पाकिस्तान (Pakistan) की सियासत में उठापटक हुई. इमरान (Imran Khan) की विदाई व शहबाज शरीफ (shehbaz sharif) की ताजपोशी हुई. इसके पीछे हर ओर चर्चा है कि इमरान की सरकार इसलिए गई क्योंकि इमरान अमेरिका के खिलाफ बोलने लगे थे.
अमेरिका के मामले को प्रकाश में लाते हुए इस उथल पुथल के पीछे चीन के हाथ पर ज्यादा चर्चा नहीं हुई. जबकि चीन ही वह मुल्क है जो पिछले कई सालों से पाकिस्तान को अपनी कठपुतली बनाए हुए है. चीन की शह पर ही पिछले काफी समय से इमरान अमेरिका विरोधी रुख अपना रहे थे. चीन का असली निशाना तो भारत है. तो क्या पाकिस्तान को अस्थिर कर चीन भारत को नुकसान पहुंचाना चाहता है? यह सवाल अपने आप में अटपटा लग सकता है लेकिन जब आप भारत से सटे देशों में चीन की दखलअंदाजी पर गौर करेंगे तो पूछेंगे कि क्या चीन भारत की घेराबंदी कर रहा है? यहां इस रिपोर्ट में पढ़िए भारत के पड़ाेसी देशों में चीन की ऐसी ही कारस्तानियों के बारे में -
श्रीलंका का बेड़ा गर्क
अभी हाल ही में पूरी दुनिया में श्रीलंका की खस्ता हालत की खबरों ने सुर्खियां बटोरीं. वहां खाने-पीने की चीजें भी अब खरीद से बाहर हो चुकी हैं. उसे इस हालत में पहुंचाने में चीन का बहुत बड़ा हाथ है.
श्रीलंका ने भारी भरकम विदेशी कर्ज इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए ले रखा है. इस विदेशी कर्ज का 10 प्रतिशत चीन ने रियायती ऋण के नाम पर दे रखा है. यहां की सरकार को कॉमर्शियल लोन चीन की सरकारी बैंकों ने ही दिए हैं.
जब श्रीलंका पर आर्थिक संकट आया तो चीन ने उसका हंबनटोटा पोर्ट हथिया लिया. श्रीलंका को चीन ने अपने 'डेट ट्रैप' में फंसाया. उसने अपना पैसा लोन के रूप में यहां की परियोजनाओं में फंसाया. पैसा उसका और काम भी वही करता रहा. जब श्रीलंका पैसे को चुका नहीं पाया तो वैकल्पिक व्यवस्था के तहत उन्हें चीन को अपने वे इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट सौंपने पड़े.
श्रीलंका से पहले चीन ने लाओस, जाम्बिया, केन्या, मलेशिया, जिबूती जैसे छोटे देशों को अपने इसी कर्जजाल में फंसाया है. श्रीलंका तो अभी भी संभलता नहीं दिख रहा, उसने चीन से 2.5 अरब डॉलर का और ऋण मांगा है. श्रीलंका पता नहीं चीनके पंंजे में किस मजबूरी में जकड़ा हुआ था कि उसने वहां से तीन से छह प्रतिशत की ब्याज दर पर कर्ज लिया जबकि विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एक से तीन फीसद की रेट पर कर्ज देते हैं.
पाकिस्तान को एक दिन ड्रैगन जरूर निगलेगा
पाकिस्तान से दोस्ती निभाने के बहाने चीन वहां की अर्थव्यवस्था को अपने कब्जे में लेता जा रहा है. चीन ने पिछले कई वर्षों से पाकिस्तान में अरबों डॉलर का निवेश किया है.
साल 2015 में पाकिस्तान में 50 बिलियन डॉलर से ज्यादा चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) नामके प्रोजेक्ट में लगाए. यह भी चीन के उस बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) से जुड़ी परियोजना है, जिसके जरिए ड्रैगन मुल्क कई सारे देशों केा जकड़ में लेता रहा है.
इस योजना में चीन ने अपने पैसे से पाकिस्तान की बिजली और सड़क के प्रोजेक्ट से जुड़े कई स्ट्रक्चर सुधारे. नए रोजगार बढ़ाने की 27 परियोजनाओं में पैसा लगाया जिन्हें वह वक्त पड़ने पर पाकिस्तान से जमकर वसूलेगा.
चीनी कंपनियों ने सिंध के दक्षिणी प्रांत में कई परियोजनाओं को पूरा किया है, और साथ ही पाकिस्तान स्टॉक एक्सचेंज (पीएसएक्स) कंपनी में 40% हिस्सेदारी खरीदी ली है. रिपोर्ट्स बताती हैं कि भारत के खिलाफ जाने के अपने मिशन में चीन पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के आतंकियों को भी मदद देता रहा है.
पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के केल, ज़ुरा और लीपा सेक्टर में कई चीनी सैनिक पहुंचाए जाते रहे हैं. पाकिस्तानी सैनिकों और आईएसआई के अधिकारियों को भी चीन ट्रेनिंग मुहैया कराता है.
पाकिस्तानी भले ही चीनी निवेश को वरदान मानते हों पर आने वक्त में उन्हें इसे अभिशाप होने का अहसास होगा जब ड्रैगन उन्हें निगलने लगेगा.
नेपाल को लेकर कोई बड़ा प्लान
नेपाल में केपी ओली लीडरशिप वाली पूर्व की कम्युनिस्ट सरकार ने भारत केा आंखें दिखाने और चीन की गोद में बैठने की नीति शुरू की थी पर चीन ने अपनी आदत के अनुसार नेपाल की पीठ में ही छुरा घोंपा. एक गुप्त रिपोर्ट से सामने आया है कि चीन धीरे-धीरे नेपाल के इलाकों में घुसपैठ करके उसकी जमीन हड़पता जा रहा है.
वह पहले से ही तिब्बत से सटे नेपाल के क्षेत्र में अवैध कब्जा करता रहा है और अब पश्चिमी नेपाल पर उसकी बुरी नजर है. दोलाखा में तीन पिलर और माउंट एवरेस्ट इलाके में दो पिलर को लेकर नेपाल से उसका पुराना विवाद है. चीनी सैनिक नेपालियों केा कैलाश पर्वत के पास स्थित उनके धार्मिक स्थल लालूंगजोंग में पूजा के लिए भी नहीं जाने देते.
चीन दोलखा के अलावा गोरखा, दारचुला, हुमला, सिंधुपालचौक, संखुवासभा और रसुवा जिलों में बहुत आक्रामक तरीके से आगे बढ़ता रहा है. नेपाल की अधिकांश सीमावर्ती नदियों हुमला, कर्णली, संजेन, रसुवा में लेमडे नदी, भुर्जुग, खारेन, सिंधुपालचौक की जंबू नदी, संखुवासभा में भोटेकोशी नदी, समजुग नदी, कामखोला नदी तथा अरुण नदी के पास की बाउंडरी पिलर को उसने धकेलना शुरू कर दिया है और इलाके अपने नक्श में दिखाने लगा है.
हुमला में चीन ने नेपाली जमीन पर पक्के निर्माण कर लिए हैं. पहले सत्ता में रही नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) ने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के इस विस्तारवादी एजेंडे पर परदा डालने का प्रयास किया.
भारत के नजदीक होने और वहां से भारत पर निगरानी रख सकने के कारण ड्रैगन के खुफिया जासूस नेपाल में जबरदस्त तरीके से फैले हुए हैं. यदि कहा जाए कि नेपाल को हड़पने का चीन का एक बहुत बड़ा गुप्त प्लान है तो यह ड्रैगन की विस्तारवादी नीति को देखते अतिश्योक्ति नहीं कही जाएगी.
भूटान को कहीं पूरा ही न हड़प जाए चीन
भारत के पड़ोसी देशों में साजिश रचने की आदतों में एक और कड़ी जोड़ते हुए चीन ने भूटान (Bhutan) के क्षेत्र में कई गांवों का निर्माण कर डाला था. इंटेल लैब के साथ काम करने वाले एक अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ता ने सैटेलाइट तस्वीरों को देखकर यह खुलासा किया था.
चीन भूटान के उत्तरी और पश्चिमी भाग में दावेदारी जताता रहा है. कुछ समय पहले तो उसने पूर्वी भाग में दावेदारी जता दी. चूंकि पूर्वी भाग अरुणाचल से लगा हुआ है तो इसे चीन की भारत के साथ नया विवाद खड़ा करने की चाल माना जा रहा है. पहले भी भूटान के डोकलाम में जब चीन के सैनिक पहुंच गये थे, तो उस समय भारत ने ही भूटान की मदद के लिए अपने सैनिक भेजे थे. जिसके बाद भूटान पर चीन ने बेहद सख्त रवैया अपना लिया था.
बाद में चीन ने भूटान पर दबाव बनाते हुए सीमा विवाद पर 'थ्री स्टेप रोडमैप' समझौत किया और चीनी मीडिया ने भारत को इस मामले से दूर रहने की नसीहत भी दे डाली. कुल मिलाकर चीन भारत के लेकर सतर्कता के कारण ही भूटान पर अपना दबदबा बनाना चाहता है.
भूटान के चेरकिपगोम्पा, धो, डुंगमार, गेसुर, गेजोन, इत्सेगोम्पा, खोचर, न्यानरी, रिंगुंग, सन्मार, तारचेन और जुथुल्फुक क्षेत्रों केा तिब्बत का इलाका मानते हुए वह इन पर दावा जताता रहा है.
