पड़ोसी पाकिस्तान ने एक बार फिर हद पार कर दी है. अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत और पाकिस्तान (Pakistan-India) का एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने की घटना तो लगातार होती रहती हैं, लेकिन इसके बाद भी व्यक्तिगत हमलों से दूरी बनाए रखी जाती है. लेकिन इस बार पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी (Bilawal Bhutto) ने उस सीमा को भी लांघ दिया है. 15 दिसंबर को बिलावल भुट्टो ने न्यूयॉर्क में पाकिस्तान की मीडिया से बात करते हुए भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को "गुजरात का कसाई" (the butcher of Gujarat) कह डाला.
बिलावल भुट्टो के इस विवादस्पद बयान को कई लोगों ने भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर की "लादेन की मेहमान नवाजी करने वाले उपदेश न दें" टिप्पणी का जवाब बताया.
लेकिन सवाल है कि सलाहकारों की फौज साथ होने के बावजूद बिलावल भुट्टो ने दुनिया के सबसे बड़े आतंकी माने जाने वाले ओसामा बिन लादेन की तुलना दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के मुखिया से क्यों कर दी, जबकि यह कूटनीतिक रूप से फायदेमंद कदम भी नहीं जान पड़ता है. इसके ये 3 कारण हो सकते हैं.
1. PM मोदी पर टिप्पणी के जरिए अपनी फीकी राजनीति चमका रहे भुट्टो
अपनी मां और पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या के बाद 2007 में बिलावल भुट्टो ने राजनीति में कदम रखा था. लेकिन अबतक बिलावल भुट्टो ने किसी बड़ी राजनीतिक जीत का स्वाद नहीं चखा है. अगर सिंध प्रांत को छोड़ दें तो बिलावल के नेतृत्व में उनकी पार्टी- पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) पाकिस्तान के बाकी राज्यों में कमजोर ही हुई है.
बिलावल की किस्मत 2022 की शुरुआत में इमरान खान सरकार के पतन से चमकी. शाहबाज शरीफ के गठबंधन वाली सरकार बिलावल के राजनीतिक करियर के लिए वरदान साबित हुई. लेकिन आने वाले चुनाव में जीत के लिए बिलावल का सिर्फ विदेश मंत्री बनना काफी नहीं है, खासकर तब जब इमरान एक के बाद एक चुनावी बाजी मार रहे हैं.
पाकिस्तान के राजनीतिक गलियारों में हमेशा तेज रहने वाली भारत विरोधी भावनाओं को ध्यान में रखते हुए (विशेष रूप से बीजेपी और पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ) ऐसा सुर्खियां बटोरने वाला बयान बिलावल की लोकप्रियता हासिल करने और आगामी आम चुनावों में वोट बढ़ाने का शॉर्टकट हो सकता है.
2. शाहबाज की लड़खड़ाती गठबंधन सरकार को लोकप्रियता की बूस्ट देने की कोशिश
जुलाई में हुए उपचुनावों में इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) की शानदार जीत और 'कैप्टन' इमरान खान के "लॉन्ग मार्च" में शामिल होती भीड़ से जाहिर होता है कि शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली सरकार बेहद अलोकप्रिय है.
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था भयावह दौर से गुजर रही है. GDP ग्रोथ रेट में गिरावट और विदेशी मुद्रा भंडार में कमी के बीच पाकिस्तान की विदेश लोन पर निर्भरता जारी है. इस साल आयी भयावह बाढ़ ने पाकिस्तान ने हाजरों लोगों की जान ली थी. पाकिस्तान में उच्च महंगाई दर (नवंबर में 23.8%, अक्टूबर में 26.6%) से वहां की जनता त्रस्त है. यहां तक कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने सितंबर में चेतावनी भी जारी की थी कि उच्च महंगाई सामाजिक विरोध और अस्थिरता को बढ़ावा दे सकती है.
लगता है कि बिलावल और शाहबाज यह मान कर चल रहे हैं कि पाकिस्तान की राजनीति को देखते हुए पीएम नरेंद्र मोदी को निशाने पर लेकर भारत के खिलाफ लोकलुभावन बयान उनके सरकार के पक्ष में काम कर सकता है.
3. पीएम मोदी के जरिए इमरान को साध रही पाकिस्तान की सरकार
सत्ता से बाहर होने के बाद से ही इमरान खान राजनीतिक रूप से शाहबाज सरकार के लिए नासूर बने हुए हैं. इमरान ने राजनीतिक मोर्चे पर अपनी पार्टी को मजबूत किया है और गोलीकांड के बाद जनता की सहानुभूति उनके साथ और मजबूती से जा सकती है. शाहबाज सरकार के लिए वो सबसे बड़ी चुनौती हैं. और इसका समाधान वो भारत के रास्ते खोज रही है.
याद रहे कि अप्रैल में सत्ता से बेदखल होने के बाद से पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने PM मोदी के नेतृत्व में भारत और उसकी विदेश नीति की बार-बार तारीफ की है. पिछले दो महीनों में कम से कम दो मौकों पर, इमरान खान ने स्वतंत्र विदेश नीति रखने और पश्चिमी देशों के दबाव के बावजूद रूसी तेल खरीदने के लिए भारत की सराहना की है.
इसके ठीक उलट पाकिस्तान के विदेश मंत्री अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत को घेर रहे हैं और पीएम मोदी जो 'गुजरात का कसाई' तक बता रहे हैं. दरअसल वो पाकिस्तानी जनता को संदेश देते दिखर रहे हैं कि जहां इमरान भारत के प्रति नरम हैं, वहीं मौजूदा शासन भारत के हमले का जवाब दिए बिना नहीं रह रहा है.
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