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इजरायल:नेतन्याहू को हटाने साथ आईं कौन पार्टियां,कौन हैं उनके नेता?

इजरायल की नई सरकार में 'राम' पार्टी भी है जिसे फिलिस्तीन समर्थक माना जाता है

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इजरायल में आठ राजनीतिक पार्टियों ने मिलकर गठबंधन सरकार (israel new government) बनाने का ऐलान किया है. येश अतिद पार्टी के यैर लपीद (Yair Lapid) ने 2 जून की आधी रात की डेडलाइन खत्म होने से पहले राष्ट्रपति को जानकारी दी कि वो सरकार बनाएंगे. इस ऐलान के साथ ही पीएम बेंजामिन नेतन्याहू की 12 सालों की सत्ता का अंत भी नजदीक आ गया है. अभी इस सरकार को विश्वास मत जीतना है और तब तक कुछ भी हो सकता है.

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विश्वास मत 7 जून को होने की उम्मीद है, लेकिन उससे पहले ‘चेंज ब्लॉक’ कही जा रही इस सरकार ने इजरायली संसद के स्पीकर को बदलने का प्रस्ताव दिया है. अभी स्पीकर नेतन्याहू की लिकुड पार्टी के यारीव लेविन हैं.

नई सरकार में मार्च 2021 में चुनाव जीतने वालीं कुल 13 में से 8 पार्टियां मौजूद होंगी. ये अभी तक का इजरायल का सबसे विविध गठबंधन होगा. इजरायल में आज तक किसी भी पार्टी ने अकेले सरकार नहीं बनाई है और गठबंधन सामान्य बात है. लेकिन ये गठबंधन सामान्य नहीं है क्योंकि इसमें लेफ्ट, राइट, सेंटर सभी तरह की विचारधारा वाली पार्टियां हैं.

इस गठबंधन का हिस्सा बनने वाली पार्टियां कौन सी हैं, उनकी विचारधारा क्या है, उनके नेता कौन हैं? इसका पूरा ब्योरा हम आपको बता रहे हैं.

येश अतिद

चुनावों में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी यैर लपीद की येश अतिद थी. पार्टी ने 17 सीटें जीती थीं. सबसे ज्यादा सीटें नेतन्याहू की लिकुड पार्टी को मिली थीं. सेंटर-लेफ्ट येश अतिद की स्थापना लपीद ने साल 2012 में की थी.

57 वर्षीय लपीद लंबे समय तक पत्रकार रहे हैं. वो विदेश मंत्री भी रह चुके हैं. लपीद और उनकी पार्टी का मानना है कि ‘इजरायल एक लोकतांत्रिक यहूदी देश है.’ जब नेतन्याहू चुनावों के बाद सरकार नहीं बना पाए तो ये जिम्मेदारी राष्ट्रपति ने लपीद को दी थी.

यामिना

ये दक्षिणपंथी पार्टियों का गठबंधन हुआ करता था. हालांकि, इसमें अब सिर्फ न्यू राइट नाम की पार्टी ही बची है. 2021 के चुनावों में यामिना ने नफ्ताली बेनेट के नेतृत्व में चुनाव लड़ा था. पार्टी को सिर्फ 7 सीटें मिली थीं लेकिन बेनेट किंगमेकर बनकर उभरे हैं. यामिना का एक सांसद सरकार के विरोध में है.

बेनेट अतिराष्ट्रवादी विचारधारा रखते हैं. इजरायली मीडिया बेनेट और लपीद के गठबंधन को उनकी एकदम अलग विचारधाराओं की वजह से अस्थिर बता रहा है. बेनेट वेस्ट बैंक में सेटलमेंट बनाने के पक्षधर हैं. यामिना की दूसरी सबसे बड़ी नेता अयालत शकेद हैं.
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ब्लू एंड व्हाइट

ये भी पार्टियों का गठबंधन था, लेकिन आखिरी में इसकी अकेली सदस्य बेनी गेंट्ज की इजरायल रेसिलिएंस पार्टी ही रही. गेंट्ज ने ब्लू एंड व्हाइट नाम जारी रखा है. इसे 2021 के चुनावों में 8 सीटें मिली हैं.

वैसे ब्लू एंड व्हाइट को सेंट्रिस्ट पार्टी माना जाता है लेकिन गेंट्ज कहते हैं कि सुरक्षा मुद्दों पर वो 'राइट विंगर', सामाजिक-आर्थिक मुद्दे पर वो 'लेफ्ट-विंगर' और आर्थिक लक्ष्यों को लेकर 'उदारवादी' हैं.

इजरायल बेतेनु

पार्टी खुद को सेंटर-राइट मानती है और इसके नेता अविगदोर लीबरमैन हैं. लीबरमैन ने 1999 में पार्टी की स्थापना की थी. इस साल के चुनावों में पार्टी 7 सीटें जीती है.

विदेश नीति और सुरक्षा के मुद्दों पर पार्टी राइट-विंगर बन जाती है और धार्मिक-धर्मनिरपेक्ष मुद्दों पर धर्मनिरपेक्ष रहती है. पार्टी फिलिस्तीन के साथ शांति समझौते के पक्ष में है लेकिन कुछ शर्तों के साथ.

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लेबर

इजरायल की लेबर पार्टी तीन सोशलिस्ट-लेबर पार्टियों को मिलाकर बनी थी. इसकी स्थापना 1968 में थी. पार्टी के सबसे प्रमुख चेहरे इजरायल के पहले प्रधानमंत्री डेविड बेन-गुरियन थे.

