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सरकार! क्‍या लालबत्ती हटाने भर से खत्‍म हो जाएगा VIP कल्‍चर?

इस फैसले से आम पब्‍ल‍िक को कुछ-कुछ वैसा ही सुकून मिला होगा, जैसा नोटबंदी की वजह से अमीरों के लाखों-करोड़ों डूबने से.

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देश के तमाम वीवीआईपी की गाड़ियों से लालबत्ती हटाए जाने के फैसले से आम पब्‍ल‍िक को कुछ-कुछ वैसा ही सुकून मिला होगा, जैसा नोटबंदी की वजह से अमीरों के लाखों-करोड़ों डूबने से. फर्क केवल इतना है कि इस बार आम लोगों को किसी लाइन में लगने की जरूरत नहीं है. जो क्‍लास पहले से 'बेकार' हो, उनकी लाल-नीली बत्ती छि‍नने का सवाल कहां उठता है?

तब पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि था कि नोटबंदी की कवायद इसलिए की जा रही है कि बाद में किसी को लाइन में नहीं लगना पड़े, पर आखिर वो दिन आएगा कब? वीवीआईपी की गाड़ि‍यों से लालबत्ती हटने के बाद भी कई सवाल अपनी जगह बने हुए हैं. इन पर आगे चर्चा की गई है.

लालबत्ती हटेगी, पर भारी-भरकम काफिले का क्‍या?

देश के हुक्‍मरानों और नौकरशाहों की गाड़ियों से लालबत्ती उतर जाने भर से वीआईपी कल्‍चर खत्‍म हो जाएगा, ये बात शायद ही किसी को हजम हो. सवाल केवल लालबत्ती का नहीं, बल्‍कि उस भारी-भरकम काफिले का भी है, जो हर वक्‍त वीवीआईपी के साथ चलता है और बाकी लोगों की सुरक्षा शक के दायरे में घि‍रती है.

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आम पब्‍ल‍िक की सुरक्षा के नाम पर पुलिस हमेशा यही दावा करती है, सदैव आपके साथ. लेकिन हकीकत यह है कि पुलिस और सुरक्षा के अन्‍य कई दस्‍ते वीवीआईपी की हिफाजत में तैनात नजर आते हैं. X, Y, Z, Z+ कैटेगरी की सिक्‍योरिटी से ही वे तो आम लोगों को अपनी धमक और रसूख दिखलाते हैं.

नतीजा...आधे इधर, आधे उधर, बाकी पब्‍ल‍िक के साथ. क्‍या ये उचित नहीं होगा कि इस तरह की सिक्‍योरिटी में बड़े पैमाने पर कटौती हो और उसका इस्‍तेमाल आम लोगों की सुरक्षा में हो?

लगता है, कोई वीआईपी जाने वाला है...

अब सड़कों का हाल देखते हैं. कोई दफ्तर के लिए लेट हो रहा है, कोई अपने परिजन को इमरजेंसी वॉर्ड में दाखिल करवाने के लिए लेट हो रहा है. सिक्‍योरिटी टाइट है और सड़कों पर दोनों तरफ ट्रैफिक बंद. किसी को पक्‍के तौर पर कुछ नहीं मालूम, लेकिन हर किसी को ये बात पक्‍के तौर पर मालूम है कि जरूर इस रास्‍ते से कोई न कोई वीआईपी गुजरने वाला है.

इस फैसले से आम पब्‍ल‍िक को कुछ-कुछ वैसा ही सुकून मिला होगा, जैसा नोटबंदी की वजह से अमीरों के लाखों-करोड़ों डूबने से.
(फोटो: iStock)

कोई काफी जद्दोजहद के बाद वहां पहुंच भी जाए, जहां पहुंचना है, फिर लिफ्ट में भी आम और खास का चक्‍कर. खास वाली लिफ्ट में आम नहीं जा सकता. तब कानों में अदनान सामी की आवाज गूंजती है, 'मुझको भी कोई लिफ्ट करा दे...'

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टिकट चाहिए, VIP कोटा से दिलवा देंगे

जिस तेजी से हमारी ट्रेनों पर यात्र‍ियों का दबाव बढ़ रहा है, उस अनुपात में ट्रेनों की संख्‍या बढ़ाया जाना शायद मुमकिन नहीं. नतीजा सबके सामने है. गर्मी में तापमान चढ़ते ही रेल टिकट के रिजर्वेशन के लिए मारामारी तेज होने लगती है. छोटी-बड़ी छुट्टियों के मौकों पर भी रेल टिकट आसानी से नहीं मिलता.

टिकटों का एक बड़ा हिस्‍सा वीआईपी के लिए रिजर्व होता है. हद देखिए, किसी दलाल से बात कीजिए, तो वो भी दोगुनी-तिगुनी रकम लेकर वीआईपी कोटा से ही टिकट दिलवाने की बात करता है!

ये कोठी, ये बंगले, मेरे काम के नहीं...

किसी शहर में आम पब्‍ल‍िक तो किराए के एक अच्‍छे कमरे के लिए भी तरसती है, जबकि वीवीआईपी के लिए बड़े-बड़े बंगले होते हैं. कुछ तो महानगरों के बीच भी कई-कई एकड़ में फैले होते हैं. इतने बड़े कि इनमें एक छोटी-मोटी बस्‍ती ही समा जाए. चमकदार नेमप्‍लेट के बिना भी लोग आसानी से समझ जाएं कि ये तो किसी वीआईपी का ही है.

कई शहरों में ये बंगले घंटाघर के बिलकुल पास वाले चौक पर होते हैं... और आम लोगों के हाथ आता है सिर्फ घंटा, जिससे वे अपना वक्‍त और अपने देश की तकदीर बदलने की आस लगाए होते हैं.

इनमें कई चीजें तो ऐसी हैं, जो वीवीआईपी और आम लोगों के बीच न केवल बड़ी खाई पैदा करती हैं, बल्‍कि एक आम आदमी की रोजमर्रा की जिंदगी में सीधे तौर पर दखल भी देती हैं.

... तो सरकार, सचमुच का वीवीआईपी कल्‍चर खत्‍म करने के बारे में आपका क्‍या खयाल है? पहला कदम तो आपने बहुत अच्‍छा उठाया है, अगर आगे भी इस दिशा में तेजी से बढ़ेंगे, तो देश सुधरेगा और आपको यश भी मिलेगा.

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