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बांग्लादेश चुनाव: भारत की सुरक्षा के लिए चुनावी नतीजों के क्या मायने?

Bangladesh Elections 2024: भारत के पूर्वोत्तर में विद्रोहियों से निपटने में हसीना सरकार का सहयोगात्मक रुख रहा है.

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Bangladesh Elections 2024: इस हफ्ते के शुरूआत में बांग्लादेश के हरकत-उल-जिहाद इस्लामी (HUJI) के दो सदस्यों को जुलाई 2005 में श्रमजीवी एक्सप्रेस में बम विस्फोट मामले में मौत की सजा सुनाई गई. इससे पहले इसी मामले में चार और लोगों को उम्रकैद की सजा दी गई थी. उस घटना में पूर्वी उत्तर प्रदेश में एक ट्रेन में किए गए बम विस्फोट में 14 लोगों की मौत हो गई थी और 60 से ज्यादा लोग जख्मी हुए थे.

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हमारे लिए यह याद रखना जरूरी है कि बांग्लादेश चुनाव (Elections in Bangladesh) सिर्फ उसके लोकतंत्र के भविष्य या आर्थिक दशा के बारे में नहीं हैं. यह सुरक्षा के बारे में भी है, लेकिन सिर्फ उसकी नहीं.

17 करोड़ की आबादी वाला बांग्लादेश लगभग पूरी तरह भारत से घिरा हुआ है और इसकी सरहदें मिजोरम, त्रिपुरा, मेघालय, असम और पश्चिम बंगाल से लगती हैं. अतीत में, और खासतौर से जब देश पर सैन्य तानाशाहों या बांग्लादेश नेशनल पार्टी (BNP) का शासन रहा है, तो वहां भारत के अलगाववादियों और विद्रोहियों को सुरक्षित पनाह मिली. इसने भारत में गतिविधियां चलाने के लिए घरेलू और विदेशी दोनों तरह के इस्लामी कट्टरपंथियों को मदद भी मुहैया कराई.

सहयोगी रही है शेख हसीना की सरकार

भारत जब बांग्लादेश की तरफ देखता है तो इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि 1996-2001 के बीच शेख हसीना (Sheikh Hasina) की सरकार के दौरान और फिर 2009 के बाद से उसे बांग्लादेशी सुरक्षा एजेंसियों का सहयोग मिला और देश में भारत विरोधी गतिविधियों पर अंकुश लगाने की कोशिशें की गईं.

ज्यादातर भारत विरोधी गतिविधियों के पीछे पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) थी, जिसे जमात-ए-इस्लामी के समर्थन से चल रही बेगम खालिदा जिया (Begum Khaleda Zia) की BNP सरकार के दौरान खुली छूट हासिल थी. HUJI ने गोरखपुर, लखनऊ, फैजाबाद और वाराणसी में सिलसिलेवार बम धमाके किए और 2008 में तथाकथित इंडियन मुजाहिदीन द्वारा किए गए बम धमाकों में मदद की.

हसीना सरकार पूर्वोत्तर में विद्रोहियों से निपटने में भी मददगार रही है. 2015 में इसने ULFA (यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम) के संस्थापक अनूप चेतिया और दो दूसरे नेताओं को, जिन्होंने बांग्लादेश में जेल की सजा पूरी कर ली थी, भारत को सौंप दिया.

भारत के लिए कितना बड़ा खतरा है, यह 2007 में साफ हो गया था जब सीमा सुरक्षा बल (BSF) ने अपने बांग्लादेशी समकक्षों को उत्तर-पूर्व के 112 अलगाववादी विद्रोहियों की लिस्ट सौंपी, जो बांग्लादेश की जमीन को लगातार पनाहगाह के तौर पर इस्तेमाल कर रहे थे. इसके अलावा उन्होंने बांग्लादेश को इन अलगाववादी समूहों द्वारा चलाए जा रहे 172 शिविरों की एक लिस्ट भी सौंपी.

इस्लामी कट्टरपंथी, खासतौर पर हूजी, जो वैचारिक रूप से अल कायदा से करीब है, बांग्लादेश के भीतर भी कई आतंकवादी हमलों के लिए जिम्मेदार रहा है. 2000 और फिर 2014 में वे शेख हसीना की हत्या की साजिश में शामिल थे. हूजी प्रमुख मुफ्ती अब्दुल हन्नान ने 2004 में एक ब्रिटिश राजदूत पर आतंकवादी हमले की अगुवाई की, जिसमें राजनयिक तो बच गए मगर तीन पुलिस वाले मारे गए.

बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरपंथी और भारत-विरोधी तत्व

हिंसा बांग्लादेशी राजनीति की एक खासियत रही है और इसके तहत इस्लामी कट्टरपंथियों की हिंसा भी आती है. हूजी के अलावा, जमात-उल-मुजाहिदीन, बांग्लादेश (JMB) भी है, जिसने 2005 में 30 मिनट की अवधि में 64 में से 63 जिलों में 459 सिलसिलेवार बम धमाकों को अंजाम दिया. JMB भारत में भी सक्रिय है और इसने जनवरी 2016 में दलाई लामा की यात्रा के मौके पर बोधगया में हमले को अंजाम दिया.

हाल के दिनों में JMB द्वारा शायद सबसे जबरदस्त आतंकी कार्रवाई 2016 में होली आर्टिजन बेकरी (Holey Artisan Bakery) पर किया गया हमला था, जिसमें 22 नागरिक, दो पुलिस अफसर और पांच आतंकवादी मारे गए. मारे गए लोगों में नौ इतालवी, सात जापानी और एक भारतीय नागरिक शामिल थे.

