रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine War) के एक साल पूरे हो गए है. यह संघर्ष एक वैश्विक संकट बनकर उभरा है. दुनियाभर के देश इससे प्रभावित हो रहे हैं. क्रूड ऑयल-गैस के दामों से लेकर, खाद्य तेल, उर्वरक, आटा तक की कीमतों में उछाल देखने को मिला. सप्लाई चेन, वैश्वविक अर्थव्यवस्था में भी असर दिखा. बच्चों की पढ़ाई, किसानों की खेती भी प्रभावित हुई. आइए जानते हैं इस वैश्विक समस्या ने भारत में कहां क्या प्रभाव दिखाया.
Russia-Ukraine War के 1 साल: रोटी से रोजगार तक,युद्ध ने भारत पर क्या असर दिखाया?
1. क्या भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ा युद्ध का असर?
2021-22 के आर्थिक सर्वेक्षण में इस वित्तीय वर्ष के लिए भारत की जीडीपी वृद्धि (GDP growth) 8-8.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था. हालांकि, पहले अग्रिम अनुमानों के अनुसार वृद्धि दर घटकर 7 प्रतिशत रह गई, क्योंकि संसद में आर्थिक समीक्षा के पेश होने के 24 दिन बाद शुरू हुए रूस-यूक्रेन युद्ध का अनुमान नहीं लगाया जा सका था.
बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के अनुसार आर्थिक सर्वे ही नहीं बल्कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) से लेकर अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक (WB) तक सभी पूर्वानुमान गलत निकले, क्योंकि 24 फरवरी से पहले किसी ने भी कल्पना नहीं की थी कि रूस वाकई में यूक्रेन पर आक्रमण करेगा.
रिपोर्ट्स के अनुसार भारत पर इस युद्ध का सीधा असर ज्यादा नहीं पड़ा, क्योंकि भारत और रूस के बीच रक्षा क्षेत्र को छोड़कर ज्यादा व्यापार नहीं होता. हालांकि इस बीच, युद्ध के बाद रूस और भारत के बीच व्यापार में वृद्धि हुई है, क्योंकि भारत ने रूस से कच्चे तेल सहित कुछ अन्य वस्तुएं तेजी से मंगाई हैं. इसी तरह, यूक्रेन के साथ व्यापार इतना अच्छा नहीं था.
बिजनेस स्टैंडर्ड के मुताबिक विकसित अर्थव्यवस्थाओं में मंदी या गंभीर मंदी की स्थिति के रूप में युद्ध का अप्रत्यक्ष प्रभाव देखा गया. युद्ध के शुरुआती चरण में कमोडिटी की कीमतों में वृद्धि ने भारत की अर्थव्यवस्था पर भी बहुत अधिक प्रतिकूल प्रभाव डाला था.
खुदरा मूल्य मुद्रास्फीति कुछ महीनों (नवंबर और दिसंबर) को छोड़कर पूरे 2022-23 के लिए RBI की छह प्रतिशत की अधिकतम ऊपरी सीमा के स्तर से ऊपर रही.
भारतीय कच्चे तेल की वैश्विक कीमतें जुलाई तक 100 डॉलर प्रति बैरल से अधिक बनी हुई थीं. अक्टूबर के बाद से इसकी कीमत औसतन 90 अरब डॉलर से नीचे आ गई है क्योंकि मंदी से जूझ रही वैश्विक अर्थव्यवस्था में अब इसकी बहुत अधिक मांग नहीं है.
Expand2. सप्लाई चेन हुई बाधित, भारत में बढ़े खाद्य तेलों के दाम
भारत दुनिया में खाद्य तेल का सबसे बड़ा आयातक है. आंकड़ों की बात करें तो भारत खाद्य तेलों की अपनी कुल खपत का लगभग 56 फीसदी हिस्सा विदेशों से मंगाता है. इसमें सोयाबीन के तेल से लेकर सूरजमुखी और पाम ऑयल जैसे तमाम खाद्य तेल शामिल हैं, जिन्हें इंडोनेशिया से लेकर मलेशिया, रूस, यूक्रेन समेत दक्षिण अमेरिका के अर्जेंटीना जैसे देशों से आयात किया जाता है. पिछले साल केंद्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों की राज्य मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में बताया था कि खाद्य तेलों की मांग और आपूर्ति के बीच लगभग 56 फीसदी का अंतर है और यह आयात के माध्यम से पूरा किया जाता है.
रूस और यूक्रेन सूरजमुखी के तेल के सबसे बड़े उत्पादक हैं. पहले कोरोना और उसके युद्ध के चलते सप्लाई चेन प्रभावित हुई. जिसका असर दुनिया भर के बाजारों पर देखा गया है. रूस-यूक्रेन युद्ध के 15 दिनों के भीतर ही देशभर के बाजारों में खाद्य तेलों के दामों में भारी उछाल देखा गया था. खाद्य तेलों की कीमतों में 15 दिनों के अंदर ही करीब 30 फीसदी तक बढ़ोतरी दर्ज की गई थी.
