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Teesta Setalvad के परदादा ने नहीं दी थी जनरल डायर को 'क्लीन चिट', भ्रामक है दावा

तीस्ता सीतलवाड़ के परदादा की रिपोर्ट में जनरल डायर को जलियांवाला बाग हत्याकांड का जिम्मेदार ठहराया गया था.

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गुजरात पुलिस क्राइम ब्रांच ने एक्टिविस्ट-जर्नलिस्ट तीस्ता सीतलवाड़ (Teesta Seetalvad) को गिरफ्तार किया है. उनकी गिरफ्तारी के एक दिन बाद, सूचना और प्रसारण मंत्रालय की वरिष्ठ सलाहकार कंचन गुप्ता ने सीतलवाड़ के परदादा को लेकर एक ट्वीट किया.

गुप्ता ने अपने ट्वीट में कहा, ''तीस्ता सीतलवाड़ उस चिमनलाल हरिलाल सीतलवाड़ की परपोती हैं, जो जलियांवाला बाग हत्याकांड पर बने कुख्यात 'हंटर कमीशन' के सदस्य थे. इस कमीशन ने जनरल डायर को क्लीन चिट दी थी, जिसने नागरिकों पर गोलियां चलाने का आदेश दिया था.''

तीस्ता सीतलवाड़ के परदादा की रिपोर्ट में जनरल डायर को जलियांवाला बाग हत्याकांड का जिम्मेदार ठहराया गया था.

पोस्ट का आर्काइव देखने के लिए यहां क्लिक करें

(सोर्स: स्क्रीनशॉट/ट्विटर)

हालांकि, गुप्ता का स्टेटमेंट भ्रामक है.

हालांकि, ये सच है कि चिमनलाल हरिलाल सीतलवाड़ हंटर कमीशन का हिस्सा थे. इस कमीशन ने जलियांवाला बाग हत्याकांड की जांच की थी. कमीशन ने दो रिपोर्ट्स जारी की थीं, एक माइनॉरिटी और दूसरी मेजॉरिटी. ऐसा इसलिए, क्योंकि कमीशन के सदस्य कई मामलों पर असहमत थे. इसमें डायर का मकसद और फायरिंग की सजा शामिल थी.

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  • ''सी. एच. सीतलवाड़, पंडित जगत नारायण और साहिबजादा सुल्तान अहमद खान'' की साइन की हुई जो माइनॉरिटी रिपोर्ट थी उसके मुताबिक डायर को गलत पाया गया. रिपोर्ट में ऐसे कई अंश हैं, जिन्हें ये बताने के लिए डाला गया कि जनरल ने जलियांवाला बाग में अनावश्यक और हद से ज्यादा बल का प्रयोग किया था.

  • वहीं मेजॉरिटी रिपोर्ट को अंग्रेज सदस्यों ने साइन किया था, जिसमें डायर को जिम्मेदार तो पाया गया. लेकिन, इसके निष्कर्ष बताते हैं कि मेजॉरिटी के मुताबिक, डायर का ''ईमानदारी से इस बात पर विश्वास था'' कि वो अपनी ड्यूटी निभाकर सही काम कर रहा है.

हालांकि, दोनों में से किसी भी रिपोर्ट में डायर को दोषमुक्त नहीं बताया गया या रिपोर्ट्स में किसी ''क्लीन चिट'' का उल्लेख नहीं है. कमीशन की ओर से रिपोर्ट सबमिट करने के बाद, डायर को अपनी कार्रवाई के लिए इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा.

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क्या था 'हंटर कमीशन'?

हंटर कमीशन 1919 में गठित की गई एक कमेटी थी, जिसे जलियांवाला बाग हत्याकांड और मुंबई (तब बॉम्बे), दिल्ली और पंजाब में हुई ''अशांति'' की जांच के लिए गठित किया गया था.

इस 'डिसॉर्डर इंक्वायरी कमेटी' की अध्यक्षता स्कॉटलैंड के पूर्व सॉलिसिटर जनरल लॉर्ड विलियम हंटर ने की थी. कमेटी में ये 7 सदस्य थे:

  1. जस्टिस जीसी रैनकिन, कलकत्ता हाईकोर्ट में जज

  2. डब्ल्यूएफ राइस, एडिशनल सेक्रेटरी, भारत सरकार, गृह मंत्रालय

  3. मेजर जनरल सर जॉर्ज बैरो, पेशावर डिविजन के कमांडर

  4. पंडित जगत नारायण

  5. थॉमस स्मिथ, यूनाइटेड राज्य के लेफ्टिनेंट-गवर्नर के विधान परिषक के सदस्य

  6. चिमनलाल हरिलाल सीतलवाड़, बॉम्बे हाईकोर्ट में वकील

  7. सरदार साहिबजादा सुल्तान अहमद खान, बार-एट-लॉ, मेंबर ऑफ अपील्स, ग्वालियर स्टेट

पूरी रिपोर्ट आप यहां पढ़ सकते हैं.