भूटान के कुलाकांगड़ी और इस चोटी के पश्चिम के पहाड़ी क्षेत्र और भूटान के पश्चिमी हा जिले को भी वह अपना बताता है.
म्यांमार: चीन की बात मानना इस देश की मजबूरी
चीन म्यांमार को उसके बेल्ट एंड रोड प्रोजक्ट की कई परियोजनाओं में जबरन हिस्सा बनाना चाहता है. म्यांमार इसे मंजूर नहीं कर रहा तो वह यहां की सरकार पर दबाव बनाने उनके यहां सक्रिय आतंकी समूहों को हथियार देता है वहां के आतंकियों की अराकान आर्मी 2019 से चीन निर्मित हथियारों और लैंड माइन के जरिए म्यांमार आर्मी पर हमला कर रही है.
ऐसी भी रिपोर्ट हैं कि साल 2021 में म्यांमार में सैन्य तख्तापलट भी चीन के इशारे पर ही करवाया गया था. म्यांमार में सैन्य जुन्टा के सक्रिय होने पर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी वहां अपनी पैठ बना रही है. चीन म्यांमार को केंद्र बनाकर भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में उग्रवाद को बढ़ावा देना चाहता है.
म्यांमार में तेल और खनिज के बहुत कीमती भंडार हैं, जिसका चीन अपने बिजनेस में उपयोग करना चाहता है. अपनी ऑयल नीड की पूर्ति के लिए चीन ने म्यांमार के रखाइन प्रांत से दक्षिणी चीन तक 4 अरब अमेरिकी डॉलर की लागत से दादागिरी दिखाकर एक पाइपलाइन बिछा रखी है, यानी चीन म्यांमार से तेल तो खरीद रहा है पर बदले में आंखें भी दिखा रहा है.
म्यांमार को भी चीन ने कर्ज के जाल में ले रखा है इससे आशंका है कि वहां कहीं श्रीलंका जैसा संकट ना पैदा हो जाए. जब से म्यांमार पर अमेरिका ने सख्त आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं, तब से चीन ने म्यांमार को अपने शिकंजे में ले रखा है, क्योंकि म्यांमार के पास चीन से व्यापार करने के अतिरिक्त कोई और विकल्प भी नहीं है.
वह सबसे अधिक एक्सपोर्ट चीन को ही करता है. उसके यहां केले, चावल, रबड़, गैस, पेट्रोल आदि का निर्यात चीन को ही होता है. इस दृष्टि से म्यांमार आर्थिक तौर पर चीन पर बहुत निर्भर है और चीन समय-समय पर उसे अपनी कठपुतली बनाने की चालें चलता रहता है.
तिब्बत को लूटने पर आमादा
हिमालय के उत्तर में स्थित 12 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ क्षेत्र तिब्बत जो कभी संप्रभु देशा हुआ करता था, को भी चीन ने अपनी इलाके की भूख के लिए लील लिया. चीन की पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी वहां पिछली एक सदी से दमन कर रही है. वहां के धर्मगुरु दलाई लामा भी अपना देश छोड़ भारत में शरण लेकर रह रहे हैं.
वहां उसका दमन चक्र चलता ही रहता है. उइगर मुसलमानों के बड़े पैमाने पर नज़रबंदी से पहले चीन ने सर्विलांस का डायस्टोपियन परीक्षण करने के लिए तिब्बत का इस्तेमाल प्रयोगशाला के तौर पर किया था.
कुछ लोगों को इसलिए जेल में ठूंसा, क्योंकि सोशल मीडिया पर उन्होंने प्रेयर लिख दी थी. तिब्बत के हरेक प्रदर्शन को वह बेदर्दी से कुचल देता है. दलाई लामा का दावा है कि चीन ने दमन करके तिब्बत के 12 लाख लोग मार दिए हैं.
हालांकि चीन इससे इनकार करता रहा है. भारत से नजदीकी का तिब्बत को हर संभव खामियाजा भुगतना पड़ रहा है. अर्थ न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक चीन ने तिब्बत के अनगिनत अवशेषों को नष्ट किया, तिब्बतियों की आजीविका छीनने का काम किया. तिब्बती लोगों के पशुधन, आभूषण, उनके वस्त्र, तंबू भी लूट लिए हैं. सिचुआन प्रांत में बुद्ध की 99 फुट ऊंची प्रतिमा का भी उसने विध्वंस कर दिया.
तिब्बत में लिथियम, यूरेनियम जैसे खनिज भरपूर पाए जाते हैं. चीन इसे ट्रेज़री यानी ख़ज़ाने की तरह मानकर लूटता रहा है. एशिया में बहने वाली कई बड़ी नदियों का उद्गम तिब्बत से ही है. ऐसे में चीन इस उपजाऊ इलाके का काफी फायदा उठा रहा है.
