पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ का 79 साल की उम्र में निधन (Pervez Musharraf Dies) हो गया है. मुशर्रफ का दुबई में अमीलाईडोसिस नाम की बीमारी के इलाज के दौरान निधन हुआ है.
बता दें मुशर्रफ 1999 में कारगिल युद्ध (Army Chief Pervez Musharraf In Kargil War) के दौरान पाकिस्तानी आर्मी की चीफ थे. माना जाता है कि कारगिल ऑपरेशन मुशर्रफ के ही दिमाग की उपज थी. इसका खाका सियाचिन पर भारतीय कब्जे (मेघदूत) के समय से ही उनके दिमाग में था.
1999 में कारगिल युद्ध के बाद मुशर्रफ ने नवाज शरीफ का तख्ता पलट कर दिया और देश में मार्शल लॉ लगा दिया. इस तरह वे तानाशाह के तौर पर सत्ता में आए और बाद में खुद को राष्ट्रपति घोषित करवा दिया. यहां हम जानेंगे उनके कार्यकाल में पाकिस्तान में हुई अहम घटनाओं के बारे में..
1999 का तख्ता पलट- नवाज शरीफ और मुशर्रफ के बीच तनाव की खबरें कारगिल युद्ध से पहले से आ रही थीं. सितंबर तक आते-आते सैन्य अधिकारियों के बीच तख्ता पलट के लिए मीटिंग होने लगीं. इस बीच श्रीलंकाई सेना के एक समारोह में हिस्सा लेने के बाद जब मुशर्रफ लौट रहे थे, तो प्रधानमंत्री कार्यालय ने उनके विमान को कराची एयरपोर्ट पर उतरने की अनुमति देने से इंकार कर दिया. दरअसल यहां नवाज ख्वाजा जियाउद्दीन को मुशर्रफ की जगह सेना प्रमुख बनाने का मन बना चुके थे.
लेकिन यह खबर सुनते ही रावलपिंडी से मुशर्रफ के वफादार स्थानीय कमांडर्स ने इस्लामाबाद की तरफ सेना को बढ़ा दिया और शरीफ को हाउस अरेस्ट कर दिया. आखिरी कोशिश के तौर पर शरीफ ने कराची ट्रैफिक कंट्रोल रूम में मैसेज भेजकर मुशर्रफ के विमान को कहीं और भेजने की कोशिश भी की.
लेकिन इसके पहले ही मुशर्रफ के सैनिकों ने ऑफिस और विमान घेर लिया. इसके बाद मुशर्रफ के हाथ में सत्ता आ गई. 13 अक्टूबर को मुशर्रफ ने देश के नाम एक रिकॉर्डेड मैसेज जारी किया.
नवाज शरीफ की ट्रायल- नवाज शरीफ को एक सरकारी गेस्ट हाउस में नजरबंद करवा दिया गया. इसके बाद उनके ऊपर मुशर्रफ के विमान को कराची एयरपोर्ट पर ना उतरने देने और अन्य आरोपों में देशद्रोह, अपहरण, हत्या का प्रयास, हाईजैकिंग के आरोप लगाकर मुकदमा चलाया गया. माना जा रहा था कि यह बस शो ट्रॉयल है, शरीफ का हाल भी जुल्फिकार अली भुट्टो की तरह करने की पूरी तैयारी हो चुकी थी. लेकिन जब कोर्ट का फैसला आना तय हो गया, तो उसके ठीक पहले सऊदी अरब और अमेरिका के दबाव के चलते शरीफ को देश निकाला दिया गया.
2001 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला और अफगानिस्तान जंग में पाकिस्तान का अमेरिका को समर्थन- 2001 में जब तालिबान के खिलाफ अमेरिका ने जंग छेड़ी, तो पाकिस्तानी जमीन को बेस के तौर पर इस्तेमाल किया गया. मुशर्रफ ने अमेरिका को खुलकर समर्थन दिया. इस तरह आने वाले सालों के लिए उन्होंने अपने उत्तरी पड़ोसी के साथ लंबे युद्ध में खुद फिर से फंसा लिया.
2002 का चुनाव- साल 2000 में पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने 2002 तक देश में चुनाव करवाने के आदेश दिए. 2001 में मुशर्रफ खुद को राष्ट्रपति घोषित कर चुके थे. लेकिन अब भी उन्हें चुनी हुई सरकार की वैधानिकता मिलना बाकी था. पाकिस्तान के इतिहास में मुशर्रफ पहले ऐसे मिलिट्री डिक्टेटर थे, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को माना. इन चुनावों में मुशर्रफ का समर्थन करने वाली पार्टी पीएमएल-क्यू की सरकार बनी और मुशर्रफ के शासन को वैधानिकता मिल गई.
मुशर्रफ पर जानलेवा हमले-
मुशर्रफ पर इस कार्यकाल में कई जानलेवा हमले हुए. साल 2000 में कामरान आतिफ नाम के शख्स ने उनके ऊपर पहला हमला किया. इसे 2006 में फांसी की सजा सुनाई गई.
फिर 14 दिसंबर 2003 को मुशर्रफ के कॉनवॉय पर एक रावलपिंडी के एक पुल पर बम से हमला किया गया. इस हमले को 11 दिन बाद ही दो आत्मघाती हमलावरों ने सुसाइड कार से मुशर्रफ पर हमला किया, लेकिन वे फिर बच गए. इन दोनों हमलों के पीछे मास्टरमाइंड अमजद फारुकी था, जिसे पाकिस्तानी सेना ने खोजकर मार गिराया.
लेकिन एक बड़ा हमला 2007 में तब हुआ, जब मुशर्रफ के विमान के रनवे से टेकऑफ होने के बाद हमलावरों के एक समूह ने उनके ऊपर मशीन गनों से फायर किए. बाद में सर्च में घटनास्थल पर एंटी एयरक्रॉफ्ट गनें भी मिलीं. मामले में 39 लोगों को गिरफ्तार किया गया था.
जस्टिस इफ्तिखार मोहम्मद चौधरी का सस्पेंशन (2007)- 9 मार्च 2007 को मुशर्रफ ने देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस इफ्तिखार मोहम्मद चौधरी को पद से हटा दिया और उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के चार्ज लगवा दिए. इसके जवाब में पूरे पाकिस्तान में वकीलों ने विरोध प्रदर्शन करना शुरू कर दिया और कोर्ट की कार्रवाईयों को बॉयकॉट कर दिया.
2007 में पाकिस्तान में इमरजेंसी- लगातार विरोध के चलते मुशर्रफ को देश में इमरजेंसी लगाकर हालात काबू में करने पड़े. इस दौरान उन्होंने एक बार फिर कोर्ट और न्यायाधीशों को बर्खास्त कर दिया.
2008 का चुनाव- 2008 आते-आते भ्रष्टाचार, सीजेआई के सस्पेंशन, वकीलों और मुख्य राजनीतिक दलों की हड़तालों, लाल मस्जिद के घेराव और तमाम दूसरी घटनाओं से मुशर्रफ की लोकप्रियता काफी घट चुकी थी. 2008 के चुनाव में पीपीपी की जीत हुई और मुशर्रफ के शासन का खात्मा हुआ. 18 अगस्त 2008 को मुशर्रफ लंदन चले गए और खुद को निर्वासित कर लिया.
पढ़ें ये भी: Parvez Musharraf Dies: पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की मौत-पाकिस्तानी मीडिया
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)