तीस्ता सीतलवाड़ के परदादा की रिपोर्ट में जनरल डायर को जलियांवाला बाग हत्याकांड का जिम्मेदार ठहराया गया था.

इस डॉक्युमेंट में कमेटी के सदस्यों की लिस्ट है

(सोर्स: स्क्रीनशॉट/Disorders Enquiry Committee report/Wikimedia Commons)

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रिपोर्ट के मुताबिक, कमीशन के सदस्यों ने बैशाखी के दिन 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर में हुई घटनाओं की जांच करते हुए दो रिपोर्ट्स पेश की थीं, जिन्हें मेजॉरिटी रिपोर्ट और माइनॉरिटी रिपोर्ट कहा जाता है.

इसमें बताया गया है कि ''माइनॉरिटी रिपोर्ट में सर सीएच सीतलवाड़, पंडित जगत नारायण और साहिबजादा सुल्तान अहमद खान के साइन हैं.''

तीस्ता सीतलवाड़ के परदादा की रिपोर्ट में जनरल डायर को जलियांवाला बाग हत्याकांड का जिम्मेदार ठहराया गया था.

इसमें कहा गया है कि रिकमेंडेशन के साथ दो रिपोर्ट्स, मेजॉरिटी और माइनॉरिटी रिपोर्ट थीं.

(सोर्स: स्क्रीनशॉट/Disorders Enquiry Committee report/Wikimedia Commons)

डॉक्युमेंट में साफतौर में लिखा है कि ''तथ्य के ज्यादातर निष्कर्ष एकमत हैं'' और दोनों रिपोर्ट्स इस बात पर सहमति दिखाती हैं कि नरसंहार के लिए डायर जिम्मेदार था.

हालांकि, मेजॉरिटी पक्ष ने ये स्वीकार करते हुए कि डायर ने ''गंभीर भूल'' की है, नरम रुख अपनाया. वहीं माइनॉरिटी रिपोर्ट इस बात पर पूरी तरह से विश्वास करती थी कि डायर का पूरा इरादा बिना किसी पर्याप्त चेतावनी के निर्दोषों पर गोली चलाने का था.

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डायर की कार्रवाई को लेकर मेजॉरिटी और माइनॉरिटी रिपोर्ट्स कैसे एक-दूसरे से अलग थीं?

सीधे शब्दों में कहें तो मेजॉरिटी और माइनॉरिटी रिपोर्ट्स एकमत होकर ब्रिगेडियर-जनरल डायर की कार्रवाई की निंदा करती हैं.

मेजॉरिटी रिपोर्ट में लिखा है कि डायर ने "गंभीर गलती की" , लेकिन डायर का ''ईमानदारी से इस बात पर विश्वास था'' कि वो अपनी ड्यूटी निभाकर सही काम कर रहा है.

हालांकि, रिपोर्ट में उसके ''पूरे पंजाब में एक नैतिक प्रभाव पैदा करने के इरादे'' की भी निंदा की गई है, लेकिन इसका कारण ''उसकी ड्यूटी को लेकर गलत अवधारणा'' को बताया गया.

तीस्ता सीतलवाड़ के परदादा की रिपोर्ट में जनरल डायर को जलियांवाला बाग हत्याकांड का जिम्मेदार ठहराया गया था.

मेजॉरिटी रिपोर्ट इस बात पर सहमत थी कि डायर की गलती थी, लेकिन इस बात के लिए कि जब भीड़ तितर-बितर होने लगी तब ''गोलीबारी जारी रखी'' गई.

(सोर्स: स्क्रीनशॉट/Disorders Enquiry Committee report/Wikimedia Commons)

डॉक्युमेंट के मुताबिक, माइनॉरिटी रिपोर्ट में बताया गया कि हमें ''इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था कि क्या जनरल डायर ने सोचा कि वो सही कर रहा है या नहीं''. लेकिन वो अपनी बेरहमी को सही ठहराने के लिए बराबर बहाने बना रहा था.