दुनिया की लीडिंग सप्लाई चेन प्रोवाइडर कंपनी GEP ने अपने ब्लॉग में लिखा है कि रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह सप्लाइ चेन प्रभावित हुई है. जिससे माल ढुलाई शुल्क में वृद्धि हुई है, कंटेनर की कमी पैदा हुई है और वेयरहाउस में स्टोरेज स्पेस की उपलब्धता में कमी आई है. कंटेनर की कमी के बीच इस संघर्ष की वजह से भारत में एकतरफा पिकअप दरों में भारी वृद्धि हुई है, जिससे पीक शिपिंग सीजन पर बड़ा असर पड़ा है.
रूस द्वारा काला सागर और अजोव सागर अवरुद्ध कर दिया गया था.
युद्ध की वजह से कई बंदरगाहों को बंद कर दिया गया और शिपमेंट में देरी और भीड़भाड़ के कारण ऑर्डर वापस लिए जा रहे हैं.
बंदरगाह बंद हो गए, जिससे समुद्री शिपिंग लागत में वृद्धि हुई.
जहाजों को अपना मार्ग बदलना पड़ा जिससे समुद्री रास्ते में भीड़भाड़ हुई और कार्गो प्रवाह में देरी हुई और इसके परिणामस्वरूप वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला की स्थिति बिगड़ गई.
इसके अलावा, प्रतिबंधों के कारण रेल परिवहन से समुद्री परिवहन की ओर बदलाव हुआ, जिससे दबाव पैदा हुआ और कंटेनर की भारी कमी हो गई
Expand3. धीमा हुआ आर्थिक विकास
रूस-यूक्रेन युद्ध ने दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों को महंगाई को नियंत्रित करने के लिए ब्याज दर बढ़ाने पर मजबूर कर दिया. IMF ने कहा है कि दुनियाभर में आर्थिक विकास दर में गिरावट के बीच महंगाई चरम पर है. IMF के अनुसार दुनिया की इकनॉमी की ग्रोथ रेट साल 2023 में 2.9 प्रतिशत रहेगी, जोकि 2022 में 3.4 प्रतिशत थी. साल 2024 के लिए आईएमएफ ने पूरी दुनिया की जीडीपी रेट 3.1 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है. बीते वर्ष IMF ने ये चेतावनी भी दी थी कि ब्याज दरों में तेजी से वृद्धि होने से मंदी का दौर लंबे समय तक चल सकती है. आर्थिक वृद्धि इस बात पर निर्भर करेगी कि रूस-यूक्रेन संघर्ष कितनी तेजी से कम होता है.
आईएमएफ वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक के मुताबिक वैश्विक विकास दर 2022 में अनुमानित 3.4 प्रतिशत से गिरकर 2023 में 2.9 प्रतिशत होने का अनुमान है, फिर 2024 में बढ़कर 3.1 प्रतिशत हो जाएगी. युद्ध शुरू होने से पहले जनवरी 2022 में वैश्विक वृद्धि दर अनुमानित तौर पर 5.9 प्रतिशत थी. आईएमएफ का मानना था कि भारत की वृद्धि दर वर्ष 2022-23 में 9 प्रतिशत रहेगी. लेकिन अब इसके 6.8 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान है.
सस्ते तेल ने बढ़ाया रूस से भारत का आयात बिल, निर्यात में क्या हुआ असर?
व्यापारिक साझेदारी की बात करें तो भारत के साथ साझेदारी में वित्त वर्ष 2022 में रूस का 25वां स्थान था. लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान मॉस्को भारत का पांचवां सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया है. बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट में बताया गया है कि रूस-भारत के बीच व्यापार इसलिए बढ़ा है, क्योंकि अप्रैल-दिसंबर के दौरान भारत ने रूस से पांच गुना ज्यादा 32.81 अरब डॉलर मूल्य के कच्चे तेल का आयात रियायती दामों पर किया है. तेल के अलावा भारत रूस से फर्टिलाइजर, कोयला, सोयाबीन तथा सूरजमुखी के तेल का भी आयात करता है लेकिन कुल आयात में कच्चे तेल की हिस्सेदारी करीब दो-तिहाई रही है.
भारत की तेल खरीद अब रूस से 25% होती है, युद्ध से पहले यह 2% से भी कम थी.
वाणिज्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार पिछले साल अप्रैल-दिसंबर के दौरान भारत और रूस के बीच व्यापार बढ़कर 35 अरब डॉलर पहुंच गया. इससे पहले समान अवधि में दोनों देशों के बीच 9.1 अरब डॉलर का कारोबार हुआ था.
बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट में बताया गया है कि आयात बढ़ने और निर्यात कम रहने से रूस के साथ भारत का व्यापार घाटा अप्रैल-दिसंबर के दौरान बढ़कर 30.61 अरब डॉलर हो गया, जो एक साल पहले 4.03 अरब डॉलर था.
