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यूपी विधानसभा चुनाव से लेकर ओलंपिक और कोरोना से जुड़े झूठे दावों की पड़ताल

Fact Check| इस हफ्ते सोशल मीडिया पर किए गए झूठे दावों का सच

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उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, टोक्यो में ओलंपिक चल रहा है और कोरोना महामारी से जूझ रहे लोगों के सामने थर्ड वेव का खतरा मंडरा रहा है. ऐसे में यूपी चुनाव, ओलंपिक और कोरोना से लेकर कई फेक खबरें सोशल मीडिया पर वायरल हुईं.

एडिटेड स्क्रीनशॉट शेयर कर ये दावा करना कि भारत के पहले ओलंपिक मेडल के लिए एक न्यूज चैनल ने पीएम मोदी को क्रेडिट दिया है या फिर 1948 में हुए लंदन ओलंपिक को लेकर किया गया ये दावा कि तब भारतीय फुटबॉलर पैसों की कमी की वजह से नंगे पैर खेले थे.

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केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का यूपी चुनाव के पहले ये दावा कि पिछले 4 सालों में यूपी दंगा मुक्त हो गया है या फिर फेक न्यूज फैलाने के लिए बदनाम बिस्वरूप रॉय चौधरी का ये दावा कि उनके खास ट्रीटमेंट को कोरोना के इलाज के लिए मंजूरी मिल गई है. ऐसे ही तमाम झूठे और भ्रामक दावों का सच एक नजर में जानिए.

उत्तर प्रदेश पिछले 4 साल में हुआ दंगा मुक्त? अमित शाह का ये दावा सच नहीं

गृहमंत्री अमित शाह ने मिर्जापुर में 1 अगस्त को दिए अपने भाषण में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार के प्रदर्शन पर बात करते हुए कहा कि ये बातें बोलीं.

  • वर्तमान सरकार यूपी को दंगा मुक्त बनाने में सफल रही.

  • बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से ही प्रदेश महिलाओं के लिए ज्यादा सुरक्षित हो गया है.

  • पिछली सरकार राज्य में केवल 10 मेडिकल कॉलेज छोड़कर गई थी. योगी सरकार ने राज्य में 40 नए मेडिकल कॉलेजों के लिए प्रावधान बनाए.

हालांकि, हमने पाया कि अमित शाह के तीनों दावे तथ्यों की कसौटी पर खरे नहीं उतरते.

ये दावा कि यूपी दंगा मुक्त हो गया है, नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट में दिए गए आंकड़े अमित शाह के इस दावे से अलग हैं. NCRB की 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक इस साल राज्य में दंगे के 5,714 मामले दर्ज किए गए.

महाराष्ट्र और बिहार के बाद उत्तर प्रदेश सबसे ज्यादा दंगों वाला तीसरा राज्य था.

साल 2018 में भी उत्तर प्रदेश दंगों के 8,908 मामलों के साथ तीसरे स्थान पर रहा. वहीं साल 2017 में उत्तर प्रदेश दंगों के बिहार के बाद दंगों के मामले में दूसरे स्थान पर रहा.

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 11 दिसंबर, 2018 को लोकसभा में एक सवाल का जवाब देते हुए बताया कि साल 2017 में सांप्रदायिक घटनाओं के मामले में यूपी पहले स्थान पर रहा. 2014-16 के बाद राज्य में इस तरह के सबसे ज्यादा मामले सामने आए.

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इसके अलावा ये दावा कि महिलाओं के लिए प्रदेश सुरक्षित है उसकी पड़ताल करने पर हमने पाया कि NCRB की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश में महिलाओं के विरुद्ध हुए अपराधों के 59,853 मामले साल 2019 में दर्ज हुए. 2017 के बाद से ही लगातार इन मामलों की संख्या बढ़ी है.

इसके अलावा, अमित शाह ने अपने भाषण में जो बीजेपी सरकार द्वारा 40 नए मेडिकल कॉलेजों के लिए उचित कदम उठाने वाली बात कही, वह काफी हद तक सही है. लेकिन, ये दावा झूठा है कि पिछली सरकार केवल 10 मेडिकल कॉलेज छोड़कर गई थी.

संसद की लाइब्रेरी के 2018 के एक आधिकारिक दस्तावेज में दी गई जानकारी के मुताबिक, 2016-17 में उत्तर प्रदेश में 45 मेडिकल कॉलेज थे. इनमें से 16 कॉलेज सरकार और 29 प्राइवेट थे.

