अमेरिका (United States Of America) ने ऐलान किया है कि वह 2022 में बीजिंग में होने वाले शीतकालीन ओलंपिक का राजनयिक बहिष्कार करेगा.
व्हाइट हाउस (White House) के प्रेस सेक्रेटरी Jen Psaki ने कहा कि सरकार का मानना है कि बीजिंग ओलंपिक में राजनयिकों के शामिल होने से ये संदेश जाएगा कि हम मानवाधिकारों के हनन और अत्याचार को नजरअंदाज कर रहे हैं.
अमेरिका के सांसदों ने बाइडेन सरकार द्वारा लिए गए इस फैसले का स्वागत किया है.
क्या है बहिष्कार का कारण?
व्हाइट हाउस ने अपने बयान में कहा कि चीन में हो रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन के कारण फैसला लिया गया है. उन्होंने कहा कि बीजिंग ओलंपिक में कोई भी आधिकारिक प्रतिनिधिमंडल नहीं भेजा जाएगा.
रिपोर्ट्स के मुताबिक कम से कम दस लाख उइगर, अन्य तुर्क-भाषी और ज्यादातर मुस्लिम अल्पसंख्यकों को शिनजियांग के शिविरों में कैद किया गया है.
चीन पर यह भी आरोप लग रहे हैं कि वहां पर महिलाओं की जबरन नसबंदी भी करवाई जाती है.
बाइडेन सरकार का कहना है कि देश व देश के बाहर लोकतंत्र और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए व्यक्तिगत और सामूहिक कमिटमेंट्स व संबंधित सुधारों के प्रयास के लिए कोशिश की जाएगी.
न्यूजीलैंड ने भी किया ओलंपिक का बहिष्कार
अमेरिका के ऐलान के बाद मंगलवार को, COVID-19 को कारण बताते हुए न्यूजीलैंड की ओर से भी घोषणा की गई कि वह बीजिंग ओलंपिक में मंत्री स्तर पर प्रतिनिधिमंडल नहीं भेजेगा.
हालांकि, न्यूजीलैंड के उप प्रधानमंत्री Grant Robertson ने सफाई देते हुए कहा कि यह फैसला अमेरिका की वजह से नहीं लिया गया है बल्कि इसके पीछे कई अन्य कारण थे लेकिन कोरोनावायरस इस निर्णय का एक महत्वपूर्ण कारण है.
मानवाधिकार चिंताओं पर उन्होंने कहा कि न्यूजीलैंड ने चीन के समक्ष पहले ही यह मुद्दा रखा था.
कोरोना की वजह से बीजिंग का विंटर ओलंपिक ठीक 6 महीने की देरी से होने जा रहा है, जो 4 से 20 फरवरी तक चलेगा.
अमेरिका के फैसले पर चीन का पलटवार
अमेरिका के ऐलान के बाद सोमवार को, वॉशिंगटन में चीनी दूतावास ने अमेरिका के द्वारा ओलंपिक खेलों के बहिष्कार को एक राजनीतिक स्टंट बताया और कहा कि इससे ओलंपिक पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है.
रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक चीनी दूतावास के प्रवक्ता Liu Pengyu ने अपने बयान में कहा कि अमेरिका के राजनेताओं को ओलंपिक में शामिल होने के लिए कोई भी इनविटेशन नहीं दिया गया है, इसलिए इस राजनयिक बहिष्कार का कोई मतलब नहीं बनता है.
बता दें कि पिछले कुछ सालों के दौरान ताइवान, हांगकांग और चीन के शिनजियांग में उइगर मुसलमानों के इलाज सहित कई मुद्दों पर अमेरिका-चीन संबंध तनावपूर्ण रहे हैं, लेकिन बाइडेन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पिछले महीने एक वर्चुअल कॉल के दौरान अपने घनिष्ठ संबंधों पर जोर दिया था.