2022-23 के पहले दस महीनों में भारत का निर्यात केवल 8.5 फीसदी बढ़ा, जबकि वित्त वर्ष 2021-22 में इसमें 44 फीसदी का इजाफा हुआ था.
कच्चे तेल और उर्वरक की अधिक कीमतों के कारण भारत का आयात भी 2022-23 के अप्रैल से जनवरी के दौरान करीब 22 फीसदी बढ़ गया.
2022-23 में अप्रैल-जनवरी के दौरान व्यापार घाटा 51 फीसदी बढ़ गया.
2022 में अप्रैल से दिसंबर के बीच भारत का रूस का तेल आयात बढ़कर 22 अरब डॉलर हो गया, जो 2021 के इन्हीं महीनों के दौरान केवल 2.5 अरब डॉलर था.
रूस को किए जाने वाले निर्यात में चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 13.5 फीसदी की कमी देखने को मिली थी.
Expand4. किसानों की चिंताएं?
पिछले साल पश्चिमी देशों ने रूस से तेल नहीं खरीदने को लेकर भारत पर दवाब बनाया था. तब भारत ने देश के नागरिकों के हित में सस्ते कच्चे तेल के आयात के अपने अधिकारों का लगातार बचाव किया था. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि भारत ने पिछले 9 महीनों में रूस से जितना तेल खरीदा है वह यूरोपीय देशों द्वारा की गई खरीद का महज छठा हिस्सा है. दुनियाभर में युद्ध का असर दिख रहा है ऐसे में अगर यूरोपीय संघ में मंदी आई तो हमारा निर्यात भी प्रभावित होगा, क्योंकि वह भारत का दूसरा बड़ा कारोबारी साझेदार है.
ब्लूमबर्ग ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया है कि अधिक से अधिक कच्चा तेल खरीदने के कारण भारत का व्यापार घाटा बढ़ता जा रहा है. इसका एक प्रभाव यह पड़ रहा है कि रुपये में विदेशी व्यापार करने की मोदी सरकार की योजना में कोई खास प्रगति नहीं हो पा रही है.
कोरोना महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण साल 2021 और 2022 में वैश्विक कमी के चलते रासायनिक खाद, रासायनिक खाद के लिए कच्चे माल और घुलनशील उर्वरकों की कीमतें रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई थीं. रूस-यूक्रेन की वैश्विक पोटाश उत्पादन में हिस्सेदारी लगभग 40 फीसदी है. बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट में बताया गया है कि युद्ध शुरू होने के बाद पोटाश की वैश्विक कीमतें 300-350 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 700-900 डॉलर प्रति टन हो गई थीं. दिसंबर 2022 की रिपोर्ट मंे बताया गया था कि रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण भारत में पहले से चल रही उर्वरक की असंतुलित खपत इस खरीफ सत्र में और अधिक असंतुलित हो गई है. इस असंतुलन की वजह से लंबे समय तक मिट्टी के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ने की आशंका भी गहराने लगी है.
भारतीय स्टूडेंट्स की मजबूरी
यूक्रेन में काफी संख्या में भारतीय स्टूडेंट्स मेडिकल की पढ़ाई करते हैं. पिछले साल जब अचानक से युद्ध शुरु हुआ था तब ये विद्यार्थी भारत लौट आए थे, लेकिन अब ये वापस यूक्रेन जाकर पढ़ाई पूरी कर रहे हैं. द क्विंट ने इन स्टूडेंट्स के हालतों पर स्टोरी की है. टेरनोपिल नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी के एक छात्र ने कहा है कि चूंकि भारत सरकार की तरफ से उन्हें कोई व्यावहारिक विकल्प मुहैया नहीं कराया गया, इसलिए उन्होंने खुद को इस युद्धग्रस्त देश में रहने के अनुरूप ढाल लिया है. उनके पास यूक्रेन में अपनी मेडिकल डिग्री पूरी करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.
टेरनोपिल नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी के ही एक अन्य छात्र ने कहा है कि युद्ध से आर्थिक नुकसान भी हो रहा है, मेरे परिवार की तिजोरी भी खाली हो रही है. भोजन, बिजली और आवास जैसी बुनियादी सुविधाओं की कीमतें लगभग दोगुनी हो गई हैं. हमारे रहने-खाने का खर्च काफी बढ़ गया है.
साल भर पहले जब रूस-यूक्रेन के बीच जंग छिड़ी थी, उस समय 20 हजार से अधिक भारतीय स्टूडेंट सुरक्षा के लिहाज से जल्दबाजी में अपने घर लौट आए थे.
हालांकि कई मेडिकल छात्रों का कहना है कि यहां लौटने के बाद उन्हें पढ़ाई के लिए उपयुक्त माहौल नहीं मिल पाया, जिससे सैकड़ों स्टूडेंट्स को फिर यूक्रेन लौटने के लिए मजबूर होना पड़ा.
भारत में नेशनल मेडिकल काउंसिल (NMC) के दिशानिर्देश यूक्रेन की विभिन्न यूनिवर्सिटी में दाखिला लेने वाले मेडिकल छात्रों को अपनी डिग्री भारतीय कॉलेजों से डिग्री पूरी करने की अनुमति नहीं देते हैं.
