एलन मस्क Elon Musk के ट्विटर के मालिक बन जाने की खबर ऐसे वक्त आई है, जब कंपनी पर चौतरफा हमले हो रहे हैं. ट्विटर पर जिस तरह से सूचना का प्रवाह हो रहा है उसको लेकर आम यूजर के अलावा कई नेता भी इसकी आलोचना कर चुके हैं. खुद एलन मस्क ने बोर्ड की मंजूरी मिलने के बाद कहा है कि लोकतंत्र की बुनियाद है फ्री स्पीच. ऐसे में सवाल उठते हैं कि जो सवाल बाकी सोशल मीडिया समेत ट्विटर पर उठते आए हैं, क्या एलन मस्क उसका जवाब दे पाएंगे.
ट्विटर से हटेगा फेक न्यूज
फेक न्यूज आधुनिक समाज के लिए नासूर बनता जा रहा है. एक ऐसी बीमारी जिसके कारण लोकतंत्र, आजाद ख्याल, मानवाधिकार, सदभाव को खतरा पैदा हो गया है. ट्विटर चाहे लाख दावे करे कि वो फेक न्यूज के खिलाफ लड़ रहा है लेकिन हकीकत ये है कि ट्विटर आज फेक न्यूज को आगे बढ़ाने के सबसे बड़े माध्यमों में से एक है. बॉट्स के जरिए एक तरह की विचारधारा या सूचना को ट्विटर पर आगे बढ़ाया जाता है. आम यूजर इसके झांसे में आता है और इसे सच मानकर प्रभावित होता है, कई बार उसी राह पर चल पड़ता है. मस्क ने अपनी ट्वीट में लिखा है कि वो बॉट को सत्यापित करना चाहते हैं.
तो क्या हम उम्मीद कर सकते हैं कि एलन मस्क ट्विटर के जरिए फेक न्यूज की बीमारी का कुछ इलाज निकालेंगे.
ट्विटर अब नहीं होगा सियासी हथियार?
ट्विटर, फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म अब इतने बड़े और ताकतवर हो चुके हैं कि कई देशों की सरकारों को प्रभावित करते हैं. खासकर चुनावों के समय ये प्रोपगेंडा टूल बन जाते हैं. अपने कारोबारी हितों के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सत्तारूढ़ पार्टियों से साठगांठ के आरोप लगते रहे हैं. आरोप हैं कि ट्विटर सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं की तवज्जो देता है और विपक्ष की आवाज को दबाने का काम करता है.
यहां भारत में कई बार सवाल उठे हैं कि आखिर क्यों सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं के हेट स्पीच वाले ट्वीट को डिलीट नहीं किया जाता, क्यों ऐसे नेताओं को बैन नहीं किया जाता? जब कभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म सत्ताधारी लोगों के खिलाफ एक्शन लेते हैं तो सरकारें कानूनी शिकंजा कसने लगती हैं. ट्विटर के मामले में भारत में ये चीज पिछले कुछ महीनों में हम देख चुके हैं. ऐसे में जो प्लेटफॉर्म कभी फ्री स्पीच को बढ़ावा देने के दावे के साथ बने थे, वो अब सरकारों के साथ गलबहियां करने लगे हैं.
जब कभी ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म फ्री स्पीच की ओर कदम बढ़ाने की कोशिश भी करते हैं तो उनके कारोबारी हित आड़े आ जाते हैं. सरकारें अपनी ताकत का इस्तेमाल कर उनसे गलत काम कराती हैं. जैसे ट्विटर की इस बात के लिए आलोचना हो चुकी है कि वो सरकार की आलोचना करने वाले ऐसे ट्वीट्स को भी हटा देता है जो फ्री स्पीच के लिहाज से सामान्य कहे जाने चाहिए. सरकार के आलोचकों को सरकार के आग्रह पर ब्लॉक भी किया जाता है.
जिस तरह से एलन मस्क फ्री स्पीच की पैरवी कर रहे हैं, उससे क्या उम्मीद की जानी चाहिए कि अब ट्विटर सरकारों के दबाव में नहीं आएगा और आम यूजर के अधिकारों की पैरवी करेगा? एक तथ्य ये है कि जब ट्विटर ने हेट स्पीच और फेक न्यूज के लिए डोनाल्ड ट्रंप को बैन किया था तो एलन मस्क ने इसकी आलोचना की थी.
क्या फ्री स्पीच को कंट्रोल करता रहेगा ट्विटर
सबसे बड़ी बात ये है कि ट्विटर को एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म होना था, मीडिएटर नहीं. लेकिन ऐसा लगता है कि सियासी पूर्वाग्रह, कारोबारी हित और कमाई के लिए हर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म अब ये तय कर रहा है कि उसके प्लेटफॉर्म पर कौन बोलेगा, क्या बोलेगा और कितना बोलेगा. क्या हम उम्मीद कर सकते हैं कि कमाई के लिए दुनिया भर में लोकतंत्र को खटाई में नहीं डालेंगे एलन मस्क? आखिर ये कैसे संभव है कि एक तरफ तो ट्विटर ऐसे कानूनों के दायरे से बाहर रहना चाहता है जो ट्विट्स के लिए उसे भी कानूनी तौर पर जिम्मेदार ठहराते हैं और दूसरी तरफ वो सूचना के प्रवाह को प्रभावित भी करता है.
एक सवाल ये भी है कि क्या इतना पावरफुल प्लेटफॉर्म एक व्यक्ति या कंपनी के मनमर्जी के मुताबिक चलना चाहिए? जब एक ट्वीट से कंपनियों के शेयर गिर जाते हैं, जब एक ट्वीट से सियासी तूफान आ जाते हैं तो वैसे में एलन मस्क जैसे व्यक्ति जो अपने ट्वीट से बीच बीच में हड़कंप मचाते रहते हैं, जब उनके हाथ में ट्विटर की कमान होगी तो क्या होगा, ये देखना अभी बाकी है.
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