जो बाइडेन ने चीनी राष्ट्रपति से बात करने के बाद चीन के साथ बेहतर कम्यूनिकेशन का आग्रह किया, जबकि शी जिनपिंग ने कहा कि सभी को एक साथ मिलकर काम करना चाहिए. जिनपिंग ने आगे कहा था कि चीन और अमेरिका को संचार और सहयोग बढ़ाने की जरूरत है.
शिनजियांग मुद्दे पर चीन का रुख
चीन शिंनजियांग की स्थिति पर अंतरराष्ट्रीय आलोचनाओं को सिरे से खारिज करता आया है. संयुक्त राष्ट्र और अन्य मानवाधिकार समूहों का मानना है कि शिंजियांग में कम से कम दस लाख उइगर मुसलमानों और अन्य मुस्लिम अल्पसंख्यकों को कैद किया गया है.
अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने मार्च में कहा था कि चीन शिंजियांग में नरसंहार और मानवता के खिलाफ अपराध कर रहा है.
चीनी सरकार सभी आरोपों से हमेशा इनकार करती है. नागरिकों के कैद करने वाले आरोपों पर चीन की ओर से कहा गया कि कट्टरता से निपटने के लिए व्यावसायिक ट्रेनिंग सेंटर बनाए गए हैं.
Human Rights Watch एडवोकेसी ग्रुप के चीनी डायरेक्टर Sophie Richardson ने, चीन में उइगर मुसलमानों के खिलाफ मानवाधिकारों के हनन को लेकर अमेरिका के इस फैसले को एक महत्वपूर्ण कदम बताया है.
उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल से ट्वीट करते हुए लिखा कि अमेरिका को अब इन अपराधों और चीन में पीड़ितों के लिए जिम्मेदार लोगों से जवाबदेही लेने को समान विचारधारा वाली सरकारों के साथ मिलकर प्रयास करना चाहिए.
University of New Hampshire के स्पोर्ट्स एंड एंटरटेनमेंट लॉ इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर Michael McCann ने कहा कि अमेरिका के द्वारा ये फैसला लेना बेहद महत्वपूर्ण था. लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि अगर अमेरिकी एथलीट अभी भी भाग ले रहे हैं तो बीजिंग ओलंपिक के राजनयिक बहिष्कार से बहुत फर्क पड़ेगा या नहीं.
उन्होंने कहा कि अगर एथलीटों की ट्रेनिंग में लगे समय और मेहनत की वजह से उन्हें खेलने का मौका दिया जाता है तो यह फैसला एक सम्झौते जैसा होगा.
अमेरिका को मिला IOC (International Olympic Committee) का समर्थन
इस बीच, अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC) ने अमेरिका द्वारा ओलंपिक बहिष्कार के फैसले का स्वागत किया है.
AFP की रिपोर्ट के मुताबिक आईओसी के एक प्रवक्ता ने कहा कि सरकारी अधिकारियों और डिप्लोमेट्स की उपस्थिति एक राजनीतिक फैसला होता है और हम अमेरिका के इस फैसले का स्वागत करते हैं.
इससे पहले भी हुआ है ओलंपिक खेलों का बहिष्कार
ओलंपिक खेलों को बहिष्कार करने का यह कोई पहला मामला नहीं है. इससे पहले 1980 में अमेरिका द्वारा ओलंपिक का पूर्ण बहिष्कार किया गया था.
उस वक्त अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने सोवियत संघ के द्वारा अफगानिस्तान पर किए गए आक्रमण के विरोध में यह फैसला लिया था और अपने एथलीटों को मॉस्को ओलंपिक न भेजने का फैसला किया था.
इसके अलावा, 1964 में टोक्यो, 1984 में लॉस एंजिल्स, 1976 में मॉन्ट्रियल, 1956 में मेलबर्न, 1980 में मॉस्को और 1988 में सियोल में युद्ध, आक्रमण और रंगभेद जैसी तमाम वजहों के चलते विभिन्न देशों ने ओलंपिक खेलों का बहिष्कार किया था.
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