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ट्रेड वॉर के दांव-पेंच में फंस सकता है भारत, इकनॉमी को लगेगा झटका

रैबोबैंक की स्टडी में कहा गया गया है टैरिफ वॉर तेज होने से निर्यात घटेगा और बाहर से आने वाला सामान महंगा हो जाएगा

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देश की इकोनॉमी को दो बाहरी दबावों से जूझना पड़ सकता है. ट्रेड वॉर तेज होने से भारतीय अर्थव्यवस्था को झटका लग सकता है. अमेरिकी फेडरल रिजर्व भी अपनी मौद्रिक नीति कड़ी कर सकता है और इसका भी असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है. रैबोबैंक इंटरनेशनल के इकोनॉमिस्ट्स की एक टीम ने इसकी आशंका जताई है.

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रैबोबैंक की स्टडी में कहा गया गया है टैरिफ वॉर तेज होने से निर्यात घटेगा और बाहर से आने वाला सामान महंगा हो जाएगा. इससे भारतीयों की परचेजिंग पावर और निवेश घटेगा. इसे 2022 तक भारतीय अर्थव्यवस्था को जीडीपी में 2.3 फीसदी का नुकसान हो सकता है.

इकनॉमिस्ट ह्यूगो एरकेन, रफी हयात और मरिज्न हिजमेरिक्स ने चीन और अमेरिका के मौजूदा कारोबारी विवाद के बारे में कहा है कि इन दोनों की लड़ाई में फंस कर कई देशों को नुकसान हो सकता है. भारत को चीन या अमेरिका या फिर दोनों की उल्टी कारोबारी नीतियों को नुकसान उठाना पड़ सकता है.

इन तीनों ने ऐसी तीन हालात की संभावना जताई है, जिसमें भारत को घाटा हो सकता है-

  1. चीन भारतीय निर्यात को इसलिए निशाना बना सकता है क्योंकि भारत अमेरिका का सहयोगी समझा जाता है.
  2. भारत अमेरिका के साथ खड़ा नहीं होगा. ऐसे में वह भारतीय निर्यात पर टैरिफ लगा सकता है
  3. अमेरिका की ओर से कार्रवाई करने पर भारत भी जवाब दे सकता है.
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रैबोबैंक की स्टडी में कहा गया गया है टैरिफ वॉर तेज होने से निर्यात घटेगा और बाहर से आने वाला सामान महंगा हो जाएगा
ट्रंप मानते हैं कि पूरी दुनिया के देश अमेरिका का फायदा उठा रहे हैं 
(फाइल फोटोः PTI)

स्टडी में कहा गया है तीसरी स्थिति में भारत को सबसे ज्यादा नुकसान हो सकता है. इससे यह तर्क ध्वस्त हो जाता है कि भारत ट्रेड वॉर के असर से तुलनात्मक तौर पर सुरक्षित है क्योंकि दुनिया के कुल निर्यात में इसकी हिस्सेदारी सिर्फ 1.7 फीसदी है. डोनाल्ड ट्रंप ने इंटेलक्चुल प्रॉपर्टी कानून के उल्लंघन के आरोप में चीन से आने वाले सामानों पर 150 अरब डॉलर का टैरिफ लगाने का ऐलान किया है. जबकि चीन ने अमेरिका से आने वाले सोयाबीन से लेकर विमान तक पर टैरिफ लगाने का ऐलान कर दिया है.

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फेडरल रिजर्व के कदम का असर

अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वॉर में फंसने के अलावा भारतीय इकोनॉमी के बाहरी मोर्चे पर फेडरल रिजर्व की कड़ी मौद्रिक नीति का भी असर पड़ सकता है. इससे भारत से पूंजी बाहर जा सकती है. रैबोबैंक का आकलन है कि 2022 तक भारत से 22 अरब डॉलर की पूंजी बाहर जा सकती है. अगर भारत में राजनीतिक अस्थिरता रहती है तो पूंजी तेजी से बाहर जाएगी. देश में 2019 में आम चुनाव होंगे. अगर ऐसी स्थिति में भारत अपने विदेशी मुद्रा रिजर्व का इस्तेमाल करता है तो ब्याज दरें बढ़ेंगी और लिक्वडिटी घटेगी. ये सारी वजहें भारत की आर्थिक समृद्धि में रोड़ा अटका सकती हैं.

इनपुट : ब्लूमबर्ग क्विंट

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