सबसे पहले मैं सभी को नए साल की शुभकामनाएं देता हूं. 2017 बहुत महत्वपूर्ण साल होने जा रहा है. किसी भी लोकतंत्र में आम चुनाव से सालभर पहले वाले वक्त में किसी को नाराज नहीं किया जाता. भारत में 2019 में लोकसभा चुनाव होना है.
मतलब यह है कि 2017 में सरकारें अपने मुख्य एजेंडा पर काम करेंगी. इसमें कोई शक नहीं कि मोदी सरकार भी ऐसी ही कोशिश करेगी. इसमें कुछ गलत भी नहीं है. बस एक ही सवाल मन में घूम रहा है कि मोदी सरकार का मुख्य एजेंडा क्या है? इसके बारे में सिर्फ एक ही इंसान को पता है और वह शख्स खुद प्रधानमंत्री हैं.
नोटबंदी के मामले में हम पहले ही यह देख चुके हैं. नए साल में भी हमें कुछ और चौंकाने वाले फैसलों के लिए तैयार रहना चाहिए.
वैसे मोदी का काम करने का स्टाइल भी यही है. वह अचानक और मनमर्जी से फैसले करते हैं, जबकि दूसरे नेता पहले योजना बनाते हैं, बाद में उसकी घोषणा करते हैं. मोदी पहले ऐलान करते हैं और फिर प्लानिंग करते हैं.
मोदी क्या नहीं करेंगे
भले ही हम यह नहीं जानते कि मोदी क्या करेंगे, लेकिन हमें इतना तो पता है कि वह क्या नहीं करेंगे. इसकी वजह उनका आरएसएस बैकग्राउंड है, जिसकी कोर फिलॉसफी को 1920 और 1930 के दशक में मांजा गया था और जो सत्ता की केंद्रीय भूमिका को मान्यता देती है.
इस मामले में वह कांग्रेस या वामपंथियों से अलग नहीं है. लिहाजा मोदी देश की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह बाजार की ताकतों के भरोसे नहीं छोड़ेंगे. इसलिए निजीकरण को भूल जाइए. प्राइस कंट्रोल भी खत्म नहीं होगा, न ही वह ब्यूरोक्रेसी को कंट्रोल करेंगे. खास तौर पर निचले स्तर पर, क्योंकि उन्हें इनकी प्रशासनिक और राजनीतिक वजहों से जरूरत है. वह उन्हें जिम्मेदार और कम करप्ट बनाने की कोशिश करके नाराज करने का जोखिम नहीं लेंगे.
मोदी इस सच को भी नहीं मानेंगे कि भले ही देश में राजनीतिक तौर पर केंद्र की ताकत ज्यादा है, लेकिन आर्थिक तौर पर वह कमजोर है, क्योंकि इस मामले में राज्यों के पास ज्यादा अधिकार हैं.
देश के हर प्रधानमंत्री को इसका अहसास हो चुका है कि राज्यों के सहयोग के बिना केंद्र बहुत कुछ हासिल नहीं कर सकता. इसका सबसे कड़वा सच यह है कि भले ही पहल केंद्र की हो, फायदा राज्यों को होता है. अखिलेश यादव हाल में इसे साबित कर चुके हैं. मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने भी यूपीए सरकार के खुले बटुए का जमकर फायदा उठाया था.
मोदी जिन चीजों को पॉलिसी समझते हैं, वह उस बारे में अपनी सोच नहीं बदलेंगे. इसलिए वह मामूली समझ रखने वाले भी किसी शख्स से सलाह नहीं करेंगे. सच तो यह है कि वह ऐसे लोगों को पसंद नहीं करते और उन्हें अपमान के साथ बुद्धिजीवी कहते हैं.
मोदी का अपना स्टाइल
जहां तक बीजेपी के अंदर की बात है, तो वहां भी मोदी अपना स्टाइल नहीं बदलेंगे. वह पार्टी नेताओं की विदेश, डिफेंस, सामाजिक और आर्थिक नीतियों से जुड़े बड़े फैसलों पर राय नहीं लेंगे.
दरअसल, जब बात उनके निजी राजनीतिक हित की आती है, तब वह फूंक-फूंककर कदम रखते हैं, लेकिन दूसरों की उन्हें बिल्कुल भी परवाह नहीं है. ईसाइयों और मुसलमानों के बारे में भी मोदी अपना नजरिया नहीं बदलने जा रहे. वह उन्हें हिंदुओं के लिए खतरा मानते हैं.
खुशकिस्मती से उनके चुनावी कैंपेन में इनकी झलक नहीं दिखेगी, क्योंकि वह पश्चिमी देशों का अप्रूवल चाहते हैं. 2005 में अमेरिका ने मोदी को ब्लैकलिस्ट कर दिया था और वह उन्हें वीजा नहीं दे रहा था, वहीं 2015 में भारत यात्रा पर आए बराक ओबामा ने अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव नहीं करने की नसीहत दी थी. इनका मोदी पर गहरा असर हुआ है.
गुजरात हिंदू बहुल राज्य है, लेकिन पूरा देश ऐसा नहीं है. लेकिन मोदी यह नहीं मानेंगे कि गुजरात वाले अंदाज में देश पर राज नहीं किया जा सकता. उसकी एक वजह तो यह है कि आरएसएस जिसे राष्ट्रवाद मानता है, वह किसी विविधता की इजाजत नहीं देता. मोदी ने भारत की सांस्कृतिक विविधता के मामले में सिर्फ एक छूट दी है- वह देशवासियों को भारतीय कहते हैं न कि हिंदू.
हमें क्या उम्मीद करनी चाहिए
31 दिसंबर के बाद मोदी ने जो स्पीच दी हैं, उनसे एक बात स्पष्ट हो गई है कि वह नोटबंदी के राजनीतिक और आर्थिक नतीजों से घबराए हुए हैं. मोदी खुद को टाइमिंग का उस्ताद मानते हैं, लेकिन डिमॉनेटाइजेशन पर उनका हिसाब गलत साबित हुआ. इसीलिए उनके वित्तमंत्री को बार-बार कहना पड़ा कि किसी चीज की परफेक्ट टाइमिंग नहीं होती.
मोदी नोटबंदी के पॉलिटिकल डैमेज को कंट्रोल करने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने लोगों के सामने हड्डी के टुकड़े डालने शुरू कर दिए हैं. मोदी को उम्मीद है कि जिस कुत्ते के मुंह में हड्डी हो, वह नहीं भौंकेगा.
2017 में ऐसी और हड्डियां उछाली जा सकती हैं. यूपी इलेक्शन से पता चलेगा कि मोदी गलत हैं या सही. हालांकि अभी तो लग रहा है कि वह गलत हैं.
ये भी पढ़ें
इस बार बजट में टैक्स रेट कम करने का साहस दिखलाएंगे FM जेटली?
(लेखक आर्थिक-राजनीतिक मुद्दों पर लिखने वाले वरिष्ठ स्तंभकार हैं. इस आलेख में प्रकाशित विचार उनके अपने हैं. आलेख के विचारों में क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)