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पाकिस्तान: राष्ट्रपति नहीं आयोग बताएगा कब होगा चुनाव, नए बिल में क्या प्रावधान?

Elections (Amendment) Bill 2023 क्यों लाया गया और इस पर विपक्ष ने क्या प्रतिक्रिया दी है?

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पाकिस्तान (Pakistan) की सीनेट ने शुक्रवार, 16 जून को चुनाव अधिनियम (Elections Act 2017) में संशोधन की मांग करने वाला चुनाव (संशोधन) विधेयक (Elections (Amendment) Bill 2023) पेश किया. जमात-ए-इस्लामी और विपक्षी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) से जुड़े सीनेटरों के विरोध के बीच स्टेट मिनिस्टर शहादत अवान ने इस विधेयक को पेश किया, जिसको मंजूरी मिल गई है. इसके कानून बन जाने के बाद पाकिस्तान चुनाव आयोग (Election Commission of India) को ये अधिकार होगा कि वह बिना राष्ट्रपति की सहमति के चुनाव की तारीखों का ऐलान कर सकेगा. आइए जानते हैं कि यह विधेयक क्यों लाया गया, इसमें कौन से नए प्रवाधान शामिल किए गए हैं और इस पर विपक्ष ने क्या प्रतिक्रिया दी है?

पाकिस्तान: राष्ट्रपति नहीं आयोग बताएगा कब होगा चुनाव, नए बिल में क्या प्रावधान?

  1. 1. Elections (Amendment) Bill 2023 क्यों लाया गया?

    कानून मंत्री आजम नजीर तरार ने कहा कि यह संशोधन सभी अस्पष्टताओं को दूर करने के लिए लाया जा रहा है.

    कानून के उद्देश्यों और कारणों के स्टेटमेंट के मुताबिक संविधान ईमानदारी और निष्पक्ष रूप से चुनाव आयोजित करने और संचालित करने के लिए ECP के कर्तव्य की परिकल्पना करता है.

    Dawn की रिपोर्ट के मुताबिक पेश किए गए विधेयक में कहा गया है कि पाकिस्तान के चुनाव आयोग को संविधान और चुनाव अधिनियम- 2017 के प्रावधानों के तहत प्रशासनिक और कार्यात्मक स्वायत्तता प्राप्त है, जो निकाय को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के मूल दायित्व को पूरा करने में सुविधा देता है.

    चुनाव आयोग को और मजबूत करने के लिए चुनाव अधिनियम 2017 की धारा 57 (1) और 58 (1) में संशोधन की जरूरत है, जिससे ECP को अपने दम पर आम चुनावों के लिए मतदान की तारीखों का ऐलान करने की छूट मिल सके.
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  2. 2. Elections (Amendment) Bill 2023 में क्या है?

    चुनाव (संसोधन) विधेयक 2023 में शामिल धाराओं 57(1) और 58 में कुछ बदलाव किए गए हैं.

    धारा 57(1): चुनाव आयोग आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना द्वारा आम चुनाव की तारीख या तारीखों का ऐलान करेगा और निर्वाचन क्षेत्रों से अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करने का आह्वान करेगा.

    धारा 58: धारा 57 में जो भी नियम शामिल किए गए हैं, आयोग किसी भी वक्त उस धारा के उपधारा (1) के तहत अधिसूचना जारी होने के बाद चुनाव के विभिन्न चरणों के लिए उस अधिसूचना में घोषित चुनाव कार्यक्रम में इस तरह के बदलाव कर सकता है.

    इसके अलावा बयान में आगे कहा गया है कि

    सीनेट के अध्यक्ष द्वारा गठित संसदीय समिति ने भी प्रस्तावित संशोधनों की जांच की थी और सिफारिश की थी कि संघीय सरकार को कानून पेश करने की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए.

    इससे पहले सीनेट सत्र के दौरान कानून मंत्री आजम नजीर तरार ने कहा था कि चुनाव की तारीख चुनने का अधिकार 1973 में पाकिस्तान चुनाव आयोग को दिया गया था. लेकिन जियाउल हक ने एक संशोधन के जरिए राष्ट्रपति को यह अधिकार दिया.

    संशोधन चुनाव आयोग की भूमिका को और ज्यादा एक्टिव बनाएंगे और चुनाव प्रोग्राम में भी बदलाव को काबिल बनाएंगे.
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  3. 3. Elections (Amendment) Bill 2023 पर विपक्ष का क्या कहना है?

