बीते तीन दशकों में चीन (Chinese Economy) ने विकास के नए पैमाने बनाए हैं. लेकिन कोरोना महामारी के बाद, तमाम कोशिशों के बावजूद चीन की अर्थव्यवस्था पटरी पर नहीं आ पा रही है और वहां स्टेगनेशन की स्थिति बन गई है. बल्कि बीते तीन महीनों में तो वहां की अर्थव्यवस्था, पिछली तिमाही की तुलना में 2.6 फीसदी सिकुड़ गई है.
सवाल उठता है कि चीन की अर्थव्यवस्था में गड़बड़ कहां हो रही है? दरअसल यह गड़बड़ कोरोना के बाद मांग में कमी से ऊपजी है, जिसके बाद रियल एस्टेट सेक्टर (Chinese Real Estate Crisis), सर्विस सेक्टर बुरे तरीके से प्रभावित हुए हैं.
रियल एस्टेट सेक्टर के संकट को तो अब राष्ट्रीय संकट तक बताया जा रहा है. ऊपर से नए वेरिएंट्स के चलते शंघाई जैसे बड़े औद्योगिक केंद्रों के बंद होने का भी जबरदस्त नकारात्मक असर पड़ा है.
अप्रैल-जून की तिमाही में सिकुड़ी चीन की अर्थव्यवस्था, शटडॉउन बना वजह
कोरोना के पहले के बाद निचले आधार से उठते हुए चीन ने 8.1 फीसदी की अच्छी विकास दर हासिल की थी, लेकिन जैसा ऊपर बताया अब मामला उल्टा होता जा रहा है और ऊंचे स्तर पर चीन का विकास इंजन थमता नजर आ रहा है.
इस साल जनवरी-मार्च की तिमाही में चीन की विकास दर बेहद कम स्तर पर सिर्फ 1.4 फीसदी ही रही थी. लेकिन अप्रैल-जून में यह, पिछली तिमाही की तुलना में 2.6 फीसदी सिकुड़/कम गई. यह इसी अवधि में पिछले साल की तुलना में 0.4 फीसदी भी कम है.
पहले जारी किए गए चीन के इकनॉमिक अपडेट के मुताबिक, 2022 में पहले ही विकास दर का अनुमान महज 5.1 फीसदी रखा गया था. लेकिन दिसंबर में विश्व बैंक ने कहा कि चीन की अर्थव्यवस्था 2022 में 4.3 फीसदी की विकास दर ही हासिल कर पाएगी, जो चीन की तरफ से पहले लगाए गए अनुमानों से 0.8 फीसदी और कम थी. ध्यान रहे 2021 में चीन की विकास दर 8.1 फीसदी थी.
दरअसल कोरोना वायरस पर काबू करने के लिए इस साल फिर से चीन में कई बड़े शहरों में लॉकडाउन लगाना पड़ा था. दुनिया के सबसे बड़े बंदरगाहों में से एक शंघाई को मार्च की शुरुआत में बंद करना पड़ा था. मई में जाकर ही फैक्ट्रियों और ऑफिसों को दोबारा खोलने की अनुमति मिली थी.
कम की ब्याज दरें, लेकिन पैसा लेने को तैयार नहीं लोग: लिक्विडिटी ट्रैप बना चीन की मुसीबत
आमतौर पर लोगों के हाथों में पैसा देकर अर्थव्यवस्था का इंजन तेज करने के लिए सरकारें ब्याज दर (जिस दर पर केंद्रीय बैंक से व्यावसायिक बैंकों को कर्ज मिलता है) कम करती हैं. चीन ने भी यही किया. जनवरी में सेंट्रल बैंक ने अपनी ब्याज दरों में कटौती की. लेकिन इसके बावजूद लोग बैंकों से कर्ज लेने के लिए तैयार नहीं हैं.