Expand5. महंगा होता कर्ज
रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद बढ़ती महंगाई पर काबू पाने के लिए आरबीआई द्वारा मई 2022 से अब तक छह बार में रेपो दर में 2.50 फीसदी की बढ़ोतरी की जा चुकी है.
RBI के इस कदम के बाद अन्य बैंकों ने भी ब्याज दरों में बढ़ोतरी की है.
इससे होम लोन समेत सभी तरह के कर्ज महंगे हो गए हैं, जिससे कर्ज लेने वालों पर ईएमआई का बोझ बढ़ गया है.
मई 2022 में 7 फीसदी ब्याज दर पर होम लोन लेने वालों ग्राहकों को अब 9.50 फीसदी ब्याज चुकाना पड़ रहा है.
जियो-पॉलिटिकल चुनौती
रूस-यूक्रेन के बीच जारी युद्ध के मसले पर भारत संतुलन बनाकर चल रहा है. लेकिन यह राह उतनी भी आसान नहीं है जितनी की दिखती है. भारत का रिश्ता रूस-यूक्रेन के साथ ही पश्चिम के सारे देशों के साथ मित्र के रूप में रहा है. भारत ने बार-बार कहा है कि मॉस्को और कीव के बीच कूटनीति के जरिए इस समस्या का हल निकलना चाहिए. वहीं पश्चिमी देश रूस की कार्रवाई के बिल्कुल खिलाफ रहे हैं और रूस पर कई तरह के प्रतिबंध भी लगा चुके हैं तो, भारत का रुख तटस्थ रहा है. भारत और चीन ने युद्ध से बनी जिओ-पॉलिटिकल खेमेबंदी से दूरी रखी है.
रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से पश्चिमी देश भारत पर लगातार इस बात का दबाव बनाते रहे हैं कि वो रूस से अपनी नजदीकी को कम करे.
इसके साथ ही पश्चिमी देश भारत पर इस बात को लेकर भी निशाना साधते रहे हैं कि इस युद्ध में जहां एक ओर अमेरिका और यूरोपीय देश रूस के खिलाफ मोर्चाबंदी कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ भारत रूस से सस्ती दरों पर तेल खरीद रहा है.
न्यूयॉर्क टाइम्स में पिछले साल नवंबर में एक रिपोर्ट छपी, जिसका शीर्षक था "क्या भारत यूक्रेन में शांति समझौता करवाने में मदद कर सकता है?’. अभी भी कई राजनयिक और विदेश नीति विशेषज्ञ इस बात पर नजर बनाए हुए हैं कि क्या भारत रूस पर यूक्रेन में अपने युद्ध को समाप्त करने के लिए दबाव बना सकता है?
इस संघर्ष की वर्षगांठ पर यूक्रेनी दूत यूक्रेनी दूत इवान कोनोवलोव ने कहा है ‘भारत की G20 अध्यक्षता के दौरान, यूक्रेन के लिए भारत का समर्थन होना बहुत महत्वपूर्ण है. हम आशा करते हैं कि G20 के फ्रेमवर्क में, यूक्रेन हिस्सा लेगा और यूक्रेन का विषय निश्चित रूप से मेज पर होगा. हम G20 की भारत द्वारा अध्यक्षता में इस युद्ध को रोकने, इस युद्ध को समाप्त करने और इसे जीतने के अवसर के रूप में देखते हैं.’
जर्मनी के फेडरल इंटेलिजेंस सर्विस के पूर्व वाइस प्रेसिडेंट रूडोल्फ जी एडम ने जीआईएस रिपोर्ट में यह दावा किया है कि इस युद्ध ने केवल यूरोप ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को बदल कर रख दिया है. उनका कहना है कि परम्परागत राजनैतिक सुयोजन कठोर होगा और दुनिया केवल तीन बड़े हिस्सों में बंट कर रह जाएगी. जिनमें आपस में अविश्वास, संदेह और खुली चुनौतियां देखने को मिलेंगी. इसमें अमेरिका और रूस के दो धड़ों के अलावा तीसरी दुनिया के देश एक समूह के रूप में दिख सकते हैं.
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क्या भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ा युद्ध का असर?
2021-22 के आर्थिक सर्वेक्षण में इस वित्तीय वर्ष के लिए भारत की जीडीपी वृद्धि (GDP growth) 8-8.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था. हालांकि, पहले अग्रिम अनुमानों के अनुसार वृद्धि दर घटकर 7 प्रतिशत रह गई, क्योंकि संसद में आर्थिक समीक्षा के पेश होने के 24 दिन बाद शुरू हुए रूस-यूक्रेन युद्ध का अनुमान नहीं लगाया जा सका था.
बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के अनुसार आर्थिक सर्वे ही नहीं बल्कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) से लेकर अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक (WB) तक सभी पूर्वानुमान गलत निकले, क्योंकि 24 फरवरी से पहले किसी ने भी कल्पना नहीं की थी कि रूस वाकई में यूक्रेन पर आक्रमण करेगा.
