"जब गुजरात में कुछ भी होता है, या फिर उत्तर प्रदेश मजदूरों के अधिकारों को छीनने के लिए एक नया अध्यादेश लाती है तो आप उन पर सवाल खड़े क्यों नहीं करते हैं? क्यों आप सिर्फ पश्चिम बंगाल और वहां रहने वाले लोगों को नोटिस भेजकर टारगेट कर रहे हैं?" 11 मई को पीएम मोदी के साथ हुई बैठक में ममता बनर्जी कुछ इसी अंदाज में नजर आईं. लेकिन ममता ने ऐसा क्यों कहा इसे गुजरात और बंगाल के आंकड़ों से समझते हैं.
अगर गुजरात से बंगाल की तुलना करें तो जहां पश्चिम बंगाल पिछले कई दिनों से कम टेस्टिंग रेट, कोरोना मरीजों का डेटा छिपाने और अन्य चीजों को लेकर मीडिया की सुर्खियों में है, वहीं गुजरात में करीब-करीब यही हाल होने के बाद भी उसकी कहीं बात नहीं होती है.
गुजरात Vs बंगाल- कोरोना का आंकड़े
पश्चिम बंगाल की अगर बात करें तो यहां कोरोना का पहला मामला 18 मार्च को आया. वहीं गुजरात में ठीक इसके एक दिन बाद यानी 19 मार्च को कोरोना का पहला केस पाया गया. अब करीब दो महीने बाद के हालात देखें तो आज महाराष्ट्र के बाद गुजरात देश का ऐसा दूसरा राज्य बन चुका है, जहां पर कोरोना के सबसे ज्यादा केस और मौतें हुई हैं. इसके अलावा गुजरात का केस फेटेलिटी रेशियो (CFR) भी काफी बुरा है. वहीं देश में बंगाल के बाद मृत्यु दर में गुजरात का दूसरा नंबर आता है.
इसीलिए अब केंद्र सरकार के बंगाल पर लगातार आरोप लगाने और गुजरात को अनदेखा करने को लेकर अब कई लोग सवाल खड़े कर रहे हैं.
गुजरात में केस फेटेलिटी रेशियो (CFR) सबसे बुरा इसलिए है क्योंकि यहां टेस्टिंग की संख्या काफी कम है. अप्रैल के अंत तक बंगाल में हर 10 लाख लोगों में 200 लोगों का टेस्ट किया जा रहा था और राज्य में करीब 650 कोरोना पॉजिटिव केस थे. लेकिन इसके ठीक दो हफ्ते बाद 12 मई को बंगाल 10 लाख लोगों में 585 लोगों का टेस्ट कर रहा है, जबकि कुल केस की संख्या 2173 पहुंच चुकी है.
अब अगर इन आंकड़ों की तुलना गुजरात से करें तो, उसने अप्रैल महीने के अंत में बंगाल से ज्यादा टेस्ट किए. गुजरात ने हर 10 लाख लोगों में 721 लोगों का टेस्ट किया. लेकिन 30 अप्रैल को राज्य में 4395 मामले सामने आ चुके थे.
इन दोनों ही राज्यों पर ये आरोप लग रहा है कि उन्होंने केस बढ़ने के स्तर को देखते हुए टेस्टिंग की स्पीड नहीं बढ़ाई. जिससे आज यहां हजारों की संख्या में लोग कोरोना पॉजिटिव हैं.
कमियों के मामले में गुजरात को किया नजरअंदाज
इसी तरह बंगाल की करोना से होने वाली मौतों का आंकड़ा छिपाने और उनकी बीमारियों को लेकर डेटा छिपाने के लिए अलोचना हुई, लेकिन गुजरात ने भी 5 मई से राज्य में होने वाली मौतों को लेकर ये नहीं बताया कि वो पहले किसी बीमारी से पीड़ित थे या फिर नहीं. फिर भी गुजरात की कोई आलोचना नहीं हुई.
गुजरात का केस फेटेलिटी रेशियो (CFR) यानी कुल केसों में मौतों का अनुपात 1 हजार कंफर्म केस में 59 है. जो देश के कुल केस फेटेलिटी रेशियो (33) से काफी ज्यादा है.
अब फिर से वही सवाल उठता है कि जब दोनों राज्यों ने एक ही तरह की गलतियां की हैं और डेटा छिपाने से लेकर टेस्टिंग तक सब कुछ एक जैसा है तो सिर्फ एक राज्य पर केंद्र का ध्यान क्यों बार-बार जा रहा है.
