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स्मॉग टावर क्या है जिसका दिल्ली के CM केजरीवाल ने किया उद्घाटन,कैसे काम करता है?

देश के पहला स्मॉग टावर के पीछे क्या तकनीक है समझिए

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दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने 23 अगस्त को 20 करोड़ लागत से बने स्मॉग टावर का उद्घाटन किया है. अक्टूबर-नवम्बर का वह महीना जब राजधानी दिल्ली धुआं-धुआं सी नजर आने लगती है. इस धुएं को स्मॉग कहते हैं. स्मॉग यानी हवा का एक प्रदूषित रूप. स्मोक और फॉग...धुआं और कोहरा मिलकर बनाते हैं स्मॉग. इसकी वजह से ठंड का महीना आते ही दिल्लीवासियों का सांस लेना मुश्किल हो जाता है और दफ्तरों के काम तक बंद करने पड़ते हैं. इसी स्मॉग से निपटने के लिए दिल्ली और देश का पहला स्मॉग टावर बाबा खड़गपुर मार्ग, कनॉट प्लेस, नई दिल्ली में शुरू हुआ है. आइए समझाते हैं कि आखिर ये कैसे हवा को साफ करेगा, इससे कितना इलाका सेफ होगा और ये कितना कारगर है?

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क्या होता है स्मॉग टावर

इसे एन्टी-स्मॉग टावर कहा जाता है लेकिन आम बोलचाल की भाषा मे इसे स्मॉग टावर भी कहते हैं. इसे डीपीसीसी के साथ आईआईटी मुंबई, आईआईटी दिल्ली और टाटा प्रोजेक्ट ने बनाया है. एंटी-स्मॉग टावर एक विशाल चिमनीनुमा संरचना है. एक तरह का एयर प्यूरीफायर होता है, जो हवा में से उसको प्रदूषित करने वाले बारीक कणों यानी स्मॉग को छानकर शुद्ध करता है.

बता दें कि WHO के मुताबिक प्रदूषित हवा के कारण हर साल विश्व भर में 80 लाख लोग मरते हैं. जबकि भारत में ही इससे मरने वालों की संख्या 12 लाख से अधिक है. भारत में दिल्ली सबसे अधिक वायु प्रदूषित शहरों में से एक है. यहाँ की वायु गुणवत्ता इतनी कम है कि उच्चतम न्यायालय ने नवम्बर 2020 में केंद्र सरकार को फटकार लगाते हुए इसपर एक्शन लेने की बात कही थी.

क्या है स्मॉग, इसमें क्या-क्या होता है और इसके बनने के क्या कारण हैं

स्मॉग दो भागों से मिलकर बना होता है. पहला भाग है, PM 10 से PM 2.5 और दूसरा भाग है दूसरी चीजें.
● PM 10 से PM 2.5 तक के बारीक कण ही वायु को प्रदूषित करने और स्मॉग बनाने के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार होते हैं. यही सांस लेने में हमारे फेफड़े के लिए सबसे खतरनाक होते हैं.
● दूसरी चीजों में होते हैं नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर ऑक्साइड, ओजोन और धुआं इत्यादि

वाहनों से निकलने वाले धुआं, फैक्ट्रियों, कोयले, पराली आदि से जलने से निकलने वाला धुआं आदि स्मॉग के प्रमुख कारण हैं.

क्या है PM 10 और PM 2.5

PM मतलब पार्टिकुलेट मैटर, हिंदी में कहें तो कणिका तत्व. आसान शब्दों में कहें तो हवा में उपस्थित पानी की अत्यंत छोटी छोटी बूंदों में जब कुछ धूल या उसके जैसे कण मिल जाते हैं, तो उसे पार्टिकुलेट मैटर कहते हैं.
PM 2.5 और PM 10 में जो संख्या है वह पार्टिकल (कण) की डायमीटर (Diameter) है. यानी कणों का व्यास. PM 2.5 का अर्थ हुआ 2.5 माइक्रोमीटर या उससे कम व्यास वाले पार्टिकल. इसी तरह 10 माइक्रोन या 10 माइक्रोमीटर से कम व्यास वाले पार्टिकल को PM 10 कहते हैं.