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तीस्ता सीतलवाड़ के परदादा की रिपोर्ट में जनरल डायर को जलियांवाला बाग हत्याकांड का जिम्मेदार ठहराया गया था.

माइनॉरिटी रिपोर्ट में कहा गया है कि भीड़ को बिना गोली चलाए तितर-बितर किया जा सकता था.

(सोर्स: स्क्रीनशॉट/Disorders Enquiry Committee report/Wikimedia Commons)

रिपोर्ट में जलियांवाला बाग हत्याकांड के बारे में बताते हुए और सैन्य ज्यादती के मुद्दे पर चर्चा करते हुए लिखा है, ''वो मेजॉरिटी की इस बात से सहमत नहीं है कि बिना फायरिंग के भीड़ तितर-बितर नहीं की जा सकती थी.'' इस बात के लिए खुद जनरल डायर के बयान का हवाला दिया गया जिसमें उसने कहा था कि बिना गोलीबारी के भी भीड़ तितर-बितर की जा सकती थी.

इस डॉक्युमेंट के मुताबिक, मेजॉरिटी रिपोर्ट में डायर की आलोचना सिर्फ दो पॉइंट्स के आधार पर की गई:

  1. उसने बिना किसी चेतावनी के फायरिंग शुरू करवा दी.

  2. भीड़ तितर-बितर होने के बावजूद, उसने फायरिंग शुरू रखी.

हालांकि, इस रिपोर्ट में ये पाया गया कि ''ये स्पष्ट रूप से नामुमकिन था कि भीड़ बिना गोली चलाए तितर-बितर हो जाती.''

इसी दौरान, सीएच सीतलवाड़ की साइन की गई माइनॉरिटी रिपोर्ट में डायर की 4 चीजों को लेकर ''कड़ी आलोचना'' की गई:

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  1. ये सुझाव देने के लिए आलोचना की गई कि अगर वो उन्हें बाग में ला सके तो वो मशीनगनों का इस्तेमाल करेंगे.

  2. बिना किसी चेतावनी के गोलियां चलाने और भीड़ के तितर-बितर होने के बाद तक फायरिंग जारी रखने के लिए, जब तक कि सारा गोला-बारूद खत्म नहीं हो गया.

  3. इस बात के लिए आलोचना की गई कि फायरिंग भीड़ तितर-बितर करने के लिए नहीं, बल्कि लोगों को दंड देने के लिए और ''पंजाब में नैतिक प्रभाव पैदा करने के लिए'' की गई.

  4. ये धारणा बनाने के लिए कि जो लोग जलियांवाला बाग में इकट्ठा हुए थे, ये वही लोग थे जो हत्याकांड के 4 दिन पहले पंजाब में हुई हिंसा के दोषी थे.

कोई 'क्लीन चिट' नहीं दी गई, माइनॉरिटी रिपोर्ट ने जलियांवाला बाग के लिए डायर को ठहराया जिम्मेदार

हमें 1920 में पंजाब के कई जिलों में हुई अशांति पर एक रिपोर्ट के आर्काइव वर्जन में, मेजॉरिटी और माइनॉरिटी रिपोर्ट की पूरी कॉपी मिली.

माइनॉरिटी रिपोर्ट के चौथे चैप्टर में विशेष रूप से जलियांवाला बाग हत्याकांड पर चर्चा की गई है. इसमें मीटिंग में डायर की प्रतिक्रिया की आलोचनाओं पर विस्तार से बताया गया है.

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इसमें बताया गया है कि कैसे लोगों के इकट्ठा होने पर रोक लगाने वाली घोषणा का ''ऐलान ठीक से नहीं'' किया गया था. रिपोर्ट में ये बताए गए अनुमान के मुताबिक, इकट्ठा होने से जुड़े आदेश वाली मौखिक घोषणा और उर्दू पर्चे सिर्फ 8 से 10 हजार लोगों तक पहुंचे. जबकि कुल आबादी 1.7 लाख थी.

रिपोर्ट के मुताबिक, उस समय बैसाखी उत्सव और पंजाब में आयोजित होने वाले पशु मेले की वजह से ''बाहर से आए लोगों की बड़ी संख्या'' भी थी.

इस बिंदुओं पर भी चर्चा की गई है कि डायर फायरिंग करके ''नैतिक प्रभाव पैदा करना'' और ''विद्रोहियों के मनोबल को कम करना'' चाह रहा था. रिपोर्ट में डायर के उस बयान को दिखाते हुए मेजोरिटी रिपोर्ट का खंडन किया गया था, जिसमें उसने कहा था कि बिना फायरिंग के भीड़ को तितर-बितर करना संभव था.