गुजरात के लिए एक और परेशानी की बात ये है कि यहां कोरोना से मरने वालों में युवाओं की संख्या ज्यादा है. वहीं दूसरी तरफ जिन लोगों की मौत हो रही है, उनमें से कई ऐसे हैं जिन्हें पहले कोई बीमारी नहीं थी. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 30 अप्रलै तक राज्य में कोरोना से 18 प्रतिशत मौतें ऐसी हुईं, जिन्हें पहले से कोई भी बीमारी नहीं थी. लेकिन 6 मई को ये 27 प्रतिशत तक पहुंच गया. रिपोर्ट में ये भी बताया गया कि मरने वालों में 10 प्रतिशत ऐसे लोग थे, जिनकी उम्र 41 साल से कम थी.
ये पूरा डेटा बताता है कि गुजरात का हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर कितना कमजोर है, जो अपने राज्य में बढ़ते मामलों पर लगाम लगाने में नाकाम नजर आ रहा है. लेकिन इसकी कहीं भी कोई चर्चा नहीं है. जबकि बंगाल सरकार को कई बार इसके लिए फटकार लगाई जा चुकी है.
गुजरात और बंगाल को लेकर केंद्र का रवैया
जहां आपने देखा कि बंगाल और गुजरात कोरोना के आंकड़ों और अन्य बातों को लेकर एक समान हैं, वहीं केंद्र का रवैया दोनों राज्यों के लिए बिल्कुल अलग है. जिससे सवाल खड़े होने शुरू हो चुके हैं कि केंद्र इस कोरोना जैसी महामारी में भी राज्यों को राजनीतिक के चश्मे स क्यों देख रहा है?
दोनों राज्यों की तुलना करने पर ये पता चलता है कि बंगाल के लिए केंद्र का रवैया हमेशा डांट-फटकार लगाने वाला रहा है, वहीं दूसरी तरफ गुजरात के लिए केंद्र एक अभिभावक की भूमिका है, जो एक परेशान बच्चे की मदद करने के लिए तैयार है. इसे इस तरह से भी समझा जा सकता है कि गुजरात में केंद्र ने इंटर मिनिस्टीरियल टीमों को नहीं भेजा. जबकि 21 अप्रैल को कोलकाता में केंद्र की दो टीमें भेज दी गईं, जिसके बाद ममता बनर्जी ने कहा था कि उन्हें टीमों के पहुंचने के करीब 3 घंटे बाद इस बात की जानकारी मिली.
लेकिन मध्य प्रदेश को छोड़कर बाकी सभी विपक्षी राज्यों में टीमें भेजने पर उठे सवालों के बीच केंद्र ने 24 अप्रैल को गुजरात सहित दो अन्य राज्यों में मिनिस्टीरियल टीम भेजने की बात कही. इसके बाद गुजरात पहुंची टीमों ने वहां व्यवस्थाओं को लेकर क्या-क्या देखा इसका कोई प्रचार-प्रसार नहीं किया गया.
लेकिन बंगाल के साथ कुछ अलग हुआ. यहां पहुंची केंद्र की टीमों ने पश्चिम बंगाल सरकार की कई कमियों को गिनाया. इसे लेकर ममता सरकार को लेटर लिखे गए, जो मीडिया में भी लीक हुए. जिनमें बताया गया था कि ममता सरकार सहयोग नहीं कर रही है, डेटा को लेकर भी कई गड़बड़ियां बताईं गईं और कहा गया कि राज्य में कई जगह लॉकडाउन की धज्जियां उड़ रही हैं. हालांकि गुजरात में क्या हुआ, अब तक किसी को भी इसकी जानकारी नहीं है.
इसका नतीजा ये रहा कि पिछले कुछ हफ्तों में बीजेपी आईटी सेल के मुखिया अमित मालवीय, बीजेपी के नेता बाबुल सुप्रियो, कैलाश विजयवर्गीय और स्वपनदास गुप्ता लगातार ममता सरकार पर हमलावर रहे हैं. सोशल मीडिया पर ममता सरकार की हर कमी को गिनाया जा रहा है. वहीं नेशनल मीडिया ने इसी ट्रेंड को अपनाए रखा.
लेकिन ये सब होने के बाद अब जो लोग ममता को पसंद नहीं करते हैं और मानते हैं कि मौजूदा हालात के लिए ममता सरकार को ही जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए, वो भी अब ये सवाल पूछ रहे हैं क्या राज्य के साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है?
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