रिपोर्ट्स के अनुसार भारत पर इस युद्ध का सीधा असर ज्यादा नहीं पड़ा, क्योंकि भारत और रूस के बीच रक्षा क्षेत्र को छोड़कर ज्यादा व्यापार नहीं होता. हालांकि इस बीच, युद्ध के बाद रूस और भारत के बीच व्यापार में वृद्धि हुई है, क्योंकि भारत ने रूस से कच्चे तेल सहित कुछ अन्य वस्तुएं तेजी से मंगाई हैं. इसी तरह, यूक्रेन के साथ व्यापार इतना अच्छा नहीं था.
बिजनेस स्टैंडर्ड के मुताबिक विकसित अर्थव्यवस्थाओं में मंदी या गंभीर मंदी की स्थिति के रूप में युद्ध का अप्रत्यक्ष प्रभाव देखा गया. युद्ध के शुरुआती चरण में कमोडिटी की कीमतों में वृद्धि ने भारत की अर्थव्यवस्था पर भी बहुत अधिक प्रतिकूल प्रभाव डाला था.
खुदरा मूल्य मुद्रास्फीति कुछ महीनों (नवंबर और दिसंबर) को छोड़कर पूरे 2022-23 के लिए RBI की छह प्रतिशत की अधिकतम ऊपरी सीमा के स्तर से ऊपर रही.
भारतीय कच्चे तेल की वैश्विक कीमतें जुलाई तक 100 डॉलर प्रति बैरल से अधिक बनी हुई थीं. अक्टूबर के बाद से इसकी कीमत औसतन 90 अरब डॉलर से नीचे आ गई है क्योंकि मंदी से जूझ रही वैश्विक अर्थव्यवस्था में अब इसकी बहुत अधिक मांग नहीं है.
युद्ध के शुरुआती महीनों में कई वस्तुओं की वैश्विक कीमतें, विशेष रूप से यूक्रेन और रूस द्वारा आपूर्ति की जाने वाली वस्तुओं जैसे गेहूं, सूरजमुखी तेल और उर्वरकों की कीमतों ने आसमान छू लिया, जिससे भारत को राजकोषीय और मौद्रिक उपाय करने के लिए मजबूर होना पड़ा.
भारत द्वारा जो उपाय गए उनमें नीतिगत दरों में वृद्धि, पेट्रोल, डीजल पर उत्पाद शुल्क (excise duty) और वैट को कम करना, गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध, आटा, सूजी और मैदा निर्यात पर प्रतिबंध, विभिन्न प्रकार के चावल पर 20 प्रतिशत निर्यात शुल्क, मसूर पर आयात शुल्क कम करना, मुक्त श्रेणी के तहत उड़द और अरहर के आयात को एक वर्ष के लिए बढ़ाकर मार्च 2023 तक करना शामिल है. इसके अलावा कच्चे पाम तेल, कच्चे, सोयाबीन और सूरजमुखी को मूल सीमा शुल्क से छूट, रिफाइंड सोयाबीन और सूरजमुखी तेल पर सीमा शुल्क में कटौती जैसे कदम भी उठाए गए.
चूंकि युद्ध से वैश्विक स्तर पर कीमतों में वृद्धि हुई, इसलिए भारत सरकार को उर्वरक सब्सिडी में संशोधन भी करना पड़ा. केंद्र ने वित्त वर्ष-23(FY23) में उर्वरक सब्सिडी के लिए 1.05 लाख करोड़ रुपये का बजट रखा था, लेकिन कृषि पोषक तत्वों की कीमतों में बढ़ोतरी के बीच आवंटन को बढ़ाकर 2.25 लाख करोड़ रुपये कर दिया.
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति (CPI-based inflation) दिसंबर के 5.72 प्रतिशत से बढ़कर जनवरी में 6.52 प्रतिशत हो गई, जिसका संबंध घरेलू कारकों जैसे बाजारों में गेहूं के आने की दर और दूध के लिए चारे की कमी आदि से था.
युद्ध की शुरुआत के समय, सूरजमुखी के तेल, गेहूं और आटे की कीमतों में फरवरी और मार्च 2022 के बीच क्रमशः 19.9, 2.2 और 1.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी.
सप्लाई चेन हुई बाधित, भारत में बढ़े खाद्य तेलों के दाम
भारत दुनिया में खाद्य तेल का सबसे बड़ा आयातक है. आंकड़ों की बात करें तो भारत खाद्य तेलों की अपनी कुल खपत का लगभग 56 फीसदी हिस्सा विदेशों से मंगाता है. इसमें सोयाबीन के तेल से लेकर सूरजमुखी और पाम ऑयल जैसे तमाम खाद्य तेल शामिल हैं, जिन्हें इंडोनेशिया से लेकर मलेशिया, रूस, यूक्रेन समेत दक्षिण अमेरिका के अर्जेंटीना जैसे देशों से आयात किया जाता है. पिछले साल केंद्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों की राज्य मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में बताया था कि खाद्य तेलों की मांग और आपूर्ति के बीच लगभग 56 फीसदी का अंतर है और यह आयात के माध्यम से पूरा किया जाता है.
