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फ्रिज, कूलर, एसी साफ है तो ब्लैक फंगस का कोई खतरा नहीं? गलत दावा

फ्रिज में जमी ब्लैक फंगस और Mucormycosis में अंतर है. शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने पर ये डेवलप होता है

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सोशल मीडिया पर एक मैसेज वायरल हो रहा है, जिसके मुताबिक घर के सामान पर जमा होने वाली काली फफूंद ही वो जानलेवा Mucormycosis है, जो कोरोना संक्रमित मरीजों को अपनी चपेट में ले रहा है. वायरल मैसेज में कहा गया है कि अगर आप खाने की चीजों और फ्रिज वगैरह पर ये काली फफूंद जमा नहीं होने देते हैं, तो Mucormycosis आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता. सोशल मीडिया पर ये मैसेज एक बहुत ही गंभीर चेतावनी की तरह शेयर किया जा रहा है.

हालांकि, वेबकूफ की पड़ताल में वायरल मैसेज में किया जा रहा दावा भ्रामक निकला. इंटरनल मेडिसिन एक्सपर्ट बेला शर्मा ने क्विंट से बातचीत में बताया कि Mucormycosis होने के पीछे बाहरी बैक्टीरिया या फंगस के अलावा भी कई फैक्टर काम करते हैं. Mucormycosis की चपेट में इंसान तब आता है जब शरीर की बीमारियों से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है.

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दावा

सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा मैसेज है -

अपने-अपने घरों के फ्रिज के दरवाजे खोलिए उसमें एक रबर लगी मिलेगी.उस रबर पर अगर काला काला फंगस दिख रहा हो तो तत्काल उसकी अच्छे ढंग से सफाई कर दें,और बराबर उसकी सफाई पर ध्यान दें

उस रबर पे वो जो काला काला है, वही है म्यूकोरमाइकोसिस यानी ब्लैक फंगस

अगर आपने ध्यान न दिया तो ये फंगस आपके फ्रिज के अंदर रखे खाद्य पदार्थों के माध्यम से बेहद आसानी से आपके अंदर प्रवेश कर जाएगा

👉आटा गूंथ कर एकदम मत रखें,

👉प्याज काटकर एक दम मत रखें,

👉रखी हुई ब्रेड कत्तई यूज न करें,

सब कुछ ताजा और तुंरन्त यूज करें

और जिस भी खाद्य पदार्थ पर आपको काला काला फंगस टाइप का कुछ दिखे उसको तुरन्त सावधानी से नष्ट कर दें

अपने कूलर, एसी और आरओ मशीन की टोटी भी चेक करते रहिएगा

ये मैसेज फेसबुक के साथ ट्विटर पर भी शेयर हो रहा है

यही दावा करते अन्य पोस्ट्स का अर्काइव देखने के लिए यहां,यहां और यहां क्लिक करें.

पड़ताल में हमने क्या पाया

सोशल मीडिया पर किए जा रहे दावे की पुष्टि के लिए हमने कुछ विश्वसनीय प्लेटफॉर्म्स पर ब्लैक फंगस (Mucormycosis) से जुड़ी जानकारी जुटानी शुरू की.

देश की शीर्ष रिसर्च संस्था इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने कोरोना के बीच फैल रहे Mucormycosis को लेकर एक एडवायजरी जारी की है. इसके मुताबिक, पहले से ही बीमारियों से जूझ रहे लोगों में वातावरण में मौजूद बैक्टीरिया, वायरस आदि से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है. जिस कारण Mucormycosis होता है.

अमेरिकी रिसर्च संस्था सेंटर फॉर डिजीस कंट्रोल एन्ड प्रिवेंशन (CDC) के मुताबिक, Mucormycosis एक फंगल इंफेक्शन है, जो कि मुख्य रूप से उन लोगों को प्रभावित करता है जो स्वास्थ्य समस्याओं के चलते ऐंसी दवाइयां ले रहे हैं, जिनसे शरीर की बीमारियों से लड़ने की क्षमता खत्म होती है.

कैंसर के मरीजों, डायबिटीज के मरीजों के अलावा उन्हें Mucormycosis का खतरा ज्यादा है जिनकी या तो स्किन से जुड़ी सर्जरी हुई है, ऑर्गन ट्रांसप्लांट हुआ है या फिर शरीर मे आयरन की मात्रा काफी ज्यादा है. CDC के मुताबिक, हवा में मौजूद फंगस को सांस के जरिए अंदर लेने के बाद ये फेफड़ों और साइनस को प्रभावित करता है.

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CDC और ICMR की जानकारी से ये निष्कर्ष निकलता है कि Mucormycosis वातावरण में पहले से मौजूद गंदगी के जरिए ही डेवलप होता है, लेकिन ये शरीर को तभी प्रभावित करता है जब शरीर की बीमारियों से लड़ने की क्षमता कम हो गई हो.

खाने के सामान पर जमा होने वाली काली फफूंद ही Mucormycosis है?

