झारखंड(Jharkhand) सरकार ने विज्ञापन मद में पौने दो अरब रुपए खर्च कर दिए हैं. यह रकम साल 2019 से 2021 तक में खर्च किए गए हैं. सूचना का अधिकार के तहत यह जानकारी सरकार की ओर से दी गई है.
आरटीआई के माध्यम से दी गई जानकारी में राज्य सरकार के अवर सचिव जगजीवन राम ने बताया है कि साल 2019 से 2021 तक में झारखंड सरकार ने 1 अरब 74 करोड़ 99 लाख 69 हजार रुपए सरकारी विज्ञापन मद में खर्च कर दिए हैं. गौर करेंगे तो इनमें से अधिकतर समय कोविड का प्रकोप रहा है. साथ ही दिसंबर 2019 के बाद हेमंत सोरेन की सरकार रही है.
सूचना के मुताबिक साल 2019 से 2020 में कुल 95 करोड़ रुपए सरकारी विज्ञापन के लिए जारी किए गए. जिसमें पूरी रकम खर्च भी की गई. वहीं साल 2020 से 2021 में 80 करोड़ रुपए जारी किए गए. जिसमें 79,99,69,370 रुपए खर्च किए गए.
कुल मिलाकर देखें तो इन दो वित्तिय वर्ष में केवल सरकारी विज्ञापन मद में 1,74,99,69,370 रुपए खर्च किए गए हैं. हालांकि वित्तिय वर्ष 2021-2022 के आंकड़ों का आना अभी बाकी है.
इस सूचना को हासिल करने वाले झारखंड के सूचना अधिकार कार्यकर्ता ओंकार विश्वकर्मा कहते हैं, ‘’ ये रकम तब भी खर्च की गई जब कोविड के समय में लोग मर रहे थे.
वो आगे कहते हैं, ‘’झारखंड के अधिकतर हिस्सों में कुपोषण की समस्या है. रघुवर सरकार के समय में हरेक आंगनबाड़ी केंद्र पर 3000 रुपए के मानदेय पर एक पोषण सखी की बहाली की गई थी. हेमंत सरकार ने इस पद को ही खत्म कर दिया.’’
जानकारी के मुताबिक इसी साल अप्रैल माह में 10,388 पोषण सखी की सेवा रद्द कर दी गई है. उन्होंने यह भी बताया कि, ‘’साल 2018-19 में मैंने कोडरमा, हजारीबाग और चतरा जिले के आदिम जनजाति बिरहोर पर एक अध्ययन किया था. जिसमें पाया कि 95 प्रतिशत बिरहोर बच्चे कुपोषित हैं. अगर इन पैसों को वहां खर्च किया जाता तो राज्य की स्थिति कहीं बेहतर होती.’’
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड में 6-59 माह के 67.5 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं. वहीं साल 2011 की जनगणना के मुताबिक झारखंड में बिरहोर आदिम जनजाति की जनसंख्या मात्र 10 हजार के करीब है.
इस पूरे मसले पर रघुवर दास ने क्विंट से कहा कि
’हेमंत सरकार विज्ञापन की सरकार है. विज्ञापन के माध्यम से यह दिखाना चाह रही है कि बहुत काम हो रहे हैं. लेकिन जनता खुद को ठगा हुआ महसूस कर रही है. चाहे वह सलाना पांच लाख नौकरी का वादा हो, 5000 रुपए बेरोजगारी भत्ता हो, वृद्धा पेंशन हो, पीएम आवास मद में 3 लाख रुपए जोड़ने की बात हो, एक भी योजना इस सरकार की धरातल पर नहीं है.’’
गौर करनेवाली दूसरी बात यह है कि रघुवर सरकार ने भी अपने कार्यकाल के दौरान चार साल में तीन अरब से अधिक रुपए विज्ञापन में खर्च कर दिए थे. उस वक्त भी आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक साल 2014 से 12 दिसंबर 2018 तक 323 करोड़, 76 लाख, 81 हजार रुपए आवंटित किए गए थे.
