14वें दलाई लामा प्रोस्टेट कैंसर से पीड़ित हैं और पिछले 2 साल से अमेरिका में उनका इलाज चल रहा है. विश्वसनीय सूत्रों के मुताबिक, उनकी बीमारी आखिरी स्टेज तक पहुंच चुकी है.
सूत्रों ने क्विंट को बताया कि भारत सरकार को इस बारे में पिछले एक साल से ज्यादा समय से जानकारी है. चीन की सरकार को भी इस बारे में कई महीनों से पता है. हालांकि केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीएटी) ने इस रिपोर्ट को खारिज किया है.
तिब्बतियन पॉलिसी इंस्टीट्यूट के त्सरिंग धोंडुप ने क्विंट को बताया कि दलाई लामा का स्वास्थ्य चिंता का विषय नहीं है. उनका कहना है कि वे स्वस्थ हैं और जल्द ही विदेश यात्रा करने वाले हैं.
82 वर्षीय दलाई लामा का स्वास्थ्य पिछले कुछ समय से चिंता का विषय रहा है. इस साल उनके सार्वजनिक कार्यक्रमों और यात्राओं में कमी देखी गई है. मार्च में सीएटी ने एक बयान जारी किया, जिसमें उनके सार्वजनिक कार्यक्रमों के रद्द होने के पीछे उनकी थकावट और बढ़ती उम्र की वजह बताई गई. उस वक्त सीएटी के प्रवक्ता सोनम दगपो ने सीएनएन को बताया था:
“आदरणीय दलाई लामा को विभिन्न देशों में आमंत्रित किया जाता है. लेकिन उन्होंने बढ़ती उम्र की वजह से सार्वजनिक कार्यक्रमों में शिरकत करना कम कर दिया है. लंबे अरसे से काम करते रहने की वजह से वे थक गए हैं, इसलिए कुछ कार्यक्रमों को रद्द कर दिया गया है.”-सोनम दगपो, प्रवक्ता, केंद्रीय तिब्बती प्रशासन
कौन हो सकता है उत्तराधिकारी?
भारत सरकार ने इस साल फरवरी में दलाई लामा के स्वास्थ्य के बारे में आई खुफिया रिपोर्ट्स पर ध्यान दिया. दलाई लामा का उत्तराधिकारी कौन होगा, ये चीन और अमेरिका समेत कई देशों के लिए दिलचस्पी का विषय रहा है.
2015 में दलाई लामा ने उन खबरों का मजाक उड़ाया था, जिसमें कहा गया था कि चीनी सरकार उनके पुनर्जन्म को 'नियंत्रित' करने की कोशिश कर रही है. उन्होंने यह भी कहा था कि उनके उत्तराधिकार के मुद्दे को उनके 90वें जन्मदिन के आसपास औपचारिक रूप से हल किया जाएगा.
अमेरिका ने चीन से दखलंदाजी न करने को कहा
दलाई लामा के बिगड़ते स्वास्थ्य के बारे में आई हालिया रिपोर्ट्स से लगता है कि उत्तराधिकार मुद्दे को जल्द से जल्द हल करना पड़ सकता है. चीन ने इस बारे में सक्रियता बढ़ाई है. पिछले हफ्ते ट्रम्प प्रशासन ने एक बयान जारी करते हुए चीन से कहा है कि वे इस मामले में दखलंदाजी न करे. अमेरिका के विधायी मामलों के सहायक राज्य सचिव मैरी के वाटर्स के साइन वाली रिपोर्ट में कहा गया है:
अमेरिकी सरकार का मानना है कि तिब्बती बौद्धों के धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का सम्मान होना चाहिए. दलाई लामा समेत तिब्बती बौद्ध लामाओं के उत्तराधिकार या पहचान उनके विश्वासों के अनुरूप, दखलंदाजी के बिना होना चाहिए.यूएस कांग्रेस को भेजी गई तिब्बत वार्ता रिपोर्ट
तिब्बती प्रशासन दलाई लामा के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी रोकने की कोशिश कर रहा है, जबकि खुफिया रिपोर्ट कुछ और ही संकेत दे रहे हैं. दो साल पहले दलाई लामा अमेरिका के मेयो क्लिनिक में पहली बार पहुंचे थे. वो पहला संकेत था कि वे वहां प्रोस्टेट कैंसर के इलाज के लिए गए थे. इसके बाद से मेयो क्लिनिक में उनकी लगातार हुई यात्राएं वजह समझने के लिए काफी थीं.
पता चला कि दलाई लामा मेयो क्लिनिक में प्रोटॉन बीम थेरेपी करवा रहे थे. लेकिन कैंसर पहले ही प्रोस्टेट से उनके शरीर के दूसरे हिस्सों में फैल चुका था. कहा जा रहा है कि अब यह लाइलाज है. नतीजतन, दलाई लामा ने अपनी कई विदेशी यात्राओं को रद्द कर दिया, क्योंकि अब वे लंबी यात्राएं नहीं कर सकते. इस साल सितंबर में स्विट्जरलैंड में रिकॉन की 50वीं वर्षगांठ समारोह में भाग लेने के लिए होने वाली उनकी यात्रा एक अहम संकेत होगा, जिसे उन्होंने अभी तक रद्द नहीं किया है.
इन बातों से भी मिले संकेत
इस साल दलाई लामा के हालिया सार्वजनिक मौजूदगी के वीडियो फुटेज में वे कई सहयोगियों की मदद से चलते नजर आ रहे हैं. इस बारे में उनके दो हाल के सार्वजनिक कार्यक्रमों में खास संकेत देखने को मिलता है. 18 मार्च को जम्मू यूनिवर्सिटी में और 31 मार्च को धर्मशाला में 'थैंक यू इंडिया' कार्यक्रम में. उठने-बैठने के दौरान उनके सहयोगियों को उनकी मदद करते देखा गया, क्योंकि प्रोस्टेट कैंसर की वजह से उन्हें बार-बार झुकने में दिक्कत आ रही है.
इसके अलावा, दलाई लामा की पोशाक में एक नई बाहरी परत भी शामिल हुई है. जाहिर है, यह एक विशेष बैग को छिपाने के लिए है, जिसे मेडिकल बोल-चाल की भाषा में 'कोलोस्टोमी बैग' के रूप में जाना जाता है. इस बैग को कई सर्जरी के बाद पहनना पड़ता है.
सूत्रों ने कहा कि उनके शरीर में इम्यून सिस्टम यानी प्रतिरक्षा प्रणाली बेहद कमजोर हो गई है. वे लोगों से बातचीत करने के बाद इंफेक्शन से बचाव के लिए अपने हाथों को सैनिटाइजर से साफ करते हैं.
इन सब संकेतों से सबसे अहम सवाल उठता है: भारत में निर्वासन में रह रहे तिब्बती 2019 की बजाय 2018 में 'निर्वासन के 60 साल' क्यों मना रहे हैं, जबकि असल में 2019 में 60 साल पूरे होंगे?
(राजीव शर्मा एक स्वतंत्र पत्रकार और रणनीतिक मामलों के विश्लेषक हैं. उनका ट्विटर अकाउंट @Kishkindha है)
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