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बांग्लादेश की तीस्ता नदी परियोजना में चीन की दिलचस्पी: भारत के लिए दांव पर क्या?

विदेश सचिव विनय क्वात्रा की गुरुवार, 9 मई को बांग्लादेश की दो दिवसीय यात्रा संपन्न हुई.

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"बांग्लादेश भारत का अग्रणी डेवलपमेंट पार्टनर और क्षेत्र में सबसे बड़ा बिजनेस पार्टनर है," भारतीय विदेश सचिव विनय क्वात्रा (Vinay Kwatra) की गुरुवार, 9 मई को दो दिवसीय बांग्लादेश यात्रा संपन्न होने के बाद विदेश मंत्रालय (MEA) ने ये बयान दिया. अपनी यात्रा के दौरान क्वात्रा ने बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना और विदेश मंत्री हसन महमूद से मुलाकात की.

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विदेश मंत्रालय के अनुसार, क्वात्रा ने बांग्लादेश सरकार के साथ व्यापार और निवेश से लेकर रक्षा संबंधों तक कई मुद्दों पर चर्चा की है. इस यात्रा का एक मकसद इस साल शेख हसीना की भारत की अपेक्षित राजकीय यात्रा के लिए आधार तैयार करना भी था.

यह चर्चा रणनीतिक तौर से एक निर्णायक समय में हुई है, जब चीन बांग्लादेश के साथ तीस्ता नदी के किनारे कई मिलियन डॉलर की विकास परियोजना के निर्माण के लिए बातचीत कर रहा है जिससे ढाका को आर्थिक लाभ मिलने की उम्मीद है.

इस साल जनवरी में बांग्लादेश चुनाव से पहले तीस्ता नदी व्यापक प्रबंधन और बहाली परियोजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था. हालांकि, कहा जाता है कि चीन शेख हसीना और उनकी अवामी लीग के दोबारा चुने जाने के बाद नए जोश के साथ इस परियोजना में अपनी भूमिका की संभावना को आगे बढ़ा रहा है.

क्या भारत को तीस्ता परियोजना को लेकर चिंतित होना चाहिए?

चीन को सौंपी जा रही इस परियोजना के खिलाफ भारत की आपत्ति का मुख्य आधार यह होगा कि इससे चीन को रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र में "पैर जमाने" का मौका मिलेगा.

यह परियोजना सिलीगुड़ी कॉरिडोर के पास बनने वाली है- जिसे "चिकन नेक" भी कहा जाता है, जो भारत के पूर्वोत्तर राज्यों और देश के बाकी हिस्सों के बीच जमीन से जुड़ा इकलौता जरिया है.

बांग्लादेश में पूर्व भारतीय उच्चायुक्त पिनाक रंजन चक्रवर्ती ने द क्विंट को बताया कि भारत की आपत्ति का स्तर इस बात पर निर्भर करेगा कि नियोजित परियोजना के जरिए चीन किस हद तक इस क्षेत्र में दाखिल हो सकता है.

"मुझे लगता है कि यह जानना अहम है कि परियोजना पर काम करने के लिए कितने चीनी श्रमिकों को बांग्लादेश में तैनात किया जाएगा,"

उन्होंने कहा, "चीन की तैनाती में केवल नागरिक शामिल नहीं हैं- वे अपने पूर्व सेना कर्मियों का भी इस्तेमाल कर सकते हैं क्योंकि वे एक रणनीतिक अवसर की तलाश में होंगे और सिलीगुड़ी कॉरिडोर के पास स्थिति की निगरानी करना चाहेंगे."

भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के करीब चीनी अधिकारियों की तैनाती इसलिए भी बड़ा मुद्दा है क्योंकि शी जिनपिंग सरकार अरुणाचल प्रदेश को तिब्बत का दक्षिणी छोर बताकर इस क्षेत्र पर लगातार अपना दावा करता रहा है. इस साल अप्रैल में बीजिंग ने अरुणाचल प्रदेश के अलग-अलग स्थानों के 30 नए नामों की अपनी चौथी सूची जारी की- जिसे विदेश मंत्रालय ने सख्ती से खारिज कर दिया था.

इसके अलावा, पिछले साल मई से मैतेई और कुकी-जो समुदाय के बीच जातीय संघर्ष के कारण मणिपुर राज्य "अस्थिर" बना हुआ है.

इन चिंताओं के अलावा, चीनी अधिकारियों को जल प्रवाह, भारत और बांग्लादेश के बीच व्यापार मार्गों और अन्य संवेदनशील जानकारी पर डेटा तक पहुंचने का अवसर मिल सकता है जो भारत की सुरक्षा के लिए हानिकारक हो सकता है.

पिछले साल दिसंबर में बांग्लादेश में चीन के राजदूत याओ वेन ने भी सार्वजनिक रूप से घोषणा की थी कि बीजिंग को तीस्ता बेसिन विकसित करने का प्रस्ताव मिला है. हालांकि, उसी महीने में बांग्लादेश विदेश कार्यालय के एक प्रवक्ता कहा था कि परियोजना किसे दिया जाए, इस पर फैसला लेने से पहले सरकार "भूराजनीतिक मुद्दों" को ध्यान में रखेगी.

ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन एसोसिएट फेलो और बांग्लादेश विशेषज्ञ सोहिनी बोस ने द क्विंट को बताया, "चीन की पेशकश पर आगे बढ़ने से पहले भूराजनीतिक स्थिति पर विचार करने का बांग्लादेश का वादा भारत को आश्वस्त करने वाला है, लेकिन यह लंबे समय से लंबित तीस्ता मुद्दे को हल करने की आवश्यकता की ओर भी इशारा करता है."

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तीस्ता: भारत और बांग्लादेश के बीच विवाद की एक प्रमुख वजह

1971 में बांग्लादेश के गठन के बाद से तीस्ता नई दिल्ली और ढाका के बीच विवाद का एक बड़ा मुद्दा रहा है.

हालांकि यह भारत और बांग्लादेश के बीच साझा की जाने वाली 54 सीमा-पार नदियों में से एक है लेकिन यह एकमात्र नदी है जिसके संबंध में औपचारिक जल-बंटवारा समझौता नहीं किया गया है.

तीस्ता बांग्लादेश की चौथी सबसे बड़ी नदी है और कुल फसल उत्पादन के 14 प्रतिशत के लिए जरूरी है. इसके अतिरिक्त, नदी देश के निलफामारी, लालमोनिरहाट, कुरीग्राम, गैबांधा, दिनाजपुर और बोगरा जिलों में लगभग 1 करोड़ लोगों का भरण-पोषण करती है.

बांग्लादेशी अधिकारियों ने कई बार कहा है कि तीस्ता के किनारे भारत द्वारा बांधों के निर्माण से भारत को अनुचित लाभ मिला है और बांग्लादेश में पानी के आवश्यक निर्वहन में बाधा उत्पन्न हुई है.

2009 में शेख हसीना के सत्ता में आने के बाद तीस्ता जल-बंटवारा समझौते पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित हुआ था. 2011 में बांग्लादेशी प्रधानमंत्री और तत्कालीन मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली भारत सरकार के बीच एक समझौता किया गया था जिसके तहत नदी का 37.5 प्रतिशत पानी बांग्लादेश को और 42.5 प्रतिशत भारत को दिया जाएगा. हालांकि, नदी के प्रवाह में गिरावट का हवाला देते हुए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की आपत्तियों के कारण समझौता पूरा नहीं हो पाया.

भारतीय संविधान के अनुसार, नदियां राज्यों के दायरे में आती हैं और इसलिए तीस्ता पर किसी भी समझौते पर पश्चिम बंगाल सरकार से भी हरी झंडी लेनी होगी- जहां 414 किमी की कुल लंबाई में से 142 किमी तीस्ता जमीन पर बहती है. इसकी तुलना में, नदी का 121 किमी हिस्सा बांग्लादेश से होकर बहता है.

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क्या तीस्ता परियोजना पर बांग्लादेश खेल रहा कोई कूटनीतिक खेल?

यह देखते हुए कि पिछले 13 सालों में तीस्ता पर जल-बंटवारा समझौते के संबंध में कोई प्रगति नहीं हुई है, ऐसे में यह मानना गलत नहीं होगा कि नई दिल्ली के प्रति बढ़ती बेचैनी के कारण ढाका इस परियोजना को बीजिंग को सौंप सकता है.

हालांकि, संबंधों में हल्की खटास के बावजूद, बांग्लादेश को पिछले कुछ सालों में भारत की "पड़ोसी पहले" नीति का सबसे बड़ा लाभार्थी माना जाता है और इसलिए वह अपने पड़ोसी देश को अलग-थलग करने का जोखिम नहीं उठा सकता है.

यह बात किसी से छिपी नहीं है कि नरेंद्र मोदी सरकार इस साल के शुरू में हुए चुनावों के बाद बांग्लादेश के शासन पर शेख हसीना का नियंत्रण चाहती थी. 1996 में अपने पहले कार्यकाल के बाद से, हसीना ने भारत के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए हैं और सालों से अपने रुख पर कायम रही हैं.

अवामी लीग ने भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के हितों को नुकसान पहुंचाने के लिए बांग्लादेश से सक्रिय जातीय विद्रोही समूहों के खिलाफ बार-बार कार्रवाई की है. वहीं खालिदा जिया के नेतृत्व वाली बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी पर कट्टरपंथी इस्लामवादियों को बढ़ावा देने का आरोप लगता रहा है. जो भारत की कई नीतियों की आलोचना और मोदी सरकार पर मुसलमानों के हितों के खिलाफ काम करने का आरोप लगाते रहे हैं.

हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि तीस्ता परियोजना को चीन के सामने पेश करने और भारत को सोचने के लिए मजबूर करने का बांग्लादेश का फैसला एक बड़े कूटनीतिक खेल का हिस्सा हो सकता है.

पिनाक रंजन चक्रवर्ती ने द क्विंट को बताया, "बांग्लादेश भारत को बता रहा है कि उनके पास हमेशा चीन के करीब जाने का विकल्प है." इसके साथ ही वो कहते हैं, "ढाका दो बड़ी शक्तियों के बीच संतुलन बनाए रखते हुए अपने हितों को खाद-पानी देता रहता है. बांग्लादेश ऐसा कई बार कर भी चुका है."

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