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काशी विश्वनाथ धाम का कायाकल्प, लेकिन कितनी बदली वाराणसी के लोगों की जिंदगी?

Kashi vishwanath dham बनने से लोग खुश लेकिन कारोबारी में मंदी और मंहगाई से परेशान

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धर्म और अध्यात्म की नगरी बनारस 2014 के आम चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश के राजनीति की एक धुरी बन गई. नेशनल टॉकिंग प्वाइंट बन गई लेकिन खुद कितनी बदली? काशी विश्वनाथ धाम के नए स्वरूप की खबरें मीडिया में छाई हैं ऐसे में हमने जानने की कोशिश की कि यहां के लोगों की जिंदगी कितनी सुधरी?

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काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बनने की खुशी

जब वाराणसी के विकास की बात हो तो काशी विश्वनाथ कॉरिडोर और मंदिर परिसर के विकास की सबसे पहले चर्चा होगी. इस बात को लेकर यहां के स्थानीय लोग भी खुश हैं.

वाराणसी में नाविक मुन्ना लाल साहनी कहते हैं कि जमकर विकास हुआ है और पर्यटक पहले से बहुत ज्यादा आ रहे हैं. जाहिर है सैलानियों से जुड़े कारोबार फल फूल रहे हैं. वो ये भी बताते हैं कि बिजली-पानी जैसी समस्याएं काफी हद तक दूर हुई हैं.

लोग विकास की तारीफ कर रहे हैं लेकिन जैसे मुख्य सड़क से अंदर गलियों में उतरते ही असली बनारस दिखने लगता है वैसे ही जरा लोगों के अंदर झांकिए तो दर्द रिसने लगता है. बर्तन बनाने वाले रघुनाथ कसेरा कहते हैं-कारोबार एकदम चौपट है.

जब मंदिर बन रहा था तो हम व्यापारियों को उम्मीद थी कि हमारा कारोबार बढ़ेगा लेकिन यहां का काम कहां जा रहा है हमें नहीं पता. एकदम समझिए लाले पड़े हुए हैं.
रघुनाथ कसेरा, बर्तन दुकानदार, वाराणसी

''इधर कोई नेता नहीं देखता''

यही हाल मशहूर वाराणसी साड़ी के बुनकरों का है. बुनकर मोहम्मद फईम कहते हैं हमारी समस्याओं की सुध कोई नेता नहीं लेता.

इधर न कोई नेता आता है, न हमारे लिए कोई योजना आती है. हमारी मजबूरी सुनने वाला कोई नहीं.
मोहम्मद फईम, बुनकर, वाराणसी
अभी भी महंगाई उतनी ही है. 30 रुपये किलो वो चावल मिलता है जो खाने लायक नहीं है. खाने लायक चावल भी 60 रुपये किलो मिलता है.
मुश्ताक अहमद, बांसुरी वादक, वाराणसी

दिल्ली से वाराणसी आए सैलानी अक्षय प्रताप सिंह कहते कि वाराणसी में अभी काम पूरा नहीं हुआ है. हमारा अनुभव एवरेज है. साफ-सफाई की भी कमी है.

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