91 साल पहले 23 मार्च 1931 को शहीद-ए-आजम भगत सिंह (Bhagat Singh) को फांसी दी गई थी. भगत सिंह की फांसी को लेकर एक दावा हमेशा से किया जाता रहा है कि महात्मा गांधी ने उनकी फांसी रोकने के लिए कोई प्रयास नहीं किया.
हालांकि, ये दावा सच नहीं है, ऐसे कई दस्तावेज सार्वजनिक हो चुके हैं जिनसे पुष्टि होती है कि महात्मा गांधी ने ब्रिटिश हुकूमत से एक नहीं कई बार भगत सिंह की फांसी रुकवाने का आग्रह किया था.
ऐतिहासिक दस्तावेजों से पता चलता है कि गांधी ने वाइसरॉय लॉर्ड इरविन से न सिर्फ दो बार भगत सिंह की फांसी स्थगित करने का आग्रह किया. बल्कि 23 मार्च, 1931 को एक पत्र लिखकर फांसी पर एक बार फिर विचार करने को भी कहा था.
दावा
आए दिन सोशल मीडिया पर एक खास नैरेटिव फैलाने के लिए ये दावा किया जाता है.
भगत सिंह की फांसी रोकने के लिए महात्मा गांधी ने कुछ नहीं किया?
ये दावा बिल्कुल निराधार है कि महात्मा गांधी ने भगत सिंह की फांसी रुकवाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया.
mkgandhi.org पर महात्मा गांधी की लॉर्ड इरविन से कई चरणों में हुई उस बातचीत का जिक्र है, जिसमें उन्होंने भगत सिंह की फांसी को लेकर लॉर्ड इरविन से चर्चा की थी. इतिहास के स्कॉलर चंदरपाल सिंह ने किताब Gandhi Marg, Vol. 32 के हवाले से बताया है कि
गांधी और इरविन के बीच 17 फरवरी से 5 मार्च, 1931 के बीच दिल्ली /इरविन पैक्ट को लेकर बातचीत हुई. बातचीत से पहले महात्मा गांधी ने ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं दिया था कि वो भगत सिंह की फांसी को लेकर बात करेंगे. महात्मा गांधी ने 18 फरवरी को वाइसरॉय इरविन के सामने भगत सिंह का मुद्दा उठाया.
महात्मा गांधी यंग इंडिया में लिखते हैं
भगत सिंह के बारे में बात करते हुए मैंने उनसे (लॉर्ड इरविन से) कहा 'इसका हमारी वर्तमान बातचीत से कोई संबंध नहीं, हो सकता है ये मेरी तरफ से थोड़ी अनुपयुक्त बातचीत लगे. पर अगर आप इस माहौल को उचित समझें तो भगत सिंह की फांसी आपको स्थगित कर देनी चाहिए.'
वाइसरॉय को ये बात बहुत अच्छी लगी. उन्होंने कहा 'मुझे अच्छा लगा कि आपने ये बात मेरे सामने इस तरह से रखी. सजा का वापस लेना एक मुश्किल बात हो सकती है, लेकिन फांसी स्थगित करने पर विचार किया जा सकता है
हालांकि, अब यहां ये सवाल उठ सकता है कि क्या गांधी सिर्फ भगत सिंह की फांसी स्थगित करने को लेकर प्रयास कर रहे थे? फांसी रुकवाने के लिए नहीं? इसका जवाब भी चंदरपाल सिंह के इस रिसर्च पेपर में मिलता है. कानूनी तौर पर पीवी काउंसिल के फैसले के बाद वाइसरॉय की तरफ से फांसी रोका जाना संभव नहीं था. कांग्रेस पहले ही इसकी कानूनी संभावना तलाश चुकी थी.
29 अप्रैल, 1931 को विजय राघवचारी को लिखे पत्र में महात्मा गांधी ने स्वीकारा कि ''कानूनविद तेज बहादुर ने वाइसरॉय से इस बात पर चर्चा की है कि फांसी रोके जाने की कोई कानूनी संभावना है या नहीं, पर ऐसी कोई संभावना नहीं है.''
इन तथ्यों से यही समझ आता है कि गांधी ये जान चुके थे कि कानूनी तौर पर पीवी काउंसिल के फैसले के बाद वाइसरॉय फांसी की सजा को पूरी तरह रोक नहीं सकते. इसलिए गांधी ने फांसी रोकने की जगह फांसी को स्थगित (पोस्टपोन) करने पर जोर दिया.
