उत्तर प्रदेश पुलिस की तरफ से एक पूर्व आईएएस अधिकारी के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है. कहा जा रहा है कि अधिकारी ने यूपी सरकार की टेस्टिंग नीति को लेकर ट्विटर पर सवाल खड़े किए थे. जिसके बाद पूर्व अधिकारी सूर्य प्रताप सिंह के खिलाफ डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के तहत मामला दर्ज कर लिया गया. उनके खिलाफ आरोप हैं कि उन्होंने महामारी के दौरान अफवाह फैलाने का काम किया.
द प्रिंट में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक पूर्व आईएएस अधिकारी पर ये एफआईआर उनके ट्वीट के बाद हुई. उन्होंने बुधवार को एक ट्वीट किया था, जिसमें पूर्व अधिकारी ने यूपी के चीफ सेक्रेट्री पर आरोप लगाए थे कि उन्होंने कुछ जिलाधिकारियों को कोरोना की ज्यादा टेस्टिंग को लेकर धमकाया है. पूर्व आईएएस अधिकारी ने अपने ट्वीट में लिखा था,
“CM योगी की Team-11 की मीटिंग के बाद क्या मुख्य सचिव ने ज्यादा Corona Tests कराने वाले कुछ DMs को हड़काया कि “क्यों इतनी तेजी पकड़े हो, क्या ईनाम पाना है, जो टेस्ट-2 चिल्ला रहे हो ?” मुख्य सचिव स्थिति स्पष्ट करेंगे? यूपी की स्ट्रेटेजी: No Test= No Corona”
क्या हैं आरोप?
इस रिपोर्ट के मुताबिक पूर्व अधिकारी पर लखनऊ के हजरतगंज थाने में एफआईआर दर्ज की गई है. इस एफआईआर में कहा गया है कि उनका ट्वीट भ्रामक था और नुकसान पहुंचाने वाला था. इससे लोगों में कंफ्यूजन पैदा हो सकती है.
पूर्व आईएएस अधिकारी सूर्य प्रताप सिंह ड्यूटी के दौरान भी सरकार के खिलाफ आवाज उठाते आए हैं. अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री रहने के दौरान उन्होंने यूपी में हुए भ्रष्टाचार को लेकर अपनी आवाज उठाई थी. शायद यही कारण रहा है कि उनकी 25 साल की नौकरी में 54 बार उनका ट्रांसफर हुआ था.
बताया मौलिक अधिकारों का हनन
पूर्व आईएएस अधिकारी ने अपने ट्विटर हैंडल पर भी ये बात लिखी है. उन्होंने लिखा कि,
“25 साल में 54 ट्रांसफर जब मेरी सदनीयत व नीतियां नहीं बदल सके तो एक FIR क्या बदलेगी? सत्य पक्ष हमेशा सत्ता पक्ष पर भारी पड़ता है.”
इसके अलावा भी सूर्य प्रताप सिंह ने खुद पर लगे आरोपों को लेकर भी कई ट्वीट किए हैं. उन्होंने लिखा, "योगी आदित्यनाथ जी कोरोना केसों की संख्या छिपाने से ना प्रदेश का भला होगा और ना ही सरकार का. कोरोना की जांच करने की अनुमति सरकार से लेने की बाध्यता, मेरे सवाल पूछने पर मुकदमा, ये सभी मेरे मौलिक अधिकारों का हनन है जो संविधान मुझे देता है."
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