    प्रस्तावित कानून पर आपत्ति जताते हुए नेता प्रतिपक्ष और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के नेता शहजाद वसीम ने कहा कि कानून सिर्फ संविधान के तहत ही बनाया जा सकता है. संविधान, चुनाव की तारीख के बारे में बहुत साफ है और यह राष्ट्रपति और राज्यपाल दोनों को चुनाव की तारीख का ऐलान करने की ताकत देता है.

    चुनाव आयोग को कानून के तहत दी गई ताकतों को पार करने का अधिकार नहीं दिया जा सकता है. इसके अलावा उन्होंने राय दी कि कठिन चीजों के बजाय "आसान कानून" बनाया जाना चाहिए.
    शहजाद वसीम, नेता प्रतिपक्ष

    इसके बाद सीनेट के अध्यक्ष सादिक संजरानी ने सदन के सामने विधेयक पेश किया और इसे बहुमत के साथ पारित कर दिया गया.

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  4. 4. पिछले दिनों चीफ जस्टिस के स्वत: संज्ञान की शक्ति के खिलाफ बिल पास किया गया था, उसमें क्या था?

    पाकिस्तान की सीनेट ने इसी साल 30 मार्च को सुप्रीम कोर्ट (प्रैक्टिस & प्रोसीजर) बिल (Supreme Court (Practice and Procedure) Act 2023) पारित किया गया था. इस विधेयक में पाकिस्तान के चीफ जस्टिस से स्वत: संज्ञान लेने की शक्तियों को छीनकर उनकी जगह सीनियर जजों की तीन सदस्यीय समिति (जिसमें चीफ जस्टिस भी शामिल होंगे) को ट्रांसफर करने का प्रावधान शामिल है.

    सीनेट में पेश किए गए विधेयक में कहा गया था कि

    सुप्रीम कोर्ट में दायर हर अपील और मामले पर पाकिस्तान के चीफ जस्टिस और दो टॉप सीनियर जजों की समिति द्वारा गठित की गई बेंच सुनवाई करेगी और फैसला देगी. इसमें यह भी कहा गया था कि समिति के फैसले बहुमत से लिए जाएंगे.

    सुप्रीम कोर्ट के मूल क्षेत्र अधिकार का प्रयोग करने के संबंध में, बिल में कहा गया कि अनुच्छेद 184 (3) के उपयोग को लागू करने वाले किसी भी मामले को पहले समिति के समक्ष रखा जाएगा.

    अगर समिति का मानना है कि संविधान के पार्ट-2 के चैप्टर-1 में शामिल किए गए किसी भी मौलिक अधिकार से संबंधित सार्वजनिक महत्व का मामला है, तो एक बेंच का गठन किया जाएगा, जिसमें कम से कम सुप्रीम कोर्ट के तीन जज होंगे, जिसमें फैसले के लिए समिति के सदस्यों को भी शामिल किया जा सकता है.

    (क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

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Elections (Amendment) Bill 2023 क्यों लाया गया?

कानून मंत्री आजम नजीर तरार ने कहा कि यह संशोधन सभी अस्पष्टताओं को दूर करने के लिए लाया जा रहा है.

कानून के उद्देश्यों और कारणों के स्टेटमेंट के मुताबिक संविधान ईमानदारी और निष्पक्ष रूप से चुनाव आयोजित करने और संचालित करने के लिए ECP के कर्तव्य की परिकल्पना करता है.

Dawn की रिपोर्ट के मुताबिक पेश किए गए विधेयक में कहा गया है कि पाकिस्तान के चुनाव आयोग को संविधान और चुनाव अधिनियम- 2017 के प्रावधानों के तहत प्रशासनिक और कार्यात्मक स्वायत्तता प्राप्त है, जो निकाय को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के मूल दायित्व को पूरा करने में सुविधा देता है.

चुनाव आयोग को और मजबूत करने के लिए चुनाव अधिनियम 2017 की धारा 57 (1) और 58 (1) में संशोधन की जरूरत है, जिससे ECP को अपने दम पर आम चुनावों के लिए मतदान की तारीखों का ऐलान करने की छूट मिल सके.
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Elections (Amendment) Bill 2023 में क्या है?

चुनाव (संसोधन) विधेयक 2023 में शामिल धाराओं 57(1) और 58 में कुछ बदलाव किए गए हैं.