रूस और यूक्रेन सूरजमुखी के तेल के सबसे बड़े उत्पादक हैं. पहले कोरोना और उसके युद्ध के चलते सप्लाई चेन प्रभावित हुई. जिसका असर दुनिया भर के बाजारों पर देखा गया है. रूस-यूक्रेन युद्ध के 15 दिनों के भीतर ही देशभर के बाजारों में खाद्य तेलों के दामों में भारी उछाल देखा गया था. खाद्य तेलों की कीमतों में 15 दिनों के अंदर ही करीब 30 फीसदी तक बढ़ोतरी दर्ज की गई थी.
दुनिया की लीडिंग सप्लाई चेन प्रोवाइडर कंपनी GEP ने अपने ब्लॉग में लिखा है कि रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह सप्लाइ चेन प्रभावित हुई है. जिससे माल ढुलाई शुल्क में वृद्धि हुई है, कंटेनर की कमी पैदा हुई है और वेयरहाउस में स्टोरेज स्पेस की उपलब्धता में कमी आई है. कंटेनर की कमी के बीच इस संघर्ष की वजह से भारत में एकतरफा पिकअप दरों में भारी वृद्धि हुई है, जिससे पीक शिपिंग सीजन पर बड़ा असर पड़ा है.
रूस द्वारा काला सागर और अजोव सागर अवरुद्ध कर दिया गया था.
युद्ध की वजह से कई बंदरगाहों को बंद कर दिया गया और शिपमेंट में देरी और भीड़भाड़ के कारण ऑर्डर वापस लिए जा रहे हैं.
बंदरगाह बंद हो गए, जिससे समुद्री शिपिंग लागत में वृद्धि हुई.
जहाजों को अपना मार्ग बदलना पड़ा जिससे समुद्री रास्ते में भीड़भाड़ हुई और कार्गो प्रवाह में देरी हुई और इसके परिणामस्वरूप वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला की स्थिति बिगड़ गई.
इसके अलावा, प्रतिबंधों के कारण रेल परिवहन से समुद्री परिवहन की ओर बदलाव हुआ, जिससे दबाव पैदा हुआ और कंटेनर की भारी कमी हो गई
धीमा हुआ आर्थिक विकास
रूस-यूक्रेन युद्ध ने दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों को महंगाई को नियंत्रित करने के लिए ब्याज दर बढ़ाने पर मजबूर कर दिया. IMF ने कहा है कि दुनियाभर में आर्थिक विकास दर में गिरावट के बीच महंगाई चरम पर है. IMF के अनुसार दुनिया की इकनॉमी की ग्रोथ रेट साल 2023 में 2.9 प्रतिशत रहेगी, जोकि 2022 में 3.4 प्रतिशत थी. साल 2024 के लिए आईएमएफ ने पूरी दुनिया की जीडीपी रेट 3.1 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है. बीते वर्ष IMF ने ये चेतावनी भी दी थी कि ब्याज दरों में तेजी से वृद्धि होने से मंदी का दौर लंबे समय तक चल सकती है. आर्थिक वृद्धि इस बात पर निर्भर करेगी कि रूस-यूक्रेन संघर्ष कितनी तेजी से कम होता है.
आईएमएफ वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक के मुताबिक वैश्विक विकास दर 2022 में अनुमानित 3.4 प्रतिशत से गिरकर 2023 में 2.9 प्रतिशत होने का अनुमान है, फिर 2024 में बढ़कर 3.1 प्रतिशत हो जाएगी. युद्ध शुरू होने से पहले जनवरी 2022 में वैश्विक वृद्धि दर अनुमानित तौर पर 5.9 प्रतिशत थी. आईएमएफ का मानना था कि भारत की वृद्धि दर वर्ष 2022-23 में 9 प्रतिशत रहेगी. लेकिन अब इसके 6.8 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान है.
सस्ते तेल ने बढ़ाया रूस से भारत का आयात बिल, निर्यात में क्या हुआ असर?
व्यापारिक साझेदारी की बात करें तो भारत के साथ साझेदारी में वित्त वर्ष 2022 में रूस का 25वां स्थान था. लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान मॉस्को भारत का पांचवां सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया है. बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट में बताया गया है कि रूस-भारत के बीच व्यापार इसलिए बढ़ा है, क्योंकि अप्रैल-दिसंबर के दौरान भारत ने रूस से पांच गुना ज्यादा 32.81 अरब डॉलर मूल्य के कच्चे तेल का आयात रियायती दामों पर किया है. तेल के अलावा भारत रूस से फर्टिलाइजर, कोयला, सोयाबीन तथा सूरजमुखी के तेल का भी आयात करता है लेकिन कुल आयात में कच्चे तेल की हिस्सेदारी करीब दो-तिहाई रही है.
