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Salman Rushdie की किताब को लेकर पहले भी हमले-तुर्की में नरसंहार,अनुवादक की हत्या

Salman Rushdie की किताब पर हुए प्रदर्शनों में सबसे पहले पाकिस्तान में 6 लोगों की जान गई थी

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सलमान रुश्दी के ऊपर न्यूयॉर्क (Salman Rushdie Attacked) में जानलेवा हमला हुआ है. फिलहाल रुश्दी की हालत गंभीर बनी हुई है. माना जा रहा है कि यह हमला उनकी 33 साल पहले 1989 में आई किताब द सैटानिक वर्सेज (The Satanic Verses) के चलते किया गया है.

लेकिन लेखक रुश्दी के पहले भी किताब के प्रकाशन में शामिल दूसरे लोगों को हिंसा का शिकार होना पड़ा है. इनमें अनुवादक, प्रकाशक जैसे लोग शामिल हैं. खुद रुश्दी को 9 साल छुपकर दूसरी पहचान के साथ गुजारने पड़े थे.

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दरअसल हिंसा की यह घटनाएं 1989 में ही ईरान के नेता अयातुल्लाह खोमैनी द्वारा रुश्दी के खिलाफ जारी किए गए फतवे के बाद तेजी से बढ़ीं. तब रुश्दी की हत्या करने पर इनाम (आखिर तक जिसकी राशि 3.5 मिलियन डॉलर हो गई थी) का तक ऐलान किया गया था.

किताब की रिलीज, प्रदर्शन और पाकिस्तान में 6 की मौत

किताब की रिलीज के बाद तुरंत की इसके विरोध में ब्रिटेन, पाकिस्तान, भारत, ईरान समेत कई देशों में प्रदर्शन शुरू हो गए. ग्रेटर मैनचेस्टर के बोल्टन में हजारों मुस्लिम प्रदर्शनकारियों ने किताब की प्रतियों का जलाया, ऐसे ही एक प्रदर्शन में पाकिस्तान के इस्लामाबाद में अमेरिकी कल्चरल सेंटर पर हमला कर दिया गया. इस हमले में 6 लोगों की मौत हुई थी.

बता दें फतवे के मुद्दे पर ब्रिटेन और ईरान के कूटनीतिक संबंध खत्म हो गए थे. यह 1998 में जाकर ही दोबारा शुरू हो पाए थे. तब ईरान में खतामी सरकार आई थी, जो कुछ हद तक प्रगतिशील मानी जाती थी. लेकिन इस सरकार के जाते ही खोमैनी के उत्तराधिकारी खामेनेई ने स्पष्ट कर दिया कि फतवे को वापस नहीं लिया जा सकता.

जापानी अनुवादक की हत्या

किताब पर शुरू हुए हंगामे के बाद रुश्दी जोसेफ एंटोन के नाम से अपनी पहचान छुपाकर रहने लगे. जब कट्टरपंथी उनतक नहीं पहुंच पाए, तो उन्होंने किताब के प्रकाशन में शामिल दूसरे लोगों को निशाना बनाना शुरू कर दिया.

Salman Rushdie की किताब पर हुए प्रदर्शनों में सबसे पहले पाकिस्तान में 6 लोगों की जान गई थी

हितोषी इगाराशीकी शुकुबा

फोटो: Twitter/@OliverJia1014

1991 में रुश्दी की किताब का जापानी भाषा में अनुवाद करने वाले हितोषी इगाराशीकी शुकुबा यूनिवर्सिटी में चाकुओं से गोदकर हत्या कर दी गई. टोक्यो के पास स्थित इस यूनिवर्सिटी में शुकुबा असिस्टेंट प्रोफेसर थे. बता दें शुकुबा खुद इस्लामिक मामलों के बड़े जानकार और शोधार्थी थे.

नार्वेजियन ट्रांसलेटर को मारी गई गोलियां, इतालवी अनुवादक पर भी हमला

रुश्दी की किताब का नॉर्वेजियन भाषा में अनुवाद विलियम न्यागार्ड ने किया था. 1993 में उनके ऊपर हमला किया गया. इस दौरान उन्हें कई गोलियां मारी गईं और वे गंभीर तौर पर घायल हो गए. हालांकि उनकी जान बच गई.

इसके अलावा इतालवी भाषा में अनुवाद करने वाले अनुवादक इटोरो कैप्रियोलो पर भी उनके घर में हमला हुआ था. हमला करने वाले की पहचान भी एक ईरानी शख्स के तौर पर हुई थी.

तुर्की- 35 लोगों की हत्या, अनुवादक था निशाना

लेकिन इन व्यक्तिगत हमलों के अलावा सबसे बड़ा हत्याकांड तुर्की में हुआ था. दरअसल द सैटानिक वर्सेज का तुर्की भाषा में अनुवाद अजीज नेसिन ने किया था. जुलाई के महीने में तुर्की के सिवास शहर में एक साहित्यिक परिचर्चा का आयोजन किया गया था.

यह आयोजन 16वीं सदी के एक कवि की याद में थे, जिन्हें फांसी दे दी गई थी. इस परिचर्चा में हिस्सा लेने के लिए अजीज नेसिन भी पहुंचे थे. अचानक सिवास के चौराहों पर भीड़ इकट्ठा होने लगी और पुलिस द्वारा कार्रवाई करने के बाद भी नहीं रोकी जा सकी.

आखिरकार नेसिन को एक होटल में शरण लेनी पड़ी, जवाब में भीड़ ने होटल में आग लगा दी, जिसमें 35 लोगों की मौत हो गई. यह सैटानिक वर्सेज से जुड़ा सबसे बड़ा सामूहिक हत्याकांड था. खास बात यह रही कि नेसिन फायरबिग्रेड की सीढ़ी से सुरक्षित होटल से निकलने में कामयाब रहे.

रुश्दी ने 1989 में हुए प्रदर्शन के बाद एक इंग्लिश अखबार में लेख लिखकर पैगंबर को महान भी बताया था, उन्होंने यह भी कहा था कि उनकी किताब इस्लाम विरोधी नहीं है. लेकिन आज 33 साल बाद भी बुकर अवार्ड विजेता रुश्दी के पीछे कट्टरपंथियों का साया बरकरार है.

पढ़ें ये भी: Salman Rushdie पर हमला करने वाला हादी मतार कौन है? क्या था अटैक का मकसद

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