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म्यांमार: नोबेल शांति पुरस्कार विजेता आंग सान सू ची को चार साल की जेल की सजा

इसी साल एक फरवरी को म्यांमार में सैन्य तख्तापलट हुआ है.

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म्यांमार (Myanmar) की एक अदालत ने सोमवार, 6 दिसंबर को देश की लोकतंत्र समर्थक नेता आंग सान सू ची (Aung San Suu Kyi) को सार्वजनिक अशांति भड़काने और COVID नियमों का उल्लंघन करने के आरोप में चार साल जेल की सजा सुनाई है. इस बात की जानकारी न्यूज एजेंसी रायटर ने दी है. बता दें कि म्‍यांमार में सैन्‍य तख्‍तापलट के बाद सू ची 1 फरवरी से ही हिरासत में हैं.

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भ्रष्टाचार समेत कई आरोप

सू ची के ऊपर कई और आरोपों के लिए मुकदमे चल रहे हैं और उन सभी 11 आरोपों में दोषी पाए जाने पर उन्हें 102 साल तक की जेल हो सकती है.

सू ची को म्यांमार की सेना द्वारा हिरासत में लिया गया था, जिसे आधिकारिक तौर पर तातमाडॉ के रूप में जाना जाता है.

बता दें कि एक फरवरी को इसी साल म्यांमार में सैन्य तख्तापलट हुआ है, वो भी म्यांमार की संसद के नवनिर्वाचित सदस्यों के शपथ ग्रहण से एक दिन पहले, जो 2020 के चुनाव के दौरान चुने गए थे. म्यांमार कुछ ही सालों पहले सैन्य शासन से लोकतंत्र पर लौटा था.
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तख्तापलट के बाद, म्यांमार में लोकतंत्र के समर्थन में विरोध प्रदर्शन हुआ था. न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, तातमाडॉ ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ हिंसक रुख अपनाया. इससे पहले ही लगभग 1,300 लोगों को मार डाला गया और करीब 10,000 से अधिक प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार कर लिया था.

वहीं सू ची के समर्थकों का दावा है कि ये आरोप म्यांमार के राजनीतिक परिदृश्य से उन्हें स्थायी रूप से हटाने के लिए गढ़े गए हैं, क्योंकि वह तातमाडॉ के प्रभुत्व के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं.

सू ची पर आरोप

रॉयटर्स के अनुसार, आंग सान सू ची के खिलाफ ये कुछ आरोप हैं:

  • सितंबर 2020 में उनकी पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (NLD) के प्रचार के दौरान COVID-19 नियमों का उल्लंघन (प्राकृतिक आपदा प्रबंधन कानून, अनुच्छेद 25)

  • उकसाने का इरादा, एनएलडी द्वारा अंतरराष्ट्रीय संगठनों से सैन्य जुंटा के नेतृत्व वाली सरकार को मान्यता नहीं देने के लिए कहना (दंड संहिता, अनुच्छेद 505 [बी])

  • गुप्त जानकारी प्राप्त करना या प्रकाशित करना या संचार करना जो किसी दुश्मन की सहायता कर सके (आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम)

इन मामलों में फैसला कई और मामलों से पहले होने की उम्मीद है क्योंकि तातमाडॉ ने म्यांमार के लोकतांत्रिक संस्थानों पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली है.

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