भारत की तेल खरीद अब रूस से 25% होती है, युद्ध से पहले यह 2% से भी कम थी.
वाणिज्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार पिछले साल अप्रैल-दिसंबर के दौरान भारत और रूस के बीच व्यापार बढ़कर 35 अरब डॉलर पहुंच गया. इससे पहले समान अवधि में दोनों देशों के बीच 9.1 अरब डॉलर का कारोबार हुआ था.
बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट में बताया गया है कि आयात बढ़ने और निर्यात कम रहने से रूस के साथ भारत का व्यापार घाटा अप्रैल-दिसंबर के दौरान बढ़कर 30.61 अरब डॉलर हो गया, जो एक साल पहले 4.03 अरब डॉलर था.
2022-23 के पहले दस महीनों में भारत का निर्यात केवल 8.5 फीसदी बढ़ा, जबकि वित्त वर्ष 2021-22 में इसमें 44 फीसदी का इजाफा हुआ था.
कच्चे तेल और उर्वरक की अधिक कीमतों के कारण भारत का आयात भी 2022-23 के अप्रैल से जनवरी के दौरान करीब 22 फीसदी बढ़ गया.
2022-23 में अप्रैल-जनवरी के दौरान व्यापार घाटा 51 फीसदी बढ़ गया.
2022 में अप्रैल से दिसंबर के बीच भारत का रूस का तेल आयात बढ़कर 22 अरब डॉलर हो गया, जो 2021 के इन्हीं महीनों के दौरान केवल 2.5 अरब डॉलर था.
रूस को किए जाने वाले निर्यात में चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 13.5 फीसदी की कमी देखने को मिली थी.
पिछले साल पश्चिमी देशों ने रूस से तेल नहीं खरीदने को लेकर भारत पर दवाब बनाया था. तब भारत ने देश के नागरिकों के हित में सस्ते कच्चे तेल के आयात के अपने अधिकारों का लगातार बचाव किया था. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि भारत ने पिछले 9 महीनों में रूस से जितना तेल खरीदा है वह यूरोपीय देशों द्वारा की गई खरीद का महज छठा हिस्सा है. दुनियाभर में युद्ध का असर दिख रहा है ऐसे में अगर यूरोपीय संघ में मंदी आई तो हमारा निर्यात भी प्रभावित होगा, क्योंकि वह भारत का दूसरा बड़ा कारोबारी साझेदार है.
ब्लूमबर्ग ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया है कि अधिक से अधिक कच्चा तेल खरीदने के कारण भारत का व्यापार घाटा बढ़ता जा रहा है. इसका एक प्रभाव यह पड़ रहा है कि रुपये में विदेशी व्यापार करने की मोदी सरकार की योजना में कोई खास प्रगति नहीं हो पा रही है.
किसानों की चिंताएं?
कोरोना महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण साल 2021 और 2022 में वैश्विक कमी के चलते रासायनिक खाद, रासायनिक खाद के लिए कच्चे माल और घुलनशील उर्वरकों की कीमतें रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई थीं. रूस-यूक्रेन की वैश्विक पोटाश उत्पादन में हिस्सेदारी लगभग 40 फीसदी है. बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट में बताया गया है कि युद्ध शुरू होने के बाद पोटाश की वैश्विक कीमतें 300-350 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 700-900 डॉलर प्रति टन हो गई थीं. दिसंबर 2022 की रिपोर्ट मंे बताया गया था कि रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण भारत में पहले से चल रही उर्वरक की असंतुलित खपत इस खरीफ सत्र में और अधिक असंतुलित हो गई है. इस असंतुलन की वजह से लंबे समय तक मिट्टी के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ने की आशंका भी गहराने लगी है.
भारतीय स्टूडेंट्स की मजबूरी
यूक्रेन में काफी संख्या में भारतीय स्टूडेंट्स मेडिकल की पढ़ाई करते हैं. पिछले साल जब अचानक से युद्ध शुरु हुआ था तब ये विद्यार्थी भारत लौट आए थे, लेकिन अब ये वापस यूक्रेन जाकर पढ़ाई पूरी कर रहे हैं. द क्विंट ने इन स्टूडेंट्स के हालतों पर स्टोरी की है. टेरनोपिल नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी के एक छात्र ने कहा है कि चूंकि भारत सरकार की तरफ से उन्हें कोई व्यावहारिक विकल्प मुहैया नहीं कराया गया, इसलिए उन्होंने खुद को इस युद्धग्रस्त देश में रहने के अनुरूप ढाल लिया है. उनके पास यूक्रेन में अपनी मेडिकल डिग्री पूरी करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.
टेरनोपिल नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी के ही एक अन्य छात्र ने कहा है कि युद्ध से आर्थिक नुकसान भी हो रहा है, मेरे परिवार की तिजोरी भी खाली हो रही है. भोजन, बिजली और आवास जैसी बुनियादी सुविधाओं की कीमतें लगभग दोगुनी हो गई हैं. हमारे रहने-खाने का खर्च काफी बढ़ गया है.