तीस्ता सीतलवाड़ के परदादा की रिपोर्ट में जनरल डायर को जलियांवाला बाग हत्याकांड का जिम्मेदार ठहराया गया था.

रिपोर्ट में प्रमाण के तौर पर डायर का हवाला दिया गया, जहां उसने कहा था कि बिना गोली चलाए भीड़ को तितर-बितर करना संभव था

(सोर्स: स्क्रीनशॉट/Reports on the Punjab Disturbances of 1919/Archive.org)

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इसमें डायर के बयानों का इस्तेमाल कर ये दिखाया गया है कि वो मशीनगन ले जाकर अतिरिक्त बल का इस्तेमाल करने का इरादा रखता था, लेकिन ऐसा नहीं कर सका क्योंकि बाग के अंदर जाने वाली गलियां बहुत संकरी थीं. इसलिए, वो अंदर मशीनगन नहीं ले जा पाया.

इसके अलावा, इसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि डायर के पास कार्रवाई को लेकर सोचने के लिए 4 घंटे थे. डायर के हवाले से लिखा गया कि उसने ''मीटिंग जारी रखने वाले सभी लोगों को मारने का मन बना लिया था''. इसमें आगे ये भी बताया गया है कि डायर ने उन जगहों पर गोली चलाने के लिए कहा, जहां भीड़ सबसे ज्यादा थी.
तीस्ता सीतलवाड़ के परदादा की रिपोर्ट में जनरल डायर को जलियांवाला बाग हत्याकांड का जिम्मेदार ठहराया गया था.

डायर ने शुरू में बाग में मशीनगन ले जाने की योजना बनाई थी

(सोर्स: स्क्रीनशॉट/Reports on the Punjab Disturbances of 1919/Archive.org)

दोनों डॉक्युमेंट्स में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि हंटर कमीशन ने एकमत से जलियांवाल बाग हत्याकांड की आलोचना की थी. वहीं माइनॉरिटी टीम ने मेजॉरिटी टीम के तुलना में डायर के खिलाफ ज्यादा कड़ा रुख अपनाया था.

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तीस्ता सीतलवाड़ ने अपने परदादा और डायर के बारे में बात की

The Week के आर्टिकल में, तीस्ता सीतलवाड़ ने अपने परदादा की आत्मकथा पढ़ने के बारे में बात की. उन्होंने हंटर कमीशन और माइनॉरिटी रिपोर्ट पर चर्चा करने की भी बात की.

आर्टिकल में सीएच सीतलवाड़ और लॉर्ड हंटर के बीच रिपोर्ट की ड्राफ्टिंग स्टेज के दौरान ''झगड़े'' पर चर्चा की गई है. उन्होंने बताया कि कैसे एक समय लॉर्ड हंटर ने अपना आपा खो दिया और सीतलवाड़ पर आरोप लगाया कि वो "अंग्रेजों को देश से बाहर निकालना'' चाहते हैं.

इसमें, चिमनलाल के हवाले से लिखा गया था कि ''भारतीयों के लिए विदेशी शासन से मुक्ति की इच्छा पूरी तरह से वैध थी''. आगे उनके हवाले से ये भी बताया गया है कि ''अगर इस देश में हंटर जैसे कम दूरदृष्टि वाले और असहिष्णु लोग अंग्रेजों का प्रतिनिधित्व करते हैं'' तो उन्हें देश से बाहर निकालना जरूरी है.
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आर्टिकल के मुताबिक, कमीशन के रिपोर्ट पेश करने के बाद डायर को इस्तीफा देने के लिए कहा गया था. इस रिपोर्ट में चिमनलाल की ओर से तैयार की गई माइनॉरिटी रिपोर्ट भी शामिल थी.

मतलब साफ है, बेशक कम या ज्यादा लेकिन हंटर कमीशन के सभी सदस्यों ने डायर की जलियांवाला बाग हत्याकांड को लेकर निंदा की थी.

सी.एच. सीतलवाड़, पंडित जगत नारायण और साहिबजादा सुल्तान अहमद खान से मिलकर बनी कमीशन की माइनॉरिटी टीम ने पाया कि डायर ने हद से ज्यादा बल प्रयोग किया था. ये सभी ब्रिगेडियर-जनरल के खिलाफ एक मजबूत राय रखते थे. और जैसा कि दावा किया गया ''क्लीन चिट'' नहीं जारी की गई थी.

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