भारत की सीमा के दूर वाले अन्य पड़ोसी भी परेशान
थाईलैंड पर दादागिरी दिखाते हुए दक्षिण पूर्वी एशिया तक अपना माल भेजने के लिए चीन उसकी मीकांग नदी में अपने जहाज जबरदस्ती घुसेड़ देता है. ब्रुनेई का एक्सक्लूसिव इकोनामिक जोन (ईईजेड) दक्षिण चीन सागर तक फैला हुआ है जिसे चीन अपना इलाका घोषित कर चुका है.
मलेशिया से लगने वाले दक्षिण चीन सागर पर उसने अपनी दादागिरी दिखाकर मलेशिया के जलक्षेत्र को ही अपना बता दिया है. लाओस के बारे में तो चीन ने यह कहा कि 1271 से 1368 तक यहां चीन के युवान वंश ने राज किया तो चीन का ही हिस्सा है. वियतनाम में भी दक्षिण चीन सागर में दखल देते हुए चीन मेक्कालेस फील्ड तट, पारासोल और इस्पार्टले द्वीपों को लेकर विवाद करता रहता है.
लाओस की तरह ही कंबोडिया व ताइवान पर भी चीनी पूर्वजों के राज्य करने की बात कहकर अपना अंग बताता रहता है. सोवियत संघ से टूटे भारत के तीन पड़ोसियों कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान और किर्गिस्तान में भी चीनका जबरन दखल है.
कजाकिस्तान की 14,000 वर्ग किमी जमीन पर अपनी दावेदारी करता है. किर्गिस्तान के तो पूरे इलाके को अपना बताता है. अभी इसके 7250 वर्ग किमी जगह पर डिस्प्यूट चल रह है. ताजिकिस्तान से तो 1999 में 200 वर्ग किमी और 2002 में 1122 वर्ग किमी इलाके केा हड़प ही चुका है.
कैसे जकड़ता है जाल में
चीन की महत्वाकांक्षांए, उसकी विस्तारवादी नीति, सुपरपॉवर बनने का उसका छुपा एजेंडा, उसकी कूटनीतिक चालें अब दुनिया के आगे उजागर होने लगी हैं.
वह ज्यादातर समय अपने पड़ोसियों की जमीन हड़पने उन्हें अस्थिर करने के काम में ही लगा रहा है. इस उद्देश्य के लिए वह आर्थिक, व्यापारिक, सैन्य विषयों के साथ उनके अंदरूनी मामलों तक में दखल देने लगा है. उसकी सबसे पहली चोट आर्थिक मोर्चे पर ही रहती है.
वह आर्थिक सहयोग के नाम पर भारी भरकम राशि इन देशों को कर्ज के रूप में देता है और फिर उस कर्ज की किश्त व ब्याज टाइम पर न चुका पाने पर पेमेंट के लिए एक नया कर्ज फाइनेंशियल मदद का लेवल लगाकर मुहैया कराता है और जब वे देश इस कर्ज और ब्याज के दलदल में बुरी तरह फंस जाते हैं तो चीन उनकी सम्पत्तियां हड़पने के साथ अपनी अर्नगल शर्तें भी उन पर थोपने लगता है.
पाकिस्तान व श्रीलंका चीन की इसी कुटिल चाल में बुरी तरह से फंसे हुए हैं. श्रीलंका का हाल तो पूरी दुनिया के सामने आ गया, पर पाकिस्तान अपने अंध भारत विरोध और चीन की भक्ति के चलते उसके जाल में फंसे होने पर भी उसके गुण गाता रहता है.
भारत को घेरना प्रमुख कारण
कुल मिलाकर चीन भारत के पड़ोसियों को परेशान करने, उन्हें धन का लालच देने या अन्य तरीकों से दबाव डालकर अपनी तरफ करने के जो भी पैंतरे चलता है, उसमें उसका उद्देश्य भारत को घेरने का रहता है.
चीन को इस बात का अच्छी तरह अंदेशा है कि एशिया में अगर कोई मुल्क उसे टक्कर दे सकता है तो वह भारत ही है. भारत को पूरे एशिया के लीडर बनने से रोकने के लिए वह हमारे पड़ोसियों की रफ्तार को भी थामना चाहता है.
भारत के पाकिस्तान के अलावा अपने सभी पड़ोसियों से मधुर संबंध है. ऐसे में मजबूत भारत के साथ उसके मजबूत पड़ोसियों का गठबंधन चीन के लिए खासा सिरदर्द बन सकता है, इसलिए वह भारत के आसपास के मुल्कों की राह में रोड़े अटकाने की नीति पर काम कर रहा है.
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