बांग्लादेश (Bangladesh) में सियासी संकट के बीच नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री मोहम्मद यूनुस (Muhammad Yunus) को बांग्लादेश की अंतरिम सरकार का प्रमुख सलाहकार बनाया गया है. मंगलवार, 6 अगस्त को राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन, सेना और छात्रों की बीच चली छह घंटे की बैठक के बाद यह निर्णय लिया गया है.
इससे पहले सोमवार, 5 अगस्त को प्रधानमंत्री शेख हसीना (Sheikh Hasina) के इस्तीफे और देश छोड़कर भागने के बाद सेना प्रमुख वकर-उज-जमान ने अंतरिम सरकार के गठन की घोषणा की थी.
17 साल पहले पीछे हटे, अब फिर मिली जिम्मेदारी
ऐसा पहली बार नहीं है, जब बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के धुर विरोधी माने जाने वाले मोहम्मद यूनुस को ये जिम्मेदारी मिली है.
क्विंट हिंदी से बातचीत में बांग्लादेश में भारत के पूर्व उच्चायुक्त पीआर चक्रवर्ती कहते हैं, "मोहम्मद यूनुस एक मशहूर व्यक्ति हैं, उन्हें पूरी दुनिया जानती है. वो बांग्लादेश के इकलौते नोबेल पुरस्कार विजेता हैं. उनकी अपनी एक पहचान है."
इसके साथ ही वे बताते हैं,
"पिछली बार जब साल 2007 में सेना की दखल के बाद अंतरिम सरकार बनाई गई थी, तब भी सरकार चलाने के लिए मोहम्मद यूनुस का नाम सामने आया था. हालांकि, तब उन्होंने ये जिम्मेदारी लेने से मना कर दिया था और पीछे हट गए थे."
बता दें कि सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल मोईन यू. अहमद ने 11 जनवरी 2007 को सैन्य तख्तापलट किया था. पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना और खालिदा जिया- दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया था. उस दौरान अर्थशास्त्री फखरुद्दीन अहमद को अंतरिम सरकार का प्रमुख नियुक्त किया गया था. तब जबरन राष्ट्रपति इयाजुद्दीन अहमद को अपना पद बरकरार रखना पड़ा था.
मोईन ने सेना प्रमुख के रूप में अपना कार्यकाल एक साल और कार्यवाहक सरकार का शासन दो साल के लिए बढ़ा दिया था. दिसंबर में राष्ट्रीय चुनाव होने के बाद 2008 में सैन्य शासन खत्म हुआ और शेख हसीना सत्ता में आईं.
हालांकि, उस साल फरवरी में उन्होंने एक राजनीतिक पार्टी 'नागरिक शक्ति' की स्थापान की थी, जो केवल 10 हफ्ते तक ही चल सकी. तब से उन्होंने बार-बार किसी भी राजनीतिक महत्वाकांक्षा से इनकार किया है.
इस साल की शुरुआत में उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था, "मैं कोई राजनेता नहीं हूं. यह आखिरी काम है जो मैं करूंगा."
'गरीबों के बैंकर' मोहम्मद यूनुस
28 जून, 1940 को ब्रिटिश भारत (अब बांग्लादेश) के चटगांव में जन्में मोहम्मद यूनुस 'गरीबों के बैंकर' के रूप में मशहूर हैं. साल 2006 में 'गरीबों के आर्थिक और समाजिक उत्थान' के लिए उन्हें और उनके ग्रामीण बैंक को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
1983 में यूनुस ने ग्रामीण बैंक की स्थापना की थी, जिसका उद्देश्य गरीब लोगों, विशेषकर महिलाओं को आसान शर्तों पर छोटा लोन उपलब्ध कराना था- जिसे माइक्रो-क्रेडिट कहा जाता है.
TIME मैगजीन में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, यूनुस के ग्रामीण बैंक को एक बड़ी सफलता के तौर पर देखा जाता है. स्थापना के बाद से ग्रामीण बैंक ने करीब 10 मिलियन (1 करोड़) लोगों को बिना कुछ सिक्योरिटी दिए 34 बिलियन डॉलर से अधिक का कर्ज दिया है, और इसकी रिकवरी दर 97% से अधिक है.
नोबेल पुरस्कार की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक, यूनुस का मनाना है कि गरीबी का मतलब है सभी मानवीय मूल्यों से वंचित होना. वह माइक्रो-क्रेडिट को मानवाधिकार और गरीबी से निकलने का एक प्रभावी साधन मानते हैं:
"गरीब लोगों को उनकी सुविधानुसार पैसा उधार दें और उन्हें कुछ बुनियादी वित्तीय सिद्धांत सिखाएं. वे आम तौर पर खुद ही अपना काम चला लेते हैं."
दुनियाभर में मोहम्मद यूनुस के ग्रामीण बैंक मॉडल पर आधिरत बैंक 100 से अधिक देशों में चल रहे हैं.
वेंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स में Ph.D
मोहम्मद यूनुस ने ढाका यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स की शुरुआती पढ़ाई की. इसके बाद उन्हें वेंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी में इकोनॉमिक्स की पढ़ाई के लिए फुलब्राइट स्कॉलरशिप मिली. साल 1969 में उन्होंने वेंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स में Ph.D पूरी की और अगले साल मिडिल टेनेसी स्टेट यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के सहायक प्रोफेसर नियुक्त हुए.
