था. वह कुछ ही हफ्तों में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद पर पहुंच गए. हालांकि, बाद में दोनों के रास्ते अलग हो गए. अब तो वक्त ही बताएगा कि कौन सच्चा है और कौन झूठा?
महागठबंधन सरकार में कानून का लगाम ढीला!
आरोप है कि सुशासन बाबू की महागठबंधन सरकार में कानून का लगाम ढीला पड़ गया है. या फिर यह कहें कि पुलिस से लोगों का विश्वास उठ गया है. मामला ही कुछ ऐसा है. कटिहार में रेप के आरोपी को सरेआम पेड़ से बांधकर इतना पीटा गया- इतना पीटा गया कि अस्पताल जाते-जाते उसकी मौत हो गई. अब आप ही बताइए, लोकतंत्र में जब भीड़तंत्र इंसाफ करेगा तो कानून का राज कैसे कायम रहेगा? बेगूसराय और वैशाली की घटना तो आपको याद ही होगी.
निकाय चुनाव पर हंगामा है बरपा
बिहार में नगर निकाय चुनाव को लेकर हंगामा मचा हुआ है. चुनाव का ऐलान हुआ, नामांकन हुआ, उम्मीदवारों ने प्रचार में लाखों रुपये भी खर्च कर दिए. लेकिन वोटिंग से ठीक पहले ही चुनाव कैंसिल हो गया. खाया पिया कुछ नहीं गिलास तोड़ा बारह आने... बिहार में 10 और 20 अक्टूबर को निकाय चुनाव होना था. लेकिन बिहार सरकार ने चुनाव में आरक्षण से जुड़े नियमों का पालन नहीं किया. मामले को लेकर पटना हाई कोर्ट में सुनवाई हुई. कोर्ट के फैसले के बाद राज्य निर्वाचन आयोग ने चुनाव कैंसिल कर दिया.
कोर्ट ने कहा कि नगर निकाय चुनाव में ओबीसी और ईबीसी यानी अति पिछड़ा वर्ग को दिया गया आरक्षण कानून के तहत गलत है. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में पिछड़ों के आरक्षण से पहले ट्रिपल टेस्ट करने का नियम बनाया था. इसमें किसी राज्य को कोई छूट नहीं दी गई. लेकिन बिहार सरकार ने इसका पालन नहीं किया. बिना ट्रिपल टेस्ट के ही पिछड़े वर्ग को आरक्षण दे दिया.
ट्रिपल टेस्ट क्या है?
पहले चरण में एक आयोग का गठन होता है. जो ये तय करता है कि आरक्षण प्रतिशत में बदलाव पर लाभार्थियों पर क्या असर पड़ेगा? जिसके लिए आरक्षण का दायरा बढ़ाया जाएगा उसे इसकी आवश्यकता है भी या नहीं?
दूसरे चरण में आयोग राजनीतिक रूप से पिछड़ों की पहचान कर राज्य सरकार को रिपोर्ट देगा. उसकी सिफारिशों के मुताबिक स्थानीय निकाय में आवश्यक आरक्षण के अनुपात को राज्य सरकार अधिसूचित करेगी. ताकि किसी तरह का भ्रम न फैले.
किसी भी राज्य में अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित कुल सीटें 50 फीसदी से अधिक नहीं होनी चाहिए.
अब बिहार सरकार पटना हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी कर रही है.
चलिए अब आपको बतातें है बिहार से जुड़ा एक इंटरेस्टिंग फैक्ट. जिसे सुनकर आप भी कहेंगे, बिहार में ई हो बा! क्या आपको पता है भारत का सबसे पुराना मंदिर कहां हैं? बिहार की राजधानी पटना से करीब 200 किलोमीटर की दूरी पर मां मुंडेश्वरी का मंदिर है. जो कैमूर जिले में स्थित है. मुंडेश्वरी माता मंदिर का स्ट्रक्चर मौजूदा मंदिरों में सबसे पुराना माना जाता है. 5वीं शताब्दी के करीब इसे बनाया गया था.
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