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'Morbi Bridge की मरम्मत करने वाले ठेकेदार योग्य नहीं थे', कोर्ट को दी गई जानकारी

Morbi Bridge Collapse: मजिस्ट्रेट कोर्ट ने गिरफ्तार किए गए चार आरोपियों को शनिवार तक पुलिस कस्टडी में भेज दिया.

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गुजरात (Gujarat) के मोरबी में हुए ब्रिज हादसे (Morbi Bridge Collapse) के बाद अब जांच में चौंकाने वाली बातें सामने आ रही हैं. रविवार, 02 नवंबर को पर्यटकों से भरा ये पुल गिर गया था. इस भयानक दुर्घटना में अब तक मरने वालों की संख्या 135 हो गई है. शहर की पहचान कहे जाने वाले सस्पेंशन ब्रिज को कई सालों के बाद आम लोगों के लिए खोला गया था.

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चौंकाने वाले तथ्य सामने आए

PTI की रिपोर्ट के मुताबिक, मंगलवार को इस मामले में अभियोजन पक्ष ने अदालत को एक फोरेंसिक रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि ब्रिज की फ्लोरिंग तो बदली गई थी पर जिन केबलों पर वो टिका था उन्हें नहीं बदला गया था. इसके साथ ही अभियोजन पक्ष ने अदालत को बताया कि पुल की मरम्मत करने वाले ठेकेदार ऐसे काम करने के 'योग्य नहीं' थे.

इसके बाद मजिस्ट्रेट कोर्ट ने गिरफ्तार किए गए चार आरोपियों को शनिवार तक पुलिस कस्टडी में भेज दिया. जिन चार लोगों को पुलिस हिरासत में भेजा गया है वे हैं - ओरेवा के मैनेजर दीपक पारेख, दिनेश दवे, ठेकेदार प्रकाश परमार और देवांग परमार.

सरकारी वकील एचएस पांचाल ने बताया कि मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने सुरक्षा गार्ड और टिकट बुकिंग क्लर्क सहित पांच अन्य गिरफ्तार लोगों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया है, क्योंकि पुलिस ने उनकी हिरासत की मांग नहीं की थी.

बता दें कि, पुलिस ने सोमवार को भारतीय दंड संहिता की धारा 304 (गैर इरादतन हत्या) के तहत नौ लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया था.

क्यों गिरा ब्रिज?

PTI की रिपोर्ट के मुताबिक, फोरेसिंक साइंस लैब की रिपोर्ट के हवाले से सरकारी वकील पंचाल ने अदालत को पुल गिरने की वजह बताई है. उन्होंने कहा कि फोरेसिंक एक्सपर्ट के मुताबिक पुल नई फ्लोरिंग का भार नहीं सह सका और उसके केबल टूट गए. हालांकि फॉरेंसिक रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में अदालत को सौंपी गई लेकिन पांचल ने कोर्ट के बाहर पत्रकारों से कहा कि,

"रिमांड याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत को बताया गया कि मरम्मत के दौरान पुल के केबलों को नहीं बदला गया था, बस फ्लोर बदला गया था. चार लेयर की एल्युमिनियम की चादरों से फ्लोर का वजन इतना बढ़ गया कि पुल को थामे रखने वाली केबल इसका भार नहीं सह पाई और पुल गिर गया."

कोर्ट को यह भी बताया गया कि जिन ठेकेदारों को मरम्मत का काम दिया गया था वे इसे करने के लिए योग्य नहीं थे.

इसके साथ ही अभियोजन पक्ष कहा, "इसके बावजूद, इन ठेकेदारों को 2007 में और फिर 2022 में पुल मरम्मत का काम दिया गया था. इसलिए उन्हें चुनने का कारण क्या था और किसके कहने पर उन्हें चुना गया था, यह पता लगाने के लिए आरोपी को हिरासत में लेने की आवश्यकता है."

ओरेवा ग्रुप को दिया गया था ठेका

बता दें कि, इस साल मार्च में मोरबी स्थित ओरेवा ग्रुप (अजंता मैन्युफैक्चरिंग प्राइवेट लिमिटेड), जो घड़ी से लेकर ई-बाइक भी बनाती है, को नगर पालिका ने पुल के रखरखाव और प्रबंधन का ठेका दिया गया था.

ओरेवा को इससे पहले भी 15 साल के लिए पुल के रखरखाव का काम दिया गया था, जिसकी अवधि 2020 में खत्म हो गई थी. इसके बाद फिर 15 साल के लिए टेंडर निकाला गया था और वो टेंडर दोबारा भी ओवेरा को ही मिला था.

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