लेबर इजरायल की लेफ्ट पार्टियों में सबसे प्रभावशाली है. 1977 तक लेबर और इसमें आने वाली पार्टियों का काफी बोलबाला था. इजरायल के ज्यादातर जाने-पहचाने नाम लेबर से ताल्लुक रखते हैं. इसमें उदाहरण गोल्डा मीयर, मोशे दायन, एहूद बराक जैसे लोगों का दिया जाता है. 2021 के चुनावों में पार्टी ने 7 सीटें जीती हैं.  

अभी लेबर की चेयरपर्सन पूर्व पत्रकार और एक्टिविस्ट मेराव मिखाइली हैं.

न्यू होप

बेंजामिन नेतन्याहू के पूर्व सहयोगी और लिकुड के पूर्व सदस्य गिडोन सार ने न्यू हॉप पार्टी की स्थापना पिछले साल ही की थी. ये एक दक्षिणपंथी पार्टी है. हालांकि, सार खुद को नेतन्याहू की दक्षिणपंथी राजनीति से अलग मानते हैं.

गिडोन सार फिलिस्तीन बनाए जाने के खिलाफ हैं. उनकी पार्टी को इस चुनाव में 6 सीटें मिली हैं.

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मेरेट्ज

ये एक लेफ्ट-विंग, सामाजिक-लोकतांत्रिक पार्टी है, जिसकी स्थापना 1992 में तीन पार्टियों को मिलाकर हुई थी. इस साल के चुनाव में पार्टी को 6 सीटें मिली हैं.

पार्टी फिलिस्तीन मुद्दे को सुलझाने के लिए दो-राज्यों के समाधान को समर्थन देती है.

राम

नई सरकार में मौजूद सबसे चर्चित पार्टी राम है क्योंकि ये अकेली इजरायली-अरब पार्टी है जो पहली बार सरकार में शामिल होने जा रही है. इसे यूनाइटेड अरब लिस्ट भी कहा जाता है. इसका वोटरबेस इजरायली अरबों के बीच है और ये फिलिस्तीन की स्थापना की वकालत करती है.

इस चुनाव में पार्टी को चार सीटें मिली हैं और इसके चेयरमैन मंसूर अब्बास भी किंगमेकर बनकर उभरे हैं. गठबंधन में बेनेट और अब्बास के साथ होने को ही ऐतिहासिक और अस्थिरता की वजह माना जा रहा है.

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फिलिस्तीन मुद्दे का भविष्य क्या?

इजरायल की संभावित नई सरकार में फिलिस्तीन के मुद्दे पर नेताओं की राय बहुत अलग-अलग है. नफ्ताली बेनेट को नेतन्याहू से भी ज्यादा दक्षिणपंथी नेता कहा जाता है. नेतन्याहू ने दो-राज्यों के समाधान की चर्चा फिलिस्तीन विमर्श से खत्म कर दी है. वहीं, बेनेट उनसे भी आगे बढ़कर वेस्ट बैंक को कब्जा करने की वकालत करते हैं.

मंसूर अब्बास का इस सरकार में आना कौतूहल के साथ-साथ कई सवाल भी पैदा करता है. अब्बास का कहना है कि उन्होंने अरब-इजरायली लोगों के लिए कई डील मिलने के बाद सरकार को समर्थन दिया है. फिर भी बेनेट के साथ काम करना कितना मुश्किल होगा इसका अंदाजा आने वाले समय में लगेगा.

गठबंधन की नई सरकार में ज्यादा प्रभाव दक्षिणपंथी पार्टियों का रहने की संभावना है. सुरक्षा कैबिनेट में यामिना के तीन सांसद हो सकते हैं. हमास के साथ हुए हालिया विवाद के बाद स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है. ऐसे में बेनेट के विवादित फैसला लेने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं लेकिन बेनेट को बाकी पार्टियों को भी साथ लेकर चलना होगा.  
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पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों का क्या होगा?

इजरायल अपने अधिकतर पड़ोसियों के साथ रिश्ते सामान्य कर चुका है. मिस्र, जॉर्डन के अलावा मिडिल-ईस्ट के कई अरब देश भी इजरायल के साथ रिश्ते सुधार चुके हैं. सालों से अरब देश फिलिस्तीन मुद्दे को अपने बयानों तक सीमित रखते हैं. इजरायल-हमास विवाद में ये देखने को भी मिला.

सबसे महत्वपूर्ण समझौता UAE और इजरायल के बीच हुआ था. उम्मीद की जा रही थी कि सऊदी अरब भी ऐसा कर सकता है लेकिन ऐसा हुआ नहीं. फिर भी दोनों देशों के बीच कड़वाहट डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में कम हुई है.  

इजरायल का नया दुश्मन ईरान है. जो बाइडेन ईरान परमाणु डील पर फिर काम करने जा रहे हैं. नेतन्याहू इसका विरोध कर चुके हैं. अब बाइडेन के ईरान प्लान से बेनेट का पाला पड़ेगा. बेनेट के समर्थक और कई पार्टी नेता पहले ही लेफ्ट पार्टियों के साथ गठबंधन को लेकर नाराज चल रहे हैं. ऐसे में ईरान-अमेरिकी की परमाणु डील उनके लिए बड़ी चुनौती साबित होगी.

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