महात्मा गांधी ने भगत सिंह की फांसी का मुद्दा दूसरी बार तब उठाया जब उनकी 19 मार्च को इरविन से पैक्ट के नोटिफिकेशन को लेकर मुलाकात हुई. इरविन ने इस बातचीत को नोट भी किया था और बाद में वो कारण गिनाए कि गांधी के आग्रह के बाद भी उन्होंने भगत सिंह की फांसी स्थगित करने का फैसला क्यों नहीं लिया.
23 मार्च को भी गांधी ने इरविन को लिखा था पत्र
वैसे तो भगत सिंह को फांसी 24 मार्च, 1931 को होनी थी. लेकिन, ब्रिटिश हुकूमत ने एक दिन पहले ही 23 मार्च को उन्हें फांसी दे दी थी. महात्मा गांधी ने फांसी की निर्धारित तारीख 24 मार्च से ठीक एक दिन पहले यानी 23 मार्च, 1931 को लॉर्ड इरविन को पत्र लिखकर भगत सिंह की फांसी रोकने की दरख्वास्त की थी.
इस पत्र में गांधी लिखते हैं कि
आम भावना चाहे वो सही है या गलत, वो यही है कि फांसी रुकनी चाहिए. अगर सिद्धांत दांव पर न लगे हों, तो फर्ज होता है आम भावना का सम्मान करना.
अगर फांसी रुकती है तो आंतरिक शांति बढ़ेगी. अगर फांसी नहीं रुकती है तो शांति भंग होने की संभावना काफी ज्यादा है.
क्रांतिकारी पार्टी ने मुझे आश्वासन दिया है कि, ये जानें (भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव) अगर बच जाती हैं तो पार्टी अपने हाथ बांध लेगी. जाहिर अगर इस फैसले से हत्याएं रुक रही हैं तो इस सजा को खत्म करना मेरे विचार से कर्तव्य बन जाता है.
फांसी, एक न बदला जाने वाला फैसला है. पर अगर आपको लगता है कि इस फैसले में थोड़े भी बदलाव की संभावना है, तो मैं आपसे दोबारा इसकी समीक्षा करने का आग्रह करूंगा.
अगर मेरी मौजूदगी जरूरी है तो मैं खुद भी आ सकता हूं. हालांकि मैं बोल नहीं सकता पर मैं जो कहना चाहता हूं उसे सुन और लिख सकता हूं.
कांग्रेस ने की थी भगत सिंह की फांसी के बाद निंदा
कांग्रेस नेता, सेना अधिकारी और राजनीतिक विश्लेषक प्रवीण दवर का लेख हमें मिला, जिसमें उन्होंने तथ्यों के जरिए स्पष्ट किया है कि किस तरह कांग्रेस में भी भगत सिंह की फांसी को लेकर नाराजगी थी.
प्रवीण के मुताबिक, कांग्रेस के अधिवेषण में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने एक प्रस्ताव पास किया गया, जिसका मदन मोहन मालवीय ने भी समर्थन किया था.
कुलदीप नैयर की किताब The Life and Trial of Bhagat Singh के मुताबिक
महात्मा गांधी ने इस प्रस्ताव के लिए नेहरू को चुना, क्योंकि गांधी का मानना था कि युवाओं में वो ज्यादा लोकप्रिय हैं.
भगत सिंह की फांसी के बाद कांग्रेस अधिवेषण में पेश किया गया प्रस्ताव कुछ यूं था.
''कांग्रेस किसी भी रूप में राजनीतिक हिंसा से खुद को अलग और अस्वीकार करते हुए, स्वर्गीय सरदार भगत सिंह और उनके साथियों, सुखदेव और राजगुरु की बहादुरी और बलिदान के साथ है, साथ ही उनके परिवारों के साथ शोक व्यक्त करती है. कांग्रेस की राय है कि ये तीन फांसियां राष्ट्र की मांग का जानबूझकर किया गया उल्लंघन हैं.''
साफ है - सोशल मीडिया पर फैलाया जा रहा ये नैरेटिव सही नहीं है कि महात्मा गांधी ने भगत सिंह की फोंसी को रोकने के लिए कोई प्रयास नहीं किया.
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