इस सूचना के मुताबिक साल 2014-15 में 40 करोड़, साल 2015-16 में 54 करोड़, 99 लाख, 99 हजार 380 रुपए, साल 2016-17 में 70 करोड़, साल 2017-18 में 1 करोड़, 33 लाख, 69 हजार, 918 रुपए, वहीं साल 2018-19 में दिसंबर 12 तारीख तक 17 करोड़, 79 लाख, 95 हजार, 901 रुपए खर्च किए गए.
इस लिहाज से देखें तो साल 2014 से 2021 तक राज्य सरकारों ने सरकारी विज्ञापन मद में कुल 4 अरब, 79 करोड़, 62 लाख, 83 हजार, 931 रुपए खर्च किए गए हैं.
बीते 9 दिसंबर 2019 को हेमंत सोरेन ने अपने ट्वीट में लिखा, 14 साल की सरकारों के प्रचार का खर्च 44 करोड़ रुपए. पहले चार साल में ठगुबर सरकार ने खर्चे - 323 करोड़ रुपए. और जब मैं बेरोजगार युवाओं को बेरोजगारी भत्ता देने की घोषणा करता हूं, तो भाजपा के ठग मजाक बनाते हैं. कहते हैं, पैसा कहां है
झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि ‘’ऐसी कोई जानकारी मेरे पास नहीं आई है. हम पता करते हैं, इसके बाद ही कोई प्रतिक्रिया देंगे.’’
वहीं कांग्रेस नेता और राज्य के वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव से इस मसले पर लगातार संपर्क करने की कोशिश की गई. लेकिन उनसे बात नहीं हो पाई. बात होते ही खबर अपडेट कर दी जाएगी.
क्या हैं राज्य के हालात
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी की 24 जून के आंकड़े को देखें तो झारखंड में बेरोजगारी दर 13.1% है. राज्य में 18,518 व्यक्ति पर एक डॉक्टर हैं. छह साल से अधिक उम्र की 35.5 प्रतिशत लड़कियों ने आज तक स्कूल का मुंह नहीं देखा है. पांच साल से कम उम्र के बच्चों का मृत्यु दर 45.4 है. (ये सभी आंकड़ें एनएफएचएस 2021 से लिए गए हैं.
राज्यभर में कई ऐसे ग्रामीण इलाके हैं जहां आज भी लोग चुआं (पहाड़ से निकला वो पानी जिसे ग्रामीण गड्ढे में जमा करते हैं.) का पानी पी रहे हैं. गढ़वा, पलामू जिले के ऐसे कई इलाके हैं जहां पानी में फ्लोराइड की मात्रा अत्यधिक बढ़ी हुई है, लोग उस पानी का इस्तेमाल कर विकलांग हो रहे हैं.
झारखंड राज्य बनाने के पीछे मुख्य मकसद के तौर पर कहा गया कि अलग होने से आदिवासियों के विकास पर ध्यान दिया जाएगा. हालात ये हैं कि राज्य गठन को 22 साल हो चुके हैं, लेकिन पेसा एक्ट का रूल्स अभी तक नहीं लागू किया गया है. अभी तक नियम ही बन रहा है.
पेशा कानून आदिवासियों के स्वशासन व्यवस्था को मजबूत प्रदान करने के लिए लाया गया है. ताकि उनकी संस्कृति, परंपरा, व्यवसाय आदि सुरक्षित की जा सके.
कई ऐसे पहाड़ी इलाके हैं जहां आज भी लोगों को राशन लेने के लिए 5 से 15 किलोमीटर तक पैदल सफर करना पड़ता है. इतना सफर तय करने के बाद भी नेटवर्क नहीं होने की वजह से कई बार राशन नहीं मिल पाता है.
झारखंड सरकार की ओर से जारी इकनॉमिक सर्वे 2021 में मल्डीडायमेंशनल पॉवर्टी के आंकड़ों पर गौर करें तो राज्य में 46.16 प्रतिशत लोग गरीब हैं. ग्रामीण इलाकों में यही आंकड़ा 50.93 प्रतिशत है. प्रति व्यक्ति आय के मामले में झारखंड देशभर में 27वें नंबर पर है. सिर्फ बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, असम और मणिपुर ही झारखंड से पीछे हैं. यहां हरेक व्यक्ति 26 हजार रुपए का कर्जदार है.
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