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UP: आवारा पशुओं के हमले में जा रही जानें- क्यों नहीं निकल पा रहा समाधान?

UP: उत्तर प्रदेश के अलग- अलग जिलों में पिछले एक माह मे आवारा पशुओं के हमलों में 15 से अधिक लोगों की मौतें हुई हैं.

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(Uttar Pradesh) उत्तर प्रदेश में आवारा पशुओं का आतंक फसलों के नुकसान पहुंचाने तक ही सीमित नहीं है. प्रदेश में पिछले एक माह मे आवारा पशुओं के हमलों में उत्तर प्रदेश के अलग- अलग जिलों में 15 से अधिक लोगों की मौत हुई है. कई लोग गंभीर रूप से घायल भी हुए हैं. विशेषज्ञों की मानें तो किसानों के जानमाल के हो रहे लगातार नुकसान के बावजूद आवारा पशुओं की समस्या के समाधान को लेकर राज्य की सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया है. जो कदम उठाए थे वह नाकाफी साबित हो रहे हैं.

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सीतापुर में चार लोगों की मौत 

सीतापुर के कुतुबपर कस्बे में शुक्रवार 25 मई की शाम को एक 55 वर्षीय महिला कुंता देवी पत्नी तनकुन्नु अपने घर के बाहर काम कर रही थीं. इस दौरान एक सांड ने उनपर हमला कर दिया और सींग उनके पेट के आरपार हो गई. घायल कुंती देवी को लखनऊ के ट्रामा सेण्टर ले जाया गया जहां इलाज के दौरान रविवार को उनकी मौत हो गई.

वही जिले के कसमण्डा विकास खण्ड की ग्राम पंचायत हरिहरपुर के मजरा लखनापुर में गुरूवार 25 मई को दोपहर में एक सांड ने 45 वर्षीय सन्तोष कुमार पुत्र छोटेलाल पर हमला कर दिया. इस हमले में सांड की सींग सन्तोष के सीने के आर पार हो गयी. और संतोष की मौत हो गई.

इसी कसमण्डा विकास खण्ड के कबरा गांव में 35 वर्षीय रामलोटन सुबह मॉर्निंग वॉक पर निकले थे घर वापस लौटते समय उनपर भी  सांड ने हमला कर दिया. सांड के इस हमले में रामलोटन बुरी तरह जख्मी हो गये. इस दौरान आसपास मौजूद लोगों ने सांड को भगाया और बुजुर्ग को निजी अस्पताल में भर्ती कराया जहा इलाज के दौरान उनकी भी मौत हो गई.

हाल ही में कसमण्डा विकास खण्ड के सरवा जलालपुर गांव में भी गुड्डू शुक्ला पुत्र विष्णु कुमार की मौत भी सांड के हमले में हुई थी. गुड्डू अपने खेत से भगाकर सांड को गौशाला ले जाने के प्रयास कर रहे थे उसी समय उग्र सांड ने उन पर हमला कर दिया था. जब गुड्डू की चीख पुकार सुनकर गांव के लोग पहुचे तो सांड ने उन पर भी हमल कर दिया. सांड के इस हमले में 32 वर्षीय विजय पाल गौर, 45 वर्षीय मलखे और 16 वर्षीय सत्यम भी गंभीर रूप से घायल हो गये.

अमरोहा में सेना के जवान व चित्रकूट में दंपति की मौत

उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले में 29 मई को बावनखेड़ी गांव के पास हसनपुर अतरसी मार्ग पर एक आवारा सांड ने एक बाइक को टक्कर मार दी. इससे बाइक पर सवार सेना के एक जवान की मौत हो गई, जबकि उनकी पत्नी और दो बच्चे गंभीर रूप से घायल हो गए. 28 साल के सिपाही अंकित कुमार पंजाब के में 507 एएससी बटालियन में तैनात थे. वह एक दोस्त की शादी में शामिल होने के लिए को छुट्टी पर अमरोहा आए थे. सांड की सींग पेट में घुसने से अंकित कुमार की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि उनकी पत्नी सोनम  और उनके दो बच्चे भी घायल हो गए.

वहीं चित्रकूट जिले में 26 मई को  झांसी-मिर्जापुर हाईवे पर शिवरामपुर चौकी के आवारा सांड ने एक बाइक को टक्कर मार दी. इससे बाइक सवार पति-पत्नी की मौत हो गई, जबकि दो साल का बालक मामूली रूप से घायल हुआ. इस हादसे में मध्य प्रदेश के सतना निवासी 30 साल के विजय यादव और उनकी पत्नी संगीता की मौत हो गई.

उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में 20 मई को कुंडा इलाके के बरा भीखपुर रानी की सराय गाँव में 55 साल के प्रताप बहादुर सिंह शाम को खेत की तरफ गए हुए थे. वहां से वह घर की तरफ लौट रहे थे कि रास्ते में सांड ने उन पर अचानक हमला कर दिया. उसकी सींग सीधे उनके गले में जा फंसी. जिसके बाद उनकी मौत हो गई.

