मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के भिण्ड के दबोह थाना क्षेत्र के अमाह गांव में एक परिवार पर कोरोना काल का कहर इस तरह टूटा की पूरा परिवार बिखर गया. पहले कोरोना से पिता की मौत हुई फिर माँ भी चल बसी. अब इस परिवार में 3 बच्चियां और दो बच्चे हैं. सबसे बड़ी बच्ची की उम्र 7 साल है, सबसे छोटा बच्चा 8 महीने का है. बच्ची अपने भाई बहनों की गांव वालों की मदद से भरण -पोषण कर रही है.
गांव में घर-घर जाकर भोजन मांगती है, तब जाकर इनकी भूख मिटती है. इतना ही नही यह छोटे-छोटे मासूम बच्चे टूटी-फूटी झोपड़ी में रहते है. जब बरसात में पानी गिरता है तो बगल में स्थित श्मशान घाट के टीन शेड के नीचे बैठकर सो जाते है.
सरकार ने किया था मदद का वादा
कोरोना के दौरान जिन परिवारों में बच्चों के माता-पिता की मौत हो गई थी, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) ने ऐसे परिवार के भरण-पोषण और उनकी पढ़ाई का खर्चा उठाने की घोषणा की थी. अब तक प्रशासन की नजर इन बच्चो पर नही पड़ी. लहार विधानसभा के दबोह थाना क्षेत्र के अमाह निवासी राघवेंद्र वाल्मीकि रिक्शा चलाकर इस परिवार का भरण-पोषण किया करता था.
फरवरी के अंतिम सप्ताह में कोरोना से राघवेंद्र की मौत हो गई. इसके बाद अंतिम संस्कार के लिए राघवेंद्र की पत्नी गिरिजा 5 बच्चो के साथ गांव आई. इसके बाद वो भी फिर से उत्तर प्रदेश उरई चली गई. मई महीने में कोरोना से गिरिजा की भी मौत हो गई, इसके बाद रिश्तेदार अंतिम संस्कार के लिए बच्चो के साथ उसके गांव अमाह गांव लेकर आए. अब रिश्तेदारों ने भी इन्हें छोड़ दिया.
परिवार की सबसे बडी बेटी 7 साल की निशा है. निशा से छोटा बाबू राजा जिसकी उम्र 5 साल है, उसके बाद मनीषा 3 साल, अनीता उम्र 2 साल सबसे छोटा बच्चा गोलू 8 माह का है. यह बच्चे कभी अपनी टूटी-फूटी झोपड़ी में रहते है तो कभी श्मशान घाट पर टीन के नीचे अपना आशियाना बनाते है.
कांग्रेस के पूर्व मंत्री ने विधायक निधि से की मदद
अब इन बच्चों का जीवन सरकारी दस्तावेजों में उलझ कर रह गया है. इनके पास मध्यप्रदेश सरकार का कोई दस्तावेज नहीं है, क्योंकि इनके माता-पिता उत्तर प्रदेश के उरई जिले में काम-धंधे पर चले गए थे.
अब सरकारी मदद के लिए इनके सरकारी दस्तावेज तैयार कराए जा रहे हैं. वही देर से ही सही अपनी विधानसभा से काँग्रेस के पूर्व मंत्री स्थानीय विधायक डॉ. गोविंद सिंह एक कार्यक्रम में शामिल होने अमहा गांव गए तो उन्हें गांव के कुछ लोगों ने इन बच्चों के बारे में बताया. इसके बाद उन्होंने तत्काल मदद की झड़ी लगा दी. उन्होंने बच्चों की मदद करने का फैसला लिया. खुद की जेब से 2 हजार रुपए नगद दिए, जबकि सरपंच और सचिव से 10-10 हजार और विधायक निधि से 20 हजार की मदद का भरोसा दिलाया.
विधायक बच्चों के रहने के लिए आवास की जिम्मेदारी भी ले रहे हैं. पिछले छह माह से अपने माता-पिता को गवाने के बाद दर-दर की ठोकर खा रहे बच्चों के इस हालात की भनक प्रशासन तक को नही लगी.
इस मामले में कलेक्टर का भी बयान आया है.
"मेरे द्वारा महिला बाल विकास की टीम गांव में भेजी गई, सोशल सर्वे व फैमली सर्वे कराया गया है. दादा हैं वह भी काफी बुजुर्ग जो उनकी परवरिश करने में सक्षम नही हैं. उनसे हमने बच्चों को बाल गृह भेजने की बात की जिस पर वह राजी नहीं हुए. फिर हमने उनकी काउंसलिंग करवाई और वह राज़ी हो गए हैं, बच्चों को बाल गृह या बालिका गृह में शीघ्र शिफ्ट कर दिया जाएगा. उनके पिता की डेथ के बाद माँ यूपी में चली गई थी, उसकी मृत्यु के प्रमाण एकत्रित किए जा रहे हैं. बच्चों को अनाथ नहीं रहने दिया जाएगा, उन्हें हर प्रकार की शासकीय योजना का लाभ दिलवाया जाएगा."डॉ. सतीश कुमार, कलेक्टर
शासकीय माध्यमिक विद्यालय, अमाहा के प्रधानाध्यापक राजनारायण दौरे कहते हैं कि हम बच्चों की हर संभव मदद के लिए तैयार हैं. दस्तावेजों के अभाव में जन्मतिथि न होने से समस्याओं का सामना करना पड़ा, लेकिन अब हमें इनकी जन्मतिथि मिल गई है. दो बच्चे प्रवेश के योग्य हैं. कल ही हम इनको प्रवेश दिलाएंगे और हम कोशिश करेंगे कि विभाग के द्वारा हर संभव मदद की जाय.
बच्चों के पड़ोस में रहने वाले सत्यपाल सिंह परिहार का कहना है कि बच्चों की जिंदगी किसी तरह चल रही है. हम ये चाहते हैं कि शासन से इनकी कुछ मदद हो जाय. हम शासन से मांग करते हैं कि यहां बिजली और पानी की व्यवस्था की जाय. अभी तक शासन से कोई मदद नहीं आई है. जो भी मदद की गई है वो सभी स्वयंसेवी है.
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