दिल्ली में एमसीडी चुनाव बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण हो गए हैं. अब ये सिर्फ एक स्थानीय निकाय चुनाव नहीं रह गए हैं. 2019 के आम चुनाव में नरेंद्र मोदी के संभावित प्रतिद्वंद्वी अरविंद केजरीवाल के लिए खुद को साबित करने का यह अंतिम मौका है.
चुनाव में जीते, तो पंजाब और गोवा की हार की धूल झाड़कर आगे की लड़ाई के लिए फिर से ताकत मिलेगी. हार दिल्ली में उनकी सरकार के खात्मे का रास्ता साफ कर सकती है.
संकट में आप और केजरीवाल
आप सरकार को निपटाने के लिए बड़ी सफाई से मैदान तैयार किया गया है. लाभ का पद मामले में इसके 67 में से 21 विधायकों पर सदस्यता खत्म किए जाने की तलवार लटक रही है. यह मामला चुनाव आयोग के पास है. आयोग ने फैसला सुरक्षित कर लिया है और कभी भी इसका ऐलान कर सकता है.
दिल्ली पुलिस कई अन्य आपराधिक मामलों में 14 अन्य विधायकों के खिलाफ जांच कर रही है और ये नेता फिलहाल जमानत पर चल रहे हैं. भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन सीबीआई के निशाने पर हैं. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल खुद भी वित्तमंत्री अरुण जेटली की ओर से दायर आपराधिक और दीवानी अवमानना मुकदमे का सामना कर रहे हैं. अगर वह आपराधिक अवमानना केस हार जाते हैं, तो उन्हें जेल भी जाना पड़ सकता है. उनके लिए कई और भी जंजाल हैं.
आप द्वारा अवैध तरीके से विज्ञापन पर खर्च के लिए उप राज्यपाल और सुप्रीम कोर्ट की तरफ से 97 करोड़ रुपये की भरपाई का आदेश दिया गया है.
शुंगलू कमेटी ने जमीन के अवैध आवंटन समेत कई मामलों में गड़बड़ी के लिए केजरीवाल सरकार को दोषी ठहराया है. कमेटी के उजागर किए चार मामलों की सीबीआई पहले ही जांच कर रही है. इसके साथ ही केजरीवाल कैबिनेट के कई मंत्रियों के खिलाफ भाई-भतीजावाद और विदेशी दौरों को लेकर भी आरोप हैं.
बीजेपी और कांग्रेस आप को छोड़ेंगी नहीं. विवाद मानो केजरीवाल का दूसरा नाम है, लेकिन 2015 के विधानसभा चुनाव में धमाकेदार जीत और पंजाब और गोवा विधानसभा चुनाव से पहले बनी हवा में ये बातें भुला दी गईं. केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी ने कांग्रेस की शह पाकर केजरीवाल पर मुकदमों और आरोपों की झड़ी लगा दी और उनको दबोचने में जुट गई.
'तलवार लटकने' का मुहावरा केजरीवाल के लिए एक आशंका बन चुका है. केजरीवाल के विरोधी जानते हैं कि केजरीवाल की लोकप्रियता उन पर हमेशा भारी पड़ेगी.
हालांकि ऊंची उम्मीदें जगाने के बाद गोवा में सफाया हो जाने और पंजाब में खराब प्रदर्शन से केजरीवाल का सुरक्षा कवच हट गया है. अब वह खुले में हैं और हर किस्म के सवालों की बौछार का उन्हें सामना करना पड़ेगा.
ऐसे संकेत हैं कि अगर केजरीवाल एमसीडी चुनाव हार जाते हैं, तो केंद्र सरकार उनकी सरकार का पत्ता साफ करने की तैयारी कर रही है. यह बात गांठ बांध लीजिये कि कांग्रेस की तरफ से एक फुसफुसाहट भी नहीं होगी, क्योंकि जिस आसानी से आप ने दिल्ली में देश की सबसे पुरानी पार्टी को सत्ता से बेदखल कर दिया था, उसे देखते हुए यह आप को अपने अस्तित्व के लिए गंभीर खतरा मानती है.
बीजेपी ने फिर अपनाया गुजराती फॉर्मूला
केजरीवाल को सिर्फ एक ही चीज बचा सकती है, और वो है एमसीडी चुनाव में दमदार जीत. यह दिल्ली के लोगों में उनकी लोकप्रियता को बहाल करेगी और संभवतः आने वाले हमलों से भी बचाएगी. इस तरह स्थानीय निकाय चुनाव केजरीवाल के लिए अस्तित्व की लड़ाई बन गए हैं. उन्हें दिल्ली में अपनी सरकार बचाने के लिए हर हाल में ये चुनाव जीतना ही होगा.
बीजेपी ने उत्तर प्रदेश की तरह ही दिल्ली में भी भारी बाहुबल और धनबल झोंककर दांव बहुत ऊंचे कर दिए हैं. चुनाव प्रचार में इसने स्टार प्रचारकों की जो लिस्ट जारी की है, उसकी शुरुआत प्रधानमंत्री और अमित शाह के नामों से होती है और जिसमें तकरीबन सारे कैबिनेट मंत्री शामिल हैं.
बीजेपी ने सारे मौजूदा पार्षदों को बदल दिया और नए प्रत्याशियों के चुनाव के लिए साक्षात्कार की एक गहन प्रक्रिया चली. यह गुजरात मॉडल है, जिसका इस्तेमाल मोदी ने 2011 में मुख्यमंत्री रहने के दौरान अपने गृह राज्य में स्थानीय निकाय चुनाव में किया था और जीत हासिल की थी. पार्टी ने बीजेपी का झंडा लहराते भगवाधारी युवाओं के मोटरसाइकिल दस्ते भी सड़कों पर उतारे हैं. यह भी गुजरात में सफलतापूर्वक इस्तेमाल की गई रणनीति है, लेकिन इससे पहले यह दिल्ली में कभी नहीं देखी गई थी. हालांकि बहुत साफ नहीं है कि ये दस्ते लोगों को भयभीत कर रहे हैं या बीजेपी के लिए समर्थन जुटा रहे हैं.
एमसीडी चुनाव: केजरीवाल पर जनमत संग्रह!
बीजेपी और कांग्रेस, दोनों पार्टियां जिन चंद चीजों पर एक राय हैं, उनमें केजरीवाल भी एक हैं. दोनों उनसे डरती हैं और उनकी गैरपरंपरागत राजनीति के तरीके से असुरक्षित महसूस करती हैं. अगर आप पंजाब में जीत गई होती, तो केजरीवाल का अगला निशाना गुजरात होता, जहां साल के अंत में चुनाव होने है.
केजरीवाल पहले से ही पाटीदार आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल के संपर्क में हैं और मोदी के गृह क्षेत्र में बीजेपी के वर्चस्व को वास्तविक चुनौती देते लग रहे हैं. ध्यान देने की बात है कि गुजरात में केजरीवाल के अभियान की इमारत कांग्रेस के खंडहरों पर ही खड़ी की जानी है.
केजरीवाल सरकार का भविष्य 23 अप्रैल को तय होगा, जब दिल्ली की जनता एमसीडी के लिए वोट डालेगी. ये हमारी बदकिस्मती है कि जो चुनाव सफाई, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे मुद्दे पर लड़ा जाना चाहिए था, वह केजरीवाल पर जनमत संग्रह बन गया है. दिल्ली में इससे उनकी सरकार का जीवनकाल तय होगा.
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(अराति आर. जेरथ जाने-माने जर्नलिस्ट हैं. इस आलेख में प्रकाशित विचार उनके अपने हैं. आलेख के विचारों में क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
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