इजरायल में बेंजामिन नेतन्याहू (Benjamin Netanyahu) की सत्ता के आखिरी दिनों की तुलना डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) से करना गलत नहीं होगा. ट्रंप की तरह नेतन्याहू अपने खिलाफ खड़े हुए गठबंधन को फ्रॉड बताते रहे. इंटेलिजेंस एजेंसियों को डर था कि नेतन्याहू के समर्थक 6 जनवरी जैसी कैपिटल हिंसा कर सकते हैं. ट्रंप और नेतन्याहू में एक बात और कॉमन है, दोनों पद से हटने के बाद भी प्रभावशाली हैं- ट्रंप रिपब्लिकन पार्टी में तो नेतन्याहू इजरायली राजनीति में. फिर भी बीबी नेतन्याहू ट्रंप नहीं हैं.
नफ्ताली बेनेट (Naftali Bennett) और यैर लपीद (Yair Lapid) ने नेतन्याहू को सत्ता से बेदखल करने के लिए एक गठबंधन खड़ा किया. बेनेट प्रधानमंत्री बन गए, लपीद विदेश मंत्री और गठबंधन की आठ पार्टियों को सरकार में कोई न कोई मंत्री पद देकर संतुलन बना दिया गया.
पर अगर इस गठबंधन का बहुमत देखा जाए तो याद आएगा कि इसके लिए नेतन्याहू को सत्ता से दूर रखना बहुत मुश्किल होने वाला है. बेनेट की सरकार को 60 सांसदों का समर्थन मिला है. 120 सदस्यों की संसद में ये बहुमत सिर्फ नाम का है और लेफ्ट, राइट, अरब पार्टियों का ये गठबंधन बहुत अस्थिर है.
लेकिन सिर्फ यही वजह नहीं है कि बेंजामिन नेतन्याहू के दौर को खत्म समझना बड़ी भूल हो सकती है.
राजनीति में अब भी 'किंग' हैं बीबी?
समर्थकों नेतन्याहू को 'किंग बीबी' किसी वजह से बुलाते हैं. पिछले 12 सालों से लगातार नेतन्याहू सत्ता में थे. नेतन्याहू गठबंधन बनाने में 'जीनियस' कहे जाते हैं. इस साल के चुनाव में वो ये करिश्मा नहीं दोहरा पाए. लेफ्ट से लेकर दक्षिणपंथी सभी पार्टियां उनके खिलाफ लामबंद हो गईं.
नेतन्याहू सरकार से बाहर हो गए लेकिन उनका प्रभाव खत्म नहीं होता है. नई सरकार में शामिल बेनेट, गिडोन सार, अयेलेट शकेद जैसे लोग एक समय में नेतन्याहू के ही शागिर्द रहे हैं. उनकी पार्टी लिकुड आज भी इजरायल का सबसे बड़ा राजनीतिक दल है.
इसके अलावा नेतन्याहू ट्रंप की तरह ही सोशल मीडिया का बखूबी इस्तेमाल करना जानते हैं. जैसे ही नफ्ताली बेनेट और लपीद के साथ आने की खबरें सामने आईं, नेतन्याहू ने बेनेट पर हमला बोलना शुरू कर दिया. उन्होंने बेनेट को लपीद के साथ गठबंधन न करने का पुराना वादा याद दिलाया, बेनेट पर ‘फ्रॉड’ करने के आरोप लगाए. नतीजा ये हुआ कि दक्षिणपंथी समर्थक यामिना पार्टी के प्रमुख बेनेट के घर के बाहर प्रदर्शन करने लगे.
बेनेट के लिए नेतन्याहू एक मजबूत विपक्ष हैं. लिकुड को 2021 के चुनाव में सबसे ज्यादा वोट मिले थे. नेतन्याहू का अपना समर्पित वोट बैंक और कट्टर समर्थक हैं. विपक्ष में रहकर भी वो बेनेट के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं. कमजोर बहुमत वाली सरकार की एक गलती भी नेतन्याहू भुनाने से चूकेंगे नहीं.
नेतन्याहू को अनुभव का फायदा
नफ्ताली बेनेट दक्षिणपंथी विचारों और कट्टर सोच के मामले में नेतन्याहू से भी दो कदम आगे हैं. दोनों में बुनियादी फर्क अनुभव का है. बेनेट खुले तौर पर फिलिस्तीनियों के लिए द्वेष जाहिर कर भेदभाव की बात करते हैं, पर नेतन्याहू अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने इन भावनाओं को प्रकट न करने का हुनर रखते हैं.
नेतन्याहू साल 2009 के बाद से फिलिस्तीन की स्थापना को लेकर कई बार विचार बदल चुके हैं. वो वेस्ट बैंक में सेटलमेंट के पक्ष में भी हैं. इजरायल के सबसे करीबी सहयोगी अमेरिका से भी फिलिस्तीन के प्रति अपनी भावना व्यक्त कर चुके हैं. लेकिन नेतन्याहू भाषा का खेल जानते हैं, उन्हें अनुभव का फायदा मिलता है.
नेतन्याहू ने डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में बिना फिलिस्तीन को कुछ छूट दिए अपने कई अरब पड़ोसी देशों के साथ संबंध सामान्य किए थे. नेतन्याहू के 12 सालों में इजरायल क्षेत्रीय सुपरपावर बन चुका है. अरब देश अब इजरायल से सीधे बात करते हुए कतराते नहीं हैं और फिलिस्तीन का मुद्दा बस औपचारिकता रह गया है.
बेनेट का सामना अब ट्रंप नहीं बल्कि डेमोक्रेट जो बाइडेन से है. बाइडेन ईरान के साथ परमाणु डील पर बातचीत शुरू करने की योजना में हैं. बराक ओबामा ने जब ऐसा किया था तो नेतन्याहू सीधे व्हाइट हाउस पहुंच गए थे और ओबामा को प्रेस के सामने मिडिल ईस्ट पर लंबा लेक्चर दिया था. बेनेट परमाणु डील के खिलाफ हैं लेकिन बाइडेन को कैसे रोकना है, इसकी शायद उनके पास कोई योजना नहीं है.
आठ पार्टियों का गठबंधन अपने आप में चुनौती है. हर एक मुद्दे पर सरकार के अंदर ही विरोधाभास हो सकता है. नेतन्याहू ये सब समझते हैं, तभी शायद उन्होंने संसद में कहा था, "मैं जल्दी लौटूंगा."
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