पुणे पुलिस जिन 5 एक्टिविस्ट पर शहरी नक्सली और सरकार को उखाड़ने की साजिश करने वाले करार दे रही है, गिरफ्तार करने को उतावली है वो पांचों आखिर कौन हैं? क्या करते हैं? इनके बारे में जरूर जान लीजिए क्योंकि तब आपको पता लगेगा कि इन लोगों से सरकारों को क्या परेशानी है.
तभी को सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इनके बारे में कहा कि असहमति लोकतंत्र का सेफ्टीवॉल्व है, इसे खत्म करने की कोशिश होगी तो विस्फोट होगा.
तो आइए बताते हैं सभी पांचों लोगों का बॉयोडेटा
सुधा भारद्वाज
फरीदाबाद की रहने वाली सुधा भारद्वाज सामाजिक कार्यकर्ता के साथ-साथ वकील भी हैं. सुधा का जन्म अमेरिका में हुआ था यानी वो अमेरिकी नागरिक थीं. लेकिन 11 साल की उम्र में वो भारत रहने आ गई. और वयस्क होते ही यानी 18 साल की उम्र में उन्होंने अपनी अमेरिकी नागरिकता छोड़कर पूरी तरह भारत की हो गईं
अमेरिका की नागरिकता छोड़ना साहस का काम है. सुधा की पढ़ाई भी आईआईटी कानपुर में हुई है. लेकिन बाद में उन्होंने कानून की डिग्री भी हासिल की.
अभी वो दिल्ली के नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में वह गेस्ट फैकल्टी हैं. लेकिन आदिवासियों के बीच सालों से काम कर रही हैं. वो छत्तीसगढ़ में पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) की महासचिव भी हैं. आदिवासियों के भूमि अधिग्रहण के खिलाफ वह बड़े पैमाने पर काम करती रही हैं.
पिछले साल ही वह फरीदाबाद में शिफ्ट हुई हैं. 57 साल की सुधा के बारे में मशहूर है कि वो मजदूरों और दलित-जनजातीय अधिकारों के लिए शिद्दत से काम करती हैं.
सुधा के काम जानने वाले कहते हैं कि वो कमजोरों और गरीबों के अधिकारों के लिए 30 सालों से काम कर रही हैं. वो इन लोगों को वकील के तौर पर कानूनी मदद दिलाती हैं. खुद अदालतों में उनके केस लड़ती हैं लेकिन कभी कानून तोड़ने को नहीं कहतीं. इसलिए उन्हें नक्सली कहना बेहद आपत्तिजनक है.
सुधा ने आदिवासियों के जंगल और जमीन के लिए स्टील, एल्यूमीनियम कंपनियों से भी लंबी लड़ाई लड़ी है जो माइनिंग करती हैं. जाहिर है शायद इनकी वजह से बहुत से कॉरपोरेट और सरकारें उनसे चिढ़ती हैं.
अरुण परेरा
सिविल एक्टिविस्ट, लेखक और वकील अरुण परेरा मुंबई में रहते हैं. वो बिजनेस ऑर्गेनाइजेशन के पूर्व प्रोफेसर भी हैं. उन्हें 2007 में प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) की प्रचार एवं संचार शाखा का नेता बताया गया था.
परेरा पर कई और भी आरोप लगे और उन्हें जेल भी जाना पड़ा था. करीब 5 सालों तक वह जेल में भी रह चुके हैं. लेकिन उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं मिलने पर 2014 में कोर्ट ने सभी आरोपों से बरी कर दिया.
परेरा ने अपने 5 साल जेल में रहने के बारे में किताब भी लिखी है. उनकी किताब कलर्स ऑफ दि केज: ए प्रिजन मेमॉयर ( Colors of the Cage: A Prison Memoir) खरी खरी बातों की वजह से खूब चर्चा में भी रही.
वर्णन गोंजाल्विस
वर्णन गोंजाल्विस लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता और ट्रेड यूनियन नेता रहे हैं. मुंबई यूनिवर्सिटी से गोल्ड मेडल विनर रहे हैं और रूपारेल कॉलेज और एचआर कॉलेज में प्रोफेसर भी रहे हैं.
सुरक्षा एजेंसियों का आरोप है कि वो नक्सलियों की महाराष्ट्र राज्य समिति के पूर्व सचिव और केंद्रीय कमेटी के पूर्व सदस्य हैं.
उन्हें 2007 में भी पुलिस ने इन्हीं आरोपों की वजह से गिरफ्तार किया गया था. उन पर 20 आरोप लगाए गए थे लेकिन 17 में अदालत से बरी हो गए. पुलिस ने उन्हें नक्सली संगठन का मेंबर बताया था और उन्हें इन आरोपों की वजह से करीब 5 साल की सजा काटनी पड़ी
पी वरवर राव
तेलंगाना के वारंगल के रहने वाले पी. वरवर राव मशहूर कवि, लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. हैदराबाद से उन्हें गिरफ्तार किया गया है. ह्यूमन राइट्स और नागरिक अधिकारों के बारे में वो नियमित तौर पर लिखते रहे हैं.
वरवर राव को तेलुगू साहित्य के प्रमुख मार्क्सवादी आलोचक के रूप में भी जाना जाता है. राव ने यूनिवर्सिटी में लंबे समय तक अंडर ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट छात्रों को पढ़ाया है.
भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ्तारी से पहले पीएम मोदी की हत्या की कथित साजिश के सिलसिले में पुलिस ने राव के घर की तलाशी ली थी.
यह कोई पहला मौका नहीं है कि जब राव को गिरफ्तार किया गया है. उनके लेखन और राजनीतिक गतिविधियों के लिए तत्कालीन आंध्र प्रदेश सरकार ने 1973 में भी गिरफ्तारी का आदेश दिया था. एक महीने तक वह जेल में भी रहे. बाद में हाईकोर्ट के आदेश पर उन्हें बरी कर दिया गया. राव को देश में लगे इमरजेंसी के दौरान MISA कानून के तहत भी गिरफ्तार किया गया था.
राव आदिवासी अधिकारों को कट्टर समर्थक हैं और इस वजह से वो करीब करीब हर सरकार के खिलाफ जोर शोर से आवाज उठाते रहे हैं और आलोचना करते रहे हैं.
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गौतम नवलखा
गौतम नवलखा सिवल राइट्स एक्टिविस्ट और पत्रकार हैं. उन्हें दिल्ली से गिरफ्तार किया गया. छत्तीसगढ़ के माओवाद प्रभावित इलाकों में उन्होंने काफी समय काम किया है. साथ ही वह पीपल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स नाम के संगठन से भी जुड़े हुए हैं.
नवलखा कश्मीर में भी बड़े पैमाने पर काम कर चुके हैं. कश्मीर में मानवाधिकार और जस्टिस के लिए वह इंटरनेशनल पीपुल्स ट्रिब्यूनल के संयोजक के तौर पर भी काम कर चुके हैं.
नवलखा ने मुंबई यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र और समाज शास्त्र की पढ़ाई की है. उन्होंने लंबे समय तक बतौर पत्रकार काम किया है. साथ ही इकॉनोमिक और पॉलीटिकल वीकली (EPW) के लिए वह लिखते रहे हैं.
साल 2011 में नवलखा को श्रीनगर एयरपोर्ट पर कश्मीर में घुसने से रोक दिया गया था. राज्य सरकार ने उन्हें वापस दिल्ली भेज दिया था.
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