धारा 57(1): चुनाव आयोग आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना द्वारा आम चुनाव की तारीख या तारीखों का ऐलान करेगा और निर्वाचन क्षेत्रों से अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करने का आह्वान करेगा.

धारा 58: धारा 57 में जो भी नियम शामिल किए गए हैं, आयोग किसी भी वक्त उस धारा के उपधारा (1) के तहत अधिसूचना जारी होने के बाद चुनाव के विभिन्न चरणों के लिए उस अधिसूचना में घोषित चुनाव कार्यक्रम में इस तरह के बदलाव कर सकता है.

इसके अलावा बयान में आगे कहा गया है कि

सीनेट के अध्यक्ष द्वारा गठित संसदीय समिति ने भी प्रस्तावित संशोधनों की जांच की थी और सिफारिश की थी कि संघीय सरकार को कानून पेश करने की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए.

इससे पहले सीनेट सत्र के दौरान कानून मंत्री आजम नजीर तरार ने कहा था कि चुनाव की तारीख चुनने का अधिकार 1973 में पाकिस्तान चुनाव आयोग को दिया गया था. लेकिन जियाउल हक ने एक संशोधन के जरिए राष्ट्रपति को यह अधिकार दिया.

संशोधन चुनाव आयोग की भूमिका को और ज्यादा एक्टिव बनाएंगे और चुनाव प्रोग्राम में भी बदलाव को काबिल बनाएंगे.

Elections (Amendment) Bill 2023 पर विपक्ष का क्या कहना है?

प्रस्तावित कानून पर आपत्ति जताते हुए नेता प्रतिपक्ष और पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के नेता शहजाद वसीम ने कहा कि कानून सिर्फ संविधान के तहत ही बनाया जा सकता है. संविधान, चुनाव की तारीख के बारे में बहुत साफ है और यह राष्ट्रपति और राज्यपाल दोनों को चुनाव की तारीख का ऐलान करने की ताकत देता है.

चुनाव आयोग को कानून के तहत दी गई ताकतों को पार करने का अधिकार नहीं दिया जा सकता है. इसके अलावा उन्होंने राय दी कि कठिन चीजों के बजाय "आसान कानून" बनाया जाना चाहिए.
शहजाद वसीम, नेता प्रतिपक्ष

इसके बाद सीनेट के अध्यक्ष सादिक संजरानी ने सदन के सामने विधेयक पेश किया और इसे बहुमत के साथ पारित कर दिया गया.

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पिछले दिनों चीफ जस्टिस के स्वत: संज्ञान की शक्ति के खिलाफ बिल पास किया गया था, उसमें क्या था?

पाकिस्तान की सीनेट ने इसी साल 30 मार्च को सुप्रीम कोर्ट (प्रैक्टिस & प्रोसीजर) बिल (Supreme Court (Practice and Procedure) Act 2023) पारित किया गया था. इस विधेयक में पाकिस्तान के चीफ जस्टिस से स्वत: संज्ञान लेने की शक्तियों को छीनकर उनकी जगह सीनियर जजों की तीन सदस्यीय समिति (जिसमें चीफ जस्टिस भी शामिल होंगे) को ट्रांसफर करने का प्रावधान शामिल है.

सीनेट में पेश किए गए विधेयक में कहा गया था कि

सुप्रीम कोर्ट में दायर हर अपील और मामले पर पाकिस्तान के चीफ जस्टिस और दो टॉप सीनियर जजों की समिति द्वारा गठित की गई बेंच सुनवाई करेगी और फैसला देगी. इसमें यह भी कहा गया था कि समिति के फैसले बहुमत से लिए जाएंगे.

सुप्रीम कोर्ट के मूल क्षेत्र अधिकार का प्रयोग करने के संबंध में, बिल में कहा गया कि अनुच्छेद 184 (3) के उपयोग को लागू करने वाले किसी भी मामले को पहले समिति के समक्ष रखा जाएगा.

अगर समिति का मानना है कि संविधान के पार्ट-2 के चैप्टर-1 में शामिल किए गए किसी भी मौलिक अधिकार से संबंधित सार्वजनिक महत्व का मामला है, तो एक बेंच का गठन किया जाएगा, जिसमें कम से कम सुप्रीम कोर्ट के तीन जज होंगे, जिसमें फैसले के लिए समिति के सदस्यों को भी शामिल किया जा सकता है.

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