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शेख हसीना के सख्त रवैये से बांग्लादेश में कई इस्लामी कट्टरपंथी संगठनों और भारत-विरोधी तत्वों पर कुछ हद तक काबू पाया जा सका है. आतंकवाद पर अमेरिकी विदेश विभाग की रिपोर्ट में बांग्लादेश को लेकर कहा गया है कि 2022 में, “बांग्लादेश में सरकार द्वारा आतंकवादियों पर सख्ती से की गई कार्रवाई के चलते आतंकवादी हिंसा की घटनाओं में कमी आई,” खासतौर से JMB जैसे अल कायदा से जुड़े गुट पर लगाम लगाने की कोशिश की गई, जो अब ISIS की शाखा चला रहा है.

बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरपंथियों चुनौती ही इकलौती ऐसी चीज नहीं है, जो भारतीय सुरक्षा को प्रभावित करती है. कुल मिलाकर देश की स्थिति ऐसी है कि दूसरे मुद्दे जैसे कि चीन, पाकिस्तान या अमेरिका जैसे दूसरे देशों के साथ इसके रिश्ते भी हम पर असर डालते हैं.

आतंकवादियों और अलगाववादियों को समर्थन देने वाला पाकिस्तान के अलावा, अमेरिका ने ट्रेनिंग और संसाधन देकर बांग्लादेश के आतंकवाद विरोधी एजेंडे में मदद की है. अमेरिका बांग्लादेश में लोकतंत्र में गिरावट को लेकर फिक्रमंद है, जिस पर भारत की चिंता थोड़ी कम है.

और चीनी फैक्टर

दूसरी ओर, चीन बड़ी चुनौती पेश कर रहा है. 2016-2022 के बीच, बीजिंग बांग्लादेश में सबसे ज्यादा FDI लाने वाले देश के रूप में उभरा, जिसने लगभग 26 बिलियन डॉलर का निवेश किया. चीनी कर्ज ने बांग्लादेश को पद्मा नदी पर पुल और कर्णफुली नदी के नीचे सुरंग जैसी महत्वपूर्ण इन्फ्रास्ट्रक्चर योजनाएं शुरू करने में मदद की है.

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चीन बांग्लादेश में एक दर्जन हाईवे, 21 पुल और 27 पावर प्लांट के निर्माण में शामिल है और उसकी कंपनियों की उन नए इकोनॉमिक जोन में हिस्सेदारी रखने की योजना है, जिन्हें ढाका तैयार करना चाहता है. लगभग 25 अरब डॉलर के कारोबार के साथ चीन अब बांग्लादेश का सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है.

बीजिंग ने सब्जियों, फ्रोजेन और जिंदा मछली, लेदर, टेक्सटाइल, पेपर यार्ड, वूवेन फैब्रिक, गारमेंट और अपैरल आइटम जैसे 98 प्रतिशत बांग्लादेशी उत्पादों के ड्यूटी-फ्री आयात की इजाजत दी है.

शायद ज्यादा महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि चीन बांग्लादेश को सैन्य उपकरणों का एक बड़ा सप्लायर भी है. 2010 के बाद से बांग्लादेश का दो-तिहाई से ज्यादा हथियार आयात चीन से हुआ है. इसकी सेना चीनी टैंकों पर चलती है, इसकी नौसेना के पास चीनी फ्रिगेट और मिसाइल बोट हैं, और इसकी एयरफोर्स चीन में बने फाइटर जेट उड़ाती है.

2013 में, ढाका ने अपनी नेवी के लिए दो चीन निर्मित सबमरीन खरीदने का फैसला किया और उन्हें रखने के लिए एक नेवल बेस का निर्माण कराया.

मौजूदा चुनाव को लेकर असल खतरा यह है कि यह हकीकत में निर्विरोध होगा क्योंकि मुख्य विपक्षी दल BNP यह कहते हुए इसका बहिष्कार कर रहा है कि सत्तारूढ़ अवामी लीग ने इसके नतीजों में हेरफेर करने के लिए दमन का सहारा लिया है. सत्तारूढ़ दल की रणनीति से देश में अस्थिरता का माहौल भी बन सकता है.

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कभी कमजोर देश माना जाने वाला बांग्लादेश आज दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गारमेंट्स एक्सपोर्टर है और उसने अपनी अर्थव्यवस्था के मामले में आमतौर पर अच्छा प्रदर्शन किया है. हालांकि, पिछले साल से देश मुद्रास्फीति, फ्यूल की कमी और विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट से जुड़ी आर्थिक समस्याओं से परेशान है, जिसने देश को IMF (अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष) की शरण में जाने पर मजबूर किया है.

हमेशा से बेहद नाजुक रहे राजनीतिक माहौल में गारमेंट वर्कर के लगातार हिंसक और अहिंसक दोनों तरह के विरोध प्रदर्शनों ने देश में उबाल ला दिया है. इससे सत्ता विरोधी माहौल में कड़वाहट बढ़ गई है, हालांकि, BNP के चुनाव मैदान से बाहर रहने शेख हसीना फिर से चुनी जाएंगी.

फिर उसके बाद क्या होता है, यह एक नई कहानी होगी…

(लेखक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली के प्रतिष्ठित फेलो हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और यह लेखक के अपने विचार हैं. द क्विंट इनके लिए जिम्मेदार नहीं है.)

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