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गलत सूचनाओं के फैलने में इमोशन्स की क्या होती है भूमिका?

इस वीडियो में जानिए कि कैसे हम हमारी भावनाओं की वजह से गलत सूचनाओं के झांसे में आ जाते हैं.

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स्क्रिप्ट एडिटोरियल इनपुट: कृतिका गोयल, अभिलाष मलिक

वीडियो एडिटर: विवेक गुप्ता

कभी कोई वीडियो या फोटो शेयर कर दावा किया जाता है कि किसी जगह का हेल्थ सिस्टम पूरी तरह से चरमरा गया है, तो कभी फेक न्यूज के जरिए सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश होती है. भले ही इन विजुअल्स का सच हमें न पता हो लेकिन फिर भी हम कई बार इनको सच मान लेते हैं और इन सूचनाओं पर सवाल उठाए बिना इन्हें शेयर कर देते हैं, क्योंकि इन दावों को काफी भावुकता के साथ पेश किया जाता है.

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'वेरिफाई किया क्या' के इस एपिसोड में आप जानेंगे कि कैसे हम भावुक होकर गलत दावों के झांसे में आ जाते हैं.

कई बार आप किसी पोस्ट या जानकारी को देखकर गुस्सा हो जाते हैं तो कई बार खुश या उदास. या फिर चिंता में आ जाते हैं..और इन इमोशन्स की वजह से या तो

  • आप इन पर भरोसा कर लेते हैं.

  • या फिर इन सूचनाओं को दूसरों के साथ शेयर कर देते हैं.

चलिए एक उदाहरण से इसे समझने की कोशिश करते हैं.

एक वायरल वीडियो शेयर कर ये झूठा दावा किया गया कि सेलिब्रेशन कर रहे लड़के-लड़कियों में लड़के मुस्लिम हैं और उन्होंने लड़कियों की ड्रिंक में कुछ मिलाकर उन्हें बेहोश कर उनका आपत्तिजनक वीडियो बना लिया.

इस वीडियो का कैप्शन सांप्रदायिक और गुस्सा दिलाने वाला है. इसे देखकर ऐसा हो सकता है कि आपको गुस्सा आ जाए और बिना इस बात का पता लगाए कि ऐसी कोई घटना हुई भी है या नहीं, आप तुरंत इसे दूसरों के साथ शेयर कर दें.

अब यहां आपका गुस्सा वो इमोशन था, जिसकी वजह से आपने ऐसा किया....लेकिन सच ये है कि ऐसी कोई घटना हुई ही नहीं. ये एक स्क्रिप्टेड वीडियो था. ऐसे कई वीडियो इंटरनेट पर झूठे और कम्यूनल दावों के साथ वायरल हुए हैं.

ऐसी भ्रामक सूचनाओं वाली पोस्ट में आप एक चीज पर गौर करेंगे कि इनमें अक्सर हद से ज्यादा इमोशनल लैंग्वेज का इस्तेमाल होता है और ऐसा तो आप इस मामले में भी देख सकते हैं.

क्या कहती हैं रिसर्च?

रिसर्च से पता चला है कि बढ़े हुए इमोशन्स, वो चाहे पॉजिटिव हों या नेगेटिव. दोनों की वजह से हम गलत सूचनाओं के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं. कुछ नेगेटिव इमोशन्स की वजह से हम संदेह के घेरे में आ सकते हैं, जिस वजह से कॉन्सपिरेसी थ्योरीज पर भरोसा करने लग जाते हैं. 2012 में दुनिया खत्म होने वाला दावा भी इसके उदाहरण के तौर पर देखा जा सकता है.

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मनोवैज्ञानिकों का भी ये मानना है कि लोग उन सूचनाओं को नजरअंदाज नहीं कर पाते, जिनसे वो भावनात्मक रूप से प्रभावित होते हैं.

बेशक, ऐसी दूसरी कई वजहें भी हैं, जिनके चलते हम किसी चीज पर विश्वास कर लेते हैं, जैसे -

  • हमारा पूर्वाग्रह,

  • हमें जिसने सूचना भेजी है

  • या फिर जिस सोर्स से हमें सूचना मिली है- उस पर हमारा भरोसा.

लेकिन हमारी भावनाएं इसकी एक बड़ी वजह हैं.

हम अपने अगले वीडियो में ऐसे दूसरे फैक्टर्स के बारे में और बात करेंगे. तब तक अगर आपके पास ऐसी कोई भी सूचना आई है, भले ही वो विश्वसनीय सोर्स से ही क्यों न हो, उसे वेरिफाई कीजिए या फिर बस हमें 9643651818 पर वॉट्सएप कीजिए. आप हमें webqoof@thequint.com पर ईमेल भी कर सकते हैं.

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(अगर आपके पास भी ऐसी कोई जानकारी आती है, जिसके सच होने पर आपको शक है, तो पड़ताल के लिए हमारे वॉट्सऐप नंबर 9643651818 या फिर मेल आइडी Webqoof@thequint.com पर भेजें. सच हम आपको बताएंगे. हमारी बाकी फैक्ट चेक स्टोरीज आप यहां पढ़ सकते हैं )

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