साफ है कि इस दस्तावेज में दिए गए डेटा के मुताबिक ये दावा सही नहीं है कि उत्तर प्रदेश में पिछली सरकार केवल 10 मेडिकल कॉलेज छोड़कर गई थी

पूरी पड़ताल यहां पढ़ें

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Olympics 1948: बजट की कमी से भारतीय फुटबॉल टीम ने नंगे पैर खेला? झूठा दावा

सोशल मीडिया पर जवाहरलाल नेहरू की फोटो के साथ नंगे पैर खड़े खिलाड़ियों की फोटो शेयर कर ये झूठा दावा किया गया कि 1948 लंदन ओलंपिक में भारतीय फुटबॉल टीम नंगे पैर खेलने के लिए मजबूर थी, क्योंकि उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि वो जूते खरीद सकें. साथ ही, इस बात के लिए तत्कालीन पीएम जवाहरलाल नेहरू पर भी कटाक्ष किया जा रहा है.

पड़ताल में हमें साल 2014 का The Hindu का एक आर्टिकल मिला. इसमें कहा गया है कि भारतीय फुटबॉल खिलाड़ी बिना जूतों के खेलना पसंद करते थे. इसमें टीम के ट्रेनर बीडी चटर्जी के हवाले से ये भी बताया गया है कि तब टीम के पास जूते थे, ताकि जरूरत पड़ने पर उनका इस्तेमाल किया जा सके.

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इसके अलावा, हमने लेखक और फुटबॉल एक्सपर्ट नोवी कपाड़िया से बात की जिन्होंने बताया कि ''पसंद उनकी थी. गोल करने वाले एस रमन एक बेहतरीन ड्रिबलर थे, लेकिन वो नंगे पैर ही खेल पाते थे.'' उन्होंने आगे कहा कि नंगे पैर खेलना उनकी अपनी इच्छा पर निर्भर करता था. खिलाड़ी नंगे पैर खेलने में सहज महसूस करते थे.''

मतलब साफ है कि 1948 के ओलंपिक में हिस्सा लेने वाली आजाद भारत की फुटबॉल टीम, पैसों की कमी की वजह से नहीं बल्कि अपनी पसंद से नंगे पैर खेली थे. ऐसा इसलिए, क्योंकि बहुत से खिलाड़ियों को नंगे पैर खेलना पसंद था.

पूरी पड़ताल यहां पढ़ें

कोरोना इलाज के लिए आयुष मंत्रालय ने नहीं दी डॉ बिस्वरूप के ट्रीटमेंट को मंजूरी

मीडिया में 23 जुलाई को ये रिपोर्ट छपी कि बिस्वरूप रॉय चौधरी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया कि उनके एक खास तरह के कोरोना के इलाज NICE प्रोटोकॉल को आयुष मंत्रालय ने मंजूरी दे दी है.

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डॉ. चौधरी ने दावा किया कि आहार आधारित इस मेथड में 7 दिनों में कोरोना ठीक हो जाता है. चौधरी ने पहले भी कोविड-19 से जुड़े कई भ्रामक और खतरनाक दावे किए हैं.

इस दावे से जुड़े न्यूज आर्टिकल की हेडलाइन कुछ इस तरह थीं, ''NIN & AYUSH Ministry recommends NICE protocol for COVID treatment" (NIN और आयुष मंत्रालय ने कोविड के इलाज के लिए NICE प्रोटोकॉल की सिफारिश की)

इस रिपोर्ट को Express Health Desk, The Week सहित कई वेबसाइटों पर पब्लिश किया गया था.

हमने आयुष मंत्रालय की वेबसाइट पर जाकर देखा, लेकिन हमें मंत्रालय की ओर से ऐसे किसी ट्रीटमेंट का रिकमंडेशन नहीं मिला.

कीवर्ड सर्च करने पर, हमें प्रेस इनफॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) की एक प्रेस रिलीज मिली. इस प्रेस रिलीज में बताया गया है कि न्यूज रिपोर्ट्स में किए गए दावों और चौधरी के दावों को खारिज कर दिया गया है.

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प्रेस रिलीज का टाइटल है, ''आयुष मंत्रालय ने नेटवर्क ऑफ इन्फ्लुएंजा केयर एक्सपर्ट्स (NICE) के प्रोटोकॉल को मंजूरी नहीं दी है.'' प्रेस रिलीज में ये भी बताया गया है कि चौधरी की प्रेस कॉन्फ्रेंस में मंत्रालय के नाम का उल्लेख करने के लिए मंत्रालय ने स्वीकृति नहीं दी थी.