बिजनेस स्टैंडर्ड ने अपनी रिपोर्ट में पैंथियॉन मैक्रोइक्नॉमिक्स लिमिटेड में चीफ चाइना इक्नॉमिस्ट क्रेग बॉथम के हवाले से बताया है कि यह पूरा मामला लिक्वि़डिटी ट्रैप का है, जहां बड़े पैमाने पर पैसे की लिक्विडिटी मौजूद है, लेकिन कोई इसे लेना नहीं चाहता. ऐसी स्थिति में मॉनेट्री पॉलिसी बहुत कारगर नहीं हो पातीं."
शुक्रवार को चीन के सेंट्रल बैंक द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक, जुलाई में एग्रीगेट फायनेंसिंग में तेज गिरावट आई है, जबकि पैसे की आपूर्ति (एम-2) जुलाई में 12 फीसदी बढ़ी है. मतलब साफ है कि बैंकों के पास लिक्विडिटी है, पैसा है, इसके बावजूद लेनदार नहीं आ रहे हैं.
लगातार नीचे जा रहा चीन का रियल एस्टेट मार्केट- चीन के विकास के लिए बेहद जरूरी सेक्टर
चीन में नए घर पूरे होने से पहले ही बिक जाते हैं, ऐसे में यह डेवल्पर्स और आखिरकार सरकार को अच्छा कैश फ्लो उपलब्ध करवाते हैं. लेकिन बीते एक साल में चीन में यह सेक्टर औंधे मुंह गिर रहा है. जिससे दूसरी सरकारी नीतियों पर भी इसका बुरा असर पड़ सकता है. मतलब इस सेक्टर का 'स्पिलओवर' इफेक्ट होगा.
रियल एस्टेट रिसर्च कंपनी चाइना इंडेक्स एकेडमी के मुताबिक, "100 बड़े शहरों में इस साल जनवरी से जून के बीच के 6 महीनों में नए घरों की बिक्री में 27 फीसदी की कमी आई. जुलाई में जून की तुलना में 13 फीसदी गिरावट आई, जो बीते साल इसी अवधि की तुलना में 27 फीसदी कम है." मिंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक बीते एक साल में कुल संपत्ति बिक्री में करीब 72 फीसदी की कमी आई है.
चूंकि डिवेल्पर्स को ग्राहकों से नगद नहीं मिल पा रहा है, इसलिए कई ने मौजूदा प्रोजेक्ट में निर्माण रोक दिया. जवाब में दूसरे ग्राहकों ने भी करीब 300 अधूरे प्रोजेक्ट में पैसा देने से इंकार कर दिया, जिससे एक तरह की मोर्टगेज स्ट्राइक पैदा हो गई. कुलमिलाकर यह सेक्टर लगातार नीचे जा रहा है.
निक्केई एशिया की रिपोर्ट के मुताबिक इससे स्थानीय सरकारों की भूमि आय में शुरुआती 6 महीनों में करीब 31 फीसदी की कमी आई है. कुल-मिलाकर चीन के डिवेल्पर्स को इस साल करीब 90 बिलियन डॉलर का घाटा लग चुका है.
सैन्य टकराव बढ़ा सकते हैं चीन के लिए मुसीबतें, सर्विस सेक्टर भी ढलान पर
हाल में अमेरिकी स्पीकर नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा के बाद चीन ने काफी आक्रामक रुख अपनाया था और ताइवान के आसपास सैन्य अभ्यास करने की भी घोषणा की थी. ऐसे में अमेरिका समेत कई यूरोपीय देशों की चीन के साथ तनातनी चरम पर पहुंच रही है.
गलवान टकराव के बाद भारत में भी चीन की टेलीकॉम कंपनियों पर सरकारी क्रेकडॉउन जारी है. कुल-मिलाकर दुनिया के बड़े बाजारों में चीन के लिए आगे की राह आसान नहीं दिखाई दे रही है.
इतना ही नहीं चीन में सर्विस सेक्टर भी गिरती हालत में है, जबकि कुल जीडीपी में इसका 50 फीसदी और कुल रोजगार उपलब्ध कराने में 40 फीसदी योगदान है. अब यह देखना होगा कि क्या दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था का गोल्डन ड्रीम अब खात्मे की ओर है या मुश्किलों में एक बार फिर चीन रफ्तार पकड़ने में कामयाब रहेगा.
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