बीस जनवरी को सिर्फ अमेरिका के लिए नहीं, पूरी दुनिया के लिए ओबामा 'युग' खत्म हुआ है और ट्रम्प 'काल' शुरू हुआ है.
एेसा कब देखने को मिलता है कि जानेवाला राष्ट्रपति जाते वक्त विजेता की तरह दिखे और नया राष्ट्रपति पराजित- लूजर और डिफेंसिव भाव में नजर आए. ओबामा के विदाई भाषण को सुनकर दुनियाभर में न जाने कितनी आंखें नम हुईं और डोनाल्ड के डर से न जाने कितने लोग सहमे हुए हैं.
ओबामा के पास एक व्यापक विश्व दृष्टि है, इंसानियत और बराबरी पर यकीन है. ट्रम्प आत्ममुग्ध हैं, व्यापक जनहित की समझ से परे, सौदेबाजी के माहिर हैं.
चुनाव जीतने के लिए जो असंभव वादे उन्होंने किए, उन्हें छोड़ भी दें, तब भी अपनी धमकियों और वादों को थोड़ा भी अंजाम दिया, तो क्या-क्या हो सकता है. सिर्फ भारत की बात करते हैं.
ट्रम्प विदेश व्यापार पर पाबंदियां लगाएंगे. हमारा एक्सपोर्ट गिरेगा. रुपया कमजोर हो सकता है. वीजा देना मुश्किल कर देंगे यानी अमेरिका में नौकरियां कम होंगी. आईटी और फार्मा सेक्टर के लिए ट्रम्प की नीतियां हमारे लिए प्रतिकूल हैं.
थोड़ा आगे चल कर विदेशी पूंजी निवेश पर असर पड़ सकता है. उनकी नीतियां एेसी हो सकती हैं कि शेयर बाजार में अमेरिकी एफआईआई निवेशक पैसा वापस निकाल सकते हैं. यानी इमर्जिंग बाजारों के लिए ट्रम्प बुरी खबर हैं.
ट्रम्प के पद संभालने से ठीक पहले अमेरिकी शेयरों और डॉलर ने छलांग लगाई है, जो आने वाले दिनों का अंदाज दे रहे हैं.
पैसों और पब्लिसिटी की अकड़ में जीने वाले ट्रम्प के पास अब ताकत भी जबरदस्त है- रिपब्लिकन पार्टी का हाउस और सीनेट में बहुमत है. वो हंगामा बरपाने के कायल हैं.
अपनी दो पूर्व पत्नियों- मौजूदा पत्नी, पूरे कुटुंब और मित्र मंडली की मौजूदगी में शपथ लेने के पहले उनके बोल पर गौर कीजिए- इट ऑल बिगिन्स टुडे- आज से खेल शुरू! उनके हावभाव, उनकी अजीब सी भाषा बताती है कि उनकी शो बाजी देखने लायक होने जा रही है.
आज जब उनके शपथ समारोह की तस्वीरें देखते वक्त वो तमाम लोग बेचैनी महसूस कर रहे हैं, जो अमेरिका के उदार लोकतंत्र, हरेक इंसान की बराबरी, इंसाफ, कानून के राज और आधुनिकता के सफर को और आगे जाते हुए देखना चाहते हैं. हैरत है कि अमेरिका की एक आबादी ने कैसी नासमझ नाराजगी में पूरे सतरंगे समाज को निगेटिव, कलुषित काल में धकेला है.
उनके आलोचक कहते हैं कि ट्रम्प हमेशा तमतमाए रहते हैं, उनकी जुबान उनकी बौद्धिक क्षमता का सबूत दे देती है. उनका कारोबारी इतिहास घटिया रहा है. उनके सिर्फ हाथ छोटे नहीं हैं, दिल और भी तंग है और शख्स के हाथ में अमेरिका का न्यूक्लियर बटन है और जो परमाणु बमों का जखीरा और बढ़ाना चाहता है.
एक और ट्रम्प हैं जो छिपाए नहीं छिपते. मीडिया से क्रोध को छोड़िए, अपनी ही इंटेलिजेंस एजेंसी से उनकी लड़ाई देखिए. इसलिए ये सवाल उठे हैं कि ट्रम्प को रशिया अपना रंगीला रतन क्यों मानता है? ये रंगीला रतन हमेशा इतना खिसियाया क्यों रहता है?
चूंकि ओबामा युग खत्म हुआ है और ट्रम्प काल शुरू हुआ है, एेसे में डर के आगे आशा की दो किरणे हैं तो वो ये कि अमेरिकी सत्ता प्रतिष्ठान एक अलग ही चीज है. इसकी खास बात ये है कि ये चाहे तो किसी बौराए राष्ट्रपति की लगाम कस सकता है.
ये सत्ता प्रतिष्ठान परिपक्व संस्थाओं से आता है. दूसरी किरण है कि सिटिजन ओबामा एक नई भूमिका में दिख सकते हैं, जो पब्लिक ओपिनियन को काफी प्रभावित कर सकते हैं. इन्हीं दो किरणों के सहारे जमाना इस काल को भी झेल लेगा.
तब तक के लिए विश्व नागरिक होने के नाते दो खास पलों की ऊर्जा को जिंदा रखिए - एक जब अश्वेत ओबामा शिकागो में अपनी जीत का भाषण दे रहे थे, तब अभिमान से चमकी आपकी आंखों में खुशी के आंसू थे. और दूसरा पल वो जब गरिमा से भरे स्टेट्समैन ओबामा का विदाई भाषण सुनते वक्त आभार से भरी आपकी आंखें नम हो गई थीं.
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