ICMR ने ब्लैक फंगस को लेकर जो एडवाइजरी जारी की है, उसमें खासतौर पर फ्रिज, कूलर में जमी फफूंद से mucoromycosis का खतरा होने की बात कहीं नहीं है. हालांकि धूल-मिट्टी वाली जगह पर मास्क पहनने, गार्डनिंग जैसे काम करते वक्त ग्लब्स और मास्क के साथ लंबे ट्राउजर और लंबी स्लीव्स वाली शर्ट पहनने की हिदायत जरूर दी गई है. साथ ही ICMR ने ऑक्सीजन कंसंट्रेटर को हमेशा साफ रखने की भी सलाह दी है. यानी वातावरण में मौजूद हर तरह की गंदगी से बचना ज़रूरी है. सिर्फ फ्रिज में जमी हुई फफूंद से नहीं

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एक्सपर्ट्स के मुताबिक सिर्फ बाहरी बैक्टीरिया और फंगस से Mucoromycosis नहीं होता. इंटरनल मेडिसिन एक्सपर्ट बेला शर्मा बताती हैं कि बाहरी फंगस के अलावा कई सारे फैक्टर मिलकर शरीर में mucoromycosis बनाते हैं. ये अंदर जाकर Mucoromycosis का रूप तब लेते हैं जब शरीर कमजोर हो.

हमारे वातावरण में फंगस मौजूद रहती है. खाने-पीने की चीज़ों की तरफ फंगस और बैक्टीरिया आकर्षित होते है. लेकिन, शरीर मे Mucormycosis डेवलप होने के पीछे फंगस के अलावा कई फैक्टर शामिल होते हैं. जैसे इम्युनिटी कम होना, शुगर लेवल हाई होना. ऐसे मामले भी आए हैं जहां स्टेरॉयड या एंटीबायोटिक दवाइयों के हाई डोज़ से Mucormycosis हो गया. खाने-पीने की चीजों और हमारे आसपास फफूंद होना हानिकारक है. लेकिन Mucormycosis के पीछे कारण सिर्फ फंगस नहीं है. 
डॉ. बेला शर्मा, एडिशनल डायरेक्टर इंटरनल मेडिसिन, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट

अलग-अलग वस्तुओं पर जमा होने वाली काली फफूंद ही Mucormycosis होती है? इस सवाल का जवाब देते हुए पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ विकास मौर्य कहते हैं

वायरल मेसैज में दी गई जानकारी सही नहीं है. खाने की चीजों पर या फिर हमारे सामान्य वातावरण में जो फफूंद होती है वो Mucormycosis नहीं है. ये बात सही है कि जहां साफ-सफाई नहीं होती वहीं फफूंद जमती है. लेकिन ये Mucormycosis से बिल्कुल अलग है. इसमें कोई शक नहीं.

ऐसी कोई रिसर्च रिपोर्ट भी हमें नहीं मिली, जिससे पुष्टि होती हो कि घर के समान पर जमी फफूंद साफ कर mucormycosis होने का खतरा कम या खत्म हो जाता है.

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कोरोना के बीच ही क्यों बढ़ रहा है ब्लैक फंगस?

कोरोना के बीच बढ़ रहे ब्लैक फंगस के मामलों को लेकर डॉ. मैथ्यू वर्गीज ने क्विंट से हुई बातचीत में बताया था कि अंधाधुंध एंटीबायोटिक का सेवन करने से भी इसका खतरा बढ़ा है क्योंकि एंटीबायोटिक की वजह से शरीर में मौजूद गुड या नैचुरल बैक्टीरिया खत्म हो जाता है और फंगस को बढ़ने का मौका मिलता है.

वहीं कोविड के दौरान रोग प्रतिरोधक क्षमता घटने से भी फंगस के बढ़ने की आशंका होती है. इसके अलावा लगातार स्टेरॉयड के इस्तेमाल से इम्युनिटी कम होती है और ब्लैक फंगस होने का खतरा बढ़ता है.

डॉ. मैथ्यू की बात से स्पष्ट होता है कि हाल में Mucormycosis के जो केस बढ़ रहे हैं, उसकी वजह फ्रिज में जमी फफूंद नहीं, कोरोना के कारण कमजोर होता शरीर है. स्टेरॉयड और एंटीबायोटिक के हाई डोज से लोगों के शरीर में बीमारियों से लड़ने की क्षमता कम हो रही है, इस वजह से Mucormycosis के मामले बढ़ रहे हैं.

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ये बात सच है कि बेसिक हाइजीन के लिए घर मे जमी फंगस को साफ करना चाहिए, लेकिन सिर्फ ऐंसा करके ये मान लेना सही नहीं है कि आप Mucormycosis की चपेट में नहीं आएंगे.

मतलब साफ है - वातावरण में पहले से मौजूद बैक्टीरिया और फंगस ही शरीर मे जाकर Mucormycosis का रूप लेते हैं ये बात सच है. लेकिन फ्रिज, कूलर, ऐसी में जमी ब्लैक फंगस और Mucormycosis में अंतर है. शरीर मे ये तब डेवलप होता है जब शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है.

(ये स्टोरी द क्विंट के कोविड-19 और वैक्सीन पर आधिरित फैक्ट चेक प्रोजेक्ट का हिस्सा है, जो खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के लिए शुरू किया गया है)

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