1971 में बांग्लादेश की आजादी के बाद वे स्वदेश लौटे और उन्होंने चिटगांव यूनिवर्सिटी में इकोनॉमिक्स डिपार्टमेंट के हेड का पदभार संभाला. ये वो दौर था जब आजादी की जंग के बाद बांग्लादेश आर्थिक मोर्चे पर मुश्किलों का सामना कर रहा था. 1970 के दशक के मध्य तक आते-आते देश अकाल में घिर गया था.
देश में गरीबी को देखते हुए उनका शिक्षैकि कामों से मोहभंग हो गया था. TIME मैगजीन को इस साल दिए एक ZOOM इंटरव्यू में वे याद करते हुए बताते हैं कि कैसे उन्हें “अर्थशास्त्र एक अर्थहीन विषय” लगने लगा था. तब उन्होंने कहा था, "ये खोखले विचार हैं, जो यह नहीं बताता कि लोगों की भूख कैसे मिटाई जा सकती है."
शेख हसीना से अदावत कैसे शुरू हुई?
शेख हसीना और मोहम्मद यूनुस की अदावत पुरानी है. दोनों के रिश्तों में कड़वाहट तब शुरू हुई जब 2007 में यूनुस ने राजनीति में आने की घोषणा की. हालांकि, उन्हें इसमें सफलता नहीं मिली, लेकिन हसीना से उनकी दुश्मनी और बढ़ गई.
TIME मैगजीन को दिए इंटरव्यू में यूनुस ने कहा था, "हसीना लगातार मुझ पर राजनीति में शामिल होने का आरोप लगाती रहती हैं, मानो राजनीति में शामिल होना कोई अपराध है."
सत्ता में आने के साथ ही हसीना प्रशासन ने उनके खिलाफ जांच शुरू की. उन्होंने उन पर ग्रामीण क्षेत्र की गरीब महिलाओं को बैंक से कर्ज लेने के लिए मजबूर करने के लिए बल प्रयोग करने का आरोप लगाया था.
हसीना ने 2011 में यूनुस को गरीबों का "खून चूसने" वाला तक कह दिया था.
रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, 2011 में हसीना सरकार ने ग्रामीण बैंक की गतिविधियों की जांच शुरू की और यूनुस को बैंक के प्रमुख पद से यह तर्क देते हुए हटा दिया कि वे उस समय 73 साल के थे और रिटायरमेंट की कानूनी उम्र 60 साल के बाद भी अपने पद पर बने हुए थे.
जून में हसीना की आलोचना करते हुए यूनुस ने कहा था, "बांग्लादेश में कोई राजनीति नहीं बची है. केवल एक पार्टी है जो सक्रिय है और हर चीज पर कब्जा कर रही है. और वो अपने तरीके से चुनाव जीतती है."
मोहम्मद यूनुस के खिलाफ कितने मामले?
इस साल जनवरी में, यूनुस और उनकी दूरसंचार कंपनी ग्रामीण टेलीकॉम के तीन अन्य अधिकारियों को बांग्लादेश के श्रम कानूनों का उल्लंघन करने के लिए छह महीने की जेल की सजा सुनाई गई थी. हालांकि, उन्हें तुरंत जमानत मिल गई थी.
2015 में, उन्हें बांग्लादेश के राजस्व अधिकारियों ने 1.51 मिलियन डॉलर के टैक्स का कथित रूप से भुगतान न करने के आरोप में तलब किया था.
उससे दो साल पहले, उन पर कथित रूप से सरकार की अनुमति के बिना पैसे लेने पर मुकदमा चला, जिसमें नोबेल पुरस्कार और एक किताब से रॉयल्टी भी शामिल थी.
वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, हसीना के कार्यकाल के दौरान मोहम्मद यूनुस के खिलाफ धन शोधन, श्रम कानून और रिटायरमेंट कानून के उल्लंघन सहित 100 से अधिक मामले दर्ज किए गए थे. हालांकि, उन्होंने इन सभी आरोपों का खंडन किया है.
पिछले साल अगस्त में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा, पूर्व संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून सहित 100 से अधिक नेताओं और नोबेल पुरस्कार विजेताओं ने शेख हसीना को एक खुला पत्र लिखा था, जिसमें यूनुस के खिलाफ कानूनी कार्रवाई निलंबित करने की अपील की गई थी.
सोमवार को द वाशिंगटन पोस्ट से उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि हसीना के पद से हटने के बाद “फर्जी मामले” खत्म हो जाएंगे.
मोहम्मद यूनुस की उपलब्धियां
प्रोफेसर यूनुस को उनके काम के लिए कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है:
बांग्लादेश का सर्वोच्च पुरस्कार- स्वतंत्रता दिवस पुरस्कार (1987)
विज्ञान के लिए मोहम्मद शबदीन पुरस्कार (1993)
मानवतावादी पुरस्कार (1993)
विश्व खाद्य पुरस्कार (1994)
किंग हुसैन मानवतावादी नेतृत्व पुरस्कार (2000)
वोल्वो पर्यावरण पुरस्कार (2003)
क्षेत्रीय विकास के लिए निक्केई एशिया पुरस्कार (2004)
फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट स्वतंत्रता पुरस्कार (2006)
सियोल शांति पुरस्कार (2006)
अमेरिकी राष्ट्रपति पद का स्वतंत्रता पदक (2009)
कांग्रेसनल गोल्ड मेडल (2010)
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