प्रेस रिलीज के मुताबिक, NICE के दावे झूठे हैं. इसमें आगे कहा गया है कि ''NIN ने अहमदनगर में NICE केंद्र में अपनाई जा रही प्रैक्टिसेज का दस्तावेजीकरण करने के लिए, एक ऑब्जर्वेशनल स्टडी की है. लेकिन, इसका मतलब ये नहीं है कि हम इन प्रैक्टिसेज का समर्थन करते हैं.''

मतलब साफ है कि ये दावा गलत है कि भ्रामक खबरों के लिए बदनाम बिस्वरूप रॉय चौधरी के किसी भी ट्रीटमेंट मेथड को मंजूरी नहीं दी गई है.

पूरी पड़ताल यहां पढ़ें

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'इस्लाम और उर्दू' को लेकर बॉलीवुड के बहिष्कार की ये फोटो एडिटेड है

हाथ में पोस्टर पकड़े एक प्रदर्शनकारी की तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है. इस पोस्टर में "इस्लाम और उर्दू को बढ़ावा देने के लिए बॉलीवुड फिल्मों के बहिष्कार" की मांग करने वाली लाइनें लिखी दिख रही हैं.

वायरल फोटो को रिवर्स इमेज सर्च करने पर, हमें BBC पर 21 दिसंबर 2012 की एक न्यूज रिपोर्ट मिली, जिसमें वायरल फोटो का इस्तेमाल किया गया था. इस रिपोर्ट का टाइटल था, 'Fifth arrest in Delhi bus gang rape' (दिल्ली बस गैंग रेप मामले में 5 गिरफ्तार).

रिपोर्ट में इस्तेमाल की गई फोटो में प्रदर्शनकारी के हाथ में दिख रहे पोस्टर में लिखा है, "DON’T TELL ME HOW TO DRESS! TELL THEM NOT TO RAPE!! (sic)" इस फोटो के लिए Agence France-Presse (AFP) को क्रेडिट दिया गया था.

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हमें यही फोटो Getty Images पर भी मिली, जिसे 20 दिसंबर 2012 को अपलोड किया गया था.

फोटो के कैप्शन के मुताबिक, ये फोटो 20 दिसंबर 2012 को अमृसर में हुए एक विरोध प्रदर्शन के वक्त की है. ये प्रदर्शन नई दिल्ली में हुए निर्भया गैंगरेप मामले के खिलाफ किया गया था.

करीब 9 साल पहले हुए एक प्रोटेस्ट की फोटो एडिट कर इस गलत दावे से शेयर की जा रही है कि लोग इस्लाम और उर्दू का "प्रचार" करने के लिए बॉलीवुड के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.

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ओलंपिक में पहले मेडल के लिए पीएम मोदी को क्रेडिट देती ये फोटो एडिटेड

टोक्यो में चल रहे ओलंपिक (Tokyo Olympics 2020) के बीच सोशल मीडिया पर Aaj Tak की एक एडिटेड फोटो वायरल हो रही है. वायरल फोटो में भारत के पहले पदक की जीत के लिए पीएम मोदी को श्रेय दिया गया है.

फोटो को रिवर्स इमेज सर्च करने पर, हमें Aaj Tak के ऑफिशियल फेसबुक पेज पर पोस्ट किया गया एक ऐसा ही ग्राफिक मिला. इसे 9 जुलाई 2019 को पोस्ट किया गया था.

ये ग्राफिक उस दिन पोस्ट किया गया था, जिस दिन भारत 2019 ICC क्रिकेट वर्ल्ड कप में न्यूजीलैंड के खिलाफ सेमीफाइनल खेलने वाला था.

वायरल फोटो की ओरिजिनल फोटो के साथ तुलना करने पर, हमने पाया कि ओरिजिनल फोटो में टेक्स्ट को एडिट किया गया है. साथ ही, जहां वर्ल्ड कप बना हुआ है, वहां पर तीन मेडल भी एडिट करके जोड़े गए हैं.
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मतलब साफ है कि Aaj Tak के एक पुराने ग्राफिक को एडिट कर इस गलत दावे के साथ शेयर किया जा रहा है कि चैनल ने भारत के ओलंपिक मेडल जीतने के लिए पीएम मोदी को श्रेय दिया है.

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