यह व्यास कितना है इसे अगर समझना हो तो हम ऐसे समझ सकते हैं कि इंसानी बालों का व्यास 50-70 माइक्रोमीटर होता है और रेत के सबसे बारीक कणों के व्यास 90 माइक्रोमीटर होता है.

यह क्यों हैं खतरनाक

इन कणों के बहुत ही बारीक कण होने की वजह से हम इन्हें सांस के जरिये बिना महसूस किए अंदर तो ले लेते हैं, लेकिन समस्या आगे होती है जब इनमें से कुछ गले मे चिपक जाते हैं, कुछ आगे जाकर फेफड़ों की छन्नी में फंस जाते हैं, जिससे गले में खराश, फेफड़ों को नुकसान उसमें जकड़न आदि पैदा होने लगती है, यहां से अगर ये कण खून में मिल जाएं तो ये और घातक हो सकते हैं.

पार्टिकुलेट कण उच्च रक्तचाप, धूम्रपान, मधुमेह और मोटापे के लिए पांच सबसे खतरनाक कारकों में से एक हैं.

स्मॉग टावर कैसे काम करता है?

यह अपनी चिमनी के माध्यम से हवा को सोखता है और फिर नीचे कई फिल्टर करने वाली छन्नियों से हवा को गुजारकर उसमें से पार्टिकुलेट मैटर को अपनी अलग-अलग छन्नियों में रोक लेता है, जिससे हवा शुद्ध हो जाती है. प्रदूषित हवा को ऊपर से सोखने और स्वच्छ हवा को नीचे लोगों के लिए उपलब्ध कराने के लिए नीचे बड़े बड़े पंखे लगे होते हैं, जिसके द्वारा वायु ऊपर चिमनी से खींची जाती है और नीचे से बाहर निकाली जाती है. दिल्ली में लगने वाले स्मॉग टावर में इन पंखों की संख्या 40 है और नीचे से स्वच्छ वायु निकलने के लिए 30×30 फीट की संरचना बनाई गई है.

क्या है इस स्मॉग टावर की कैपेसिटी

दिल्ली के स्मॉग टावर की ऊंचाई लगभग 80 फीट है, जिसमें 40 बड़े बड़े पंखे लगे हैं. जो 760 RPM पर घूमेंगे. हालांकि इसकी स्पीड को घटा या बढ़ा सकते हैं. यह 1000 क्यूबिक मीटर प्रति सेकेंड हवा को शुद्ध कर सकता है. अनुमानित रूप से यह स्मॉग टावर 700 मीटर से एक किलोमीटर तक के रेडियस में हवा को शुद्ध करेगा.

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हमारी स्टडी के अनुसार 700 मीटर की रेडियस में यह स्मॉग टावर प्यूरीफाई करेगा.बाहर एक डिस्प्ले बोर्ड होगा, जिस पर PM 2.5 और PM 10 का लेवल, हवा की क्वालिटी, हवा की स्पीड, हवा चलने की दिशा, उसकी आर्द्रता और तापमान आदि दिखता रहेगा.फिलहाल अभी IIT मुंबई और IIT दिल्ली के विशेषज्ञों की टीम इसकी 2 साल इसकी स्टडी करेगी. इसकी दक्षता और इसके एयर प्यूरीफाई करने की रेडियस के बारे में अध्ययन करेगा. पूरी दुनिया में ग्राउंड ड्राफ्ट मॉडल तकनीक पर आधारित कोई भी प्लांट नहीं बना है. इस तकनीक का आविष्कार यूनिवर्सिटी ऑफ मिनेसोटा (University of Minnesota) ने किया है और IIT मुम्बई इसे भारत में लाया है.
प्रोजेक्ट इंचार्ज डॉ अनवर अली खान के मुताबिक,

गौरतलब है कि नवंबर 2019 में विशेषज्ञों की एक टीम ने अनुमान लगाया था कि दिल्ली की इस भीषण वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए लगभग 213 एन्टी-स्मॉग टावरों की जरूरत है.

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