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कुछ दिन पहले इसी इलाके के झींगुर गांव निवासी 75 साल के बद्री प्रसाद द्विवेदी की भी जान ऐसे ही चली गई थी. वह जानवर को बांधने के लिए गए थे. उसी समय वहां घूम रहे एक सांड ने उन पर हमला कर दिया था. शोर सुनकर परिवार के लोग पहुंचे और उन्हें चिकित्सक के पास ले गए. वहां से हालत खराब होने पर सीएचसी कुंडा ले गए, लेकिन उनकी भी मौत हो गई थी.

क्यों नहीं कारगर हो रही आवारा पशुओं पर सरकारी योजनाएं? 

आवारा पशुओं से रोड पर एक्सीडेंट और उनके हमले से मरने वाले लोगों के मामले प्रदेश के रामपुरहमीरपुरहापुड़मुरादाबाद और पीलीभीत जिले से भी आए हैं. विशेषज्ञों की माने तो आवारा पशुओं की समस्या को लेकर सरकार ने जो कदम उठाए थे उससे इस गंभीर मामले का हल होता हुआ नहीं दिख रहा है. कृषि और किसान समस्या पर खास नजर रखने वाले उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार अरविंद शुक्ला बताते हैं कि जब तक आवारा पशुओं को किसानों के लिए उपयोगी नहीं बनाया जाएगा तब तक इस समस्या का समाधान नहीं निकलेगा. अरविंद शुक्ला ने क्विंट हिंदी से बातचीत के दौरान बताया,
इस समस्या का समाधान तभी होगा जब दूध ना देने वाले पशु जैसे सांड, बैल और बछड़े- इनको किसी तरीके से किसानों के लिए उपयोगी बनाया जाए. इन आवारा पशुओं के लिए सिर्फ गौशाला बना देना कोई स्थाई समाधान नहीं है. छत्तीसगढ़ सरकार की "गोधन न्याय योजना" इस समस्या के समाधान की दिशा में एक अच्छी पहल है जिसका अनुसरण में दूसरे राज्य भी कर सकते हैं. इस योजना के अंतर्गत सरकार किसानों से गोबर खरीद कर जैविक वर्मी कंपोस्ट खाद बनाती है. इस खाद को सस्ती दरों पर किसानों को दोबारा बेच कर जैविक खाद के इस्तेमाल बढ़ावा भी मिल रहा है साथ ही साथ आवारा पशुओं के खुले में चरने पर रोक भी लगी है.
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सरकार का दावा- ब्लॉक स्तर पर खुली हैं गौशालाएं 

आवारा पशुओं को स्कूल में बंद कर किसानों ने कई मौकों पर विरोध दर्ज कराया. ऐसा विरोध प्रदर्शन पूरे प्रदेश में देखने को मिला. लगातार हो रहे विरोध के बीच सरकार ने स्थाई समाधान को लेकर किसानों को आश्वासन भी दिया लेकिन जमीन पर इसका असर देखने को नहीं मिल रहा है. यही कारण है कि संवेदनशील मुद्दे पर विपक्ष भी हमलावर है. समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने क्विंट हिंदी से बातचीत के दौरान कह,

एक महीने से ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश में किसानों की लगातार मौतें हो रही हैं. उनकी फसलें बर्बाद हो रही हैं. यहाँ तक कि गौशालाओं में गायें भी मर रही हैं.  मौजूदा सरकार की जिम्मेदारी है कि अगर पशुओं के हमले से किसी की मौत हो रही है तो उसको पर्याप्त मुआवजा दे. इन पशुओं के कारण जो फसलें उजड़ गई हैं  उसका भी कोई मुआवजा नहीं है. ऐसी सरकार को हम क्या ही कहें?
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वहीं अगर सत्ताधारी पार्टी की बात करें तो पशुओं के आतंक पर गौशालाओं का निर्माण कराने का दावा कर अपना पीठ थपथपाते हुए नजर आई. बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने कहा

हमारे पास इसका कोई आधिकारिक डाटा तो नहीं है कि यह मौतें वास्तव में पशुओं के हमले से हुई हैं या इनकी कोई और वजह रही है.  लेकिन यह बात सही है कि उत्तर प्रदेश में पिछली सरकारों ने कभी भी आवारा पशुओं को लेकर कोई समेकित नीति नहीं बना रखी थी और केवल अवैध बूचड़ खाने ही एक मात्र समाधान बना रखा था. आज कृषि के तौर तरीक़ों में परिवर्तन आया है. जिसके कारण छुट्टा जानवर बड़ी संख्या में हमारे सामने हैं.

"सरकार ने इसको लेकर बड़ी कोशिशें की हैं. ब्लॉक स्तर पर हमने इस तरह की गौशालाएँ खोली हैं जहाँ पर हमने इस तरह के छुट्टा जानवरों को रखने की व्यवस्था बनाई है. इसको लेकर सरकार लगातार प्रयास कर रही है. जन समर्थन की भी अपेक्षा की जा रही है ताकि जनता इसमें सहयोग करे, सामाजिक संगठन इसमें सहयोग करें और जो ऐसे जानवर हैं जो कृषि के लिए अनुपयोगी हैं उनको गौशालाओं तक पहुंचाएं और उनके संरक्षण का काम करें."

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