साल भर पहले जब रूस-यूक्रेन के बीच जंग छिड़ी थी, उस समय 20 हजार से अधिक भारतीय स्टूडेंट सुरक्षा के लिहाज से जल्दबाजी में अपने घर लौट आए थे.
हालांकि कई मेडिकल छात्रों का कहना है कि यहां लौटने के बाद उन्हें पढ़ाई के लिए उपयुक्त माहौल नहीं मिल पाया, जिससे सैकड़ों स्टूडेंट्स को फिर यूक्रेन लौटने के लिए मजबूर होना पड़ा.
भारत में नेशनल मेडिकल काउंसिल (NMC) के दिशानिर्देश यूक्रेन की विभिन्न यूनिवर्सिटी में दाखिला लेने वाले मेडिकल छात्रों को अपनी डिग्री भारतीय कॉलेजों से डिग्री पूरी करने की अनुमति नहीं देते हैं.
महंगा होता कर्ज
रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद बढ़ती महंगाई पर काबू पाने के लिए आरबीआई द्वारा मई 2022 से अब तक छह बार में रेपो दर में 2.50 फीसदी की बढ़ोतरी की जा चुकी है.
RBI के इस कदम के बाद अन्य बैंकों ने भी ब्याज दरों में बढ़ोतरी की है.
इससे होम लोन समेत सभी तरह के कर्ज महंगे हो गए हैं, जिससे कर्ज लेने वालों पर ईएमआई का बोझ बढ़ गया है.
मई 2022 में 7 फीसदी ब्याज दर पर होम लोन लेने वालों ग्राहकों को अब 9.50 फीसदी ब्याज चुकाना पड़ रहा है.
जियो-पॉलिटिकल चुनौती
रूस-यूक्रेन के बीच जारी युद्ध के मसले पर भारत संतुलन बनाकर चल रहा है. लेकिन यह राह उतनी भी आसान नहीं है जितनी की दिखती है. भारत का रिश्ता रूस-यूक्रेन के साथ ही पश्चिम के सारे देशों के साथ मित्र के रूप में रहा है. भारत ने बार-बार कहा है कि मॉस्को और कीव के बीच कूटनीति के जरिए इस समस्या का हल निकलना चाहिए. वहीं पश्चिमी देश रूस की कार्रवाई के बिल्कुल खिलाफ रहे हैं और रूस पर कई तरह के प्रतिबंध भी लगा चुके हैं तो, भारत का रुख तटस्थ रहा है. भारत और चीन ने युद्ध से बनी जिओ-पॉलिटिकल खेमेबंदी से दूरी रखी है.
रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से पश्चिमी देश भारत पर लगातार इस बात का दबाव बनाते रहे हैं कि वो रूस से अपनी नजदीकी को कम करे.
इसके साथ ही पश्चिमी देश भारत पर इस बात को लेकर भी निशाना साधते रहे हैं कि इस युद्ध में जहां एक ओर अमेरिका और यूरोपीय देश रूस के खिलाफ मोर्चाबंदी कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ भारत रूस से सस्ती दरों पर तेल खरीद रहा है.
न्यूयॉर्क टाइम्स में पिछले साल नवंबर में एक रिपोर्ट छपी, जिसका शीर्षक था "क्या भारत यूक्रेन में शांति समझौता करवाने में मदद कर सकता है?’. अभी भी कई राजनयिक और विदेश नीति विशेषज्ञ इस बात पर नजर बनाए हुए हैं कि क्या भारत रूस पर यूक्रेन में अपने युद्ध को समाप्त करने के लिए दबाव बना सकता है?
इस संघर्ष की वर्षगांठ पर यूक्रेनी दूत यूक्रेनी दूत इवान कोनोवलोव ने कहा है ‘भारत की G20 अध्यक्षता के दौरान, यूक्रेन के लिए भारत का समर्थन होना बहुत महत्वपूर्ण है. हम आशा करते हैं कि G20 के फ्रेमवर्क में, यूक्रेन हिस्सा लेगा और यूक्रेन का विषय निश्चित रूप से मेज पर होगा. हम G20 की भारत द्वारा अध्यक्षता में इस युद्ध को रोकने, इस युद्ध को समाप्त करने और इसे जीतने के अवसर के रूप में देखते हैं.’
जर्मनी के फेडरल इंटेलिजेंस सर्विस के पूर्व वाइस प्रेसिडेंट रूडोल्फ जी एडम ने जीआईएस रिपोर्ट में यह दावा किया है कि इस युद्ध ने केवल यूरोप ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को बदल कर रख दिया है. उनका कहना है कि परम्परागत राजनैतिक सुयोजन कठोर होगा और दुनिया केवल तीन बड़े हिस्सों में बंट कर रह जाएगी. जिनमें आपस में अविश्वास, संदेह और खुली चुनौतियां देखने को मिलेंगी. इसमें अमेरिका और रूस के दो धड़ों के अलावा तीसरी दुनिया के देश एक समूह के रूप में दिख सकते हैं.
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