ADVERTISEMENTREMOVE AD

उत्कल एक्सप्रेस के भीतर के वो ‘लम्हे’ जो बस एक पल में मिट गए

मुजफ्फरनगर रेल हादसे से ठीक पहले क्या होगा ट्रेन के भीतर का मंजर

Updated
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

हरिद्वार की तरफ रफ्तार से बढ़ रही उत्कल एक्सप्रेस के भीतर क्या चल रहा होगा जब शनिवार शाम 5 बजकर 46 मिनट की उस मनहूस घड़ी ने दस्तक दी होगी:

एक मां ने ऊपर की बर्थ से झांकते 6 साल के बच्चे को ताकीद की होगी कि वो ऐसा न करे, गिर जाएगा. कितना लाड़ छिपा होगा, कितनी फिक्र, उस ताकीद में. शाम के नाश्ते के लिए बांध कर लाई गई पूड़ियों और ताजा अचार का डिब्बा खुला होगा तो बोगी महक उठी होगी.

किसी पिता ने वो मुड़ा-तुड़ा कागज फिर निकाला होगा जिसमें बेटी की शादी में बुलाए जाने वाले मेहमानों के नाम लिखे होंगे. उन्होंने रेल में खाली बैठे-बैठे 7 नाम और जोड़ कर, कुछ सोचते हुए ऊपर से 11वां नाम काट दिया होगा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

किसी भाई ने छोटे भाई को हरिद्वार में फोन करके बताया होगा कि मां के इलाज पर होने वाले खर्च की चिंता न करे, वो पैसे लेकर पहुंच रहा है.

4 साल की छुटकी ने दीवार पर चिपक कर कलाबाजी दिखाते स्पाइडरमैन को खरीदने की जिद की होगी. मां ने उसे डांट कर चुप कराया होगा तो उसने बगल वाली सीट पर स्पाइडरमैन से खेल रहे बच्चे को इस नजर से देखा होगा कि एक बार उसे भी खेलने का मौका मिले.

खिड़की वाली सीट को लेकर दो भाई-बहन फिर झगड़े होंगे. सीट नंबर 45 पर वो नौजवान अपना व्हॉट्सएप मैसेज पढ़ कर मुस्कुराया होगा. शाम का वक्त था. चा...चा...गरम चा करते कुछ चाय वाले जरूर गुजर रहे होंगे.

यह भी पढ़ें- मुजफ्फरनगर रेल हादसा: 23 की मौत, 65 घायल

साइड अपर पर बैठे भाई साहब उसी समय चाय के लिए नीचे उतरे होंगे. चाय के बहाने कितने संवादों ने एक सीट से दूसरी सीट और एक मन से दूसरे मन की दूरी तय की होगी. साइड अपर वाले भाई को पता लगा होगा कि साइड लोअर वाले भी उन्हीं के शहर के रहने वाले हैं. उनके मोहल्ले से पिछली गली में.

एक साहब बार-बार पूछ रहे होंगे कि अगला स्टेशन कौन सा है? 78 साल के एक बुजर्ग बार-बार बलगम थूकने के लिए वॉश बेसिन जाते थक गए होंगे और इस बार रेल की 'बहुपयोगी' खिड़की का फायदा उठाया होगा. मुजफ्फरनगर स्टेशन पर उतरने वाली सवारियों ने सामान बांध लिया होगा.

0
जिन साहब को बड़ी देर से अपनी दूसरी चप्पल दिखाई नहीं दी, उन्होंने पांचवीं बार सीट के नीचे मुआयना करके झुंझलाहट दिखाई होगी. स्मार्टफोन पर नजरें गढ़ाए, ईयरफोन खोंसे एक युवा को देखते हुए दो अंकलों ने नए जमाने और पुराने जमाने पर बहस की होगी. उस युवा ने बीच में वीडियो पॉज कर वो सारी बहस सुन ली होगी पर प्रतिक्रिया नहीं दी होगी.

दोपहर के खाने के बाद मां से सटकर सोया 5 साल का बच्चा जागा होगा तो मां ने चिढ़ाते हुए कहा होगा कि सुबह हो गई है. उसने आंखें मिचमिचाकर खिड़की से बाहर देखा होगा.

यह भी पढ़ें-रेलवे ट्रैक का अत्यधिक इस्तेमाल बना रहा है यात्रा को असुरक्षित

ADVERTISEMENTREMOVE AD

फिर घड़ी ने 5 बजकर 46 मिनट बजाए होंगे. मुजफ्फरनगर के पास खतौली में उत्कल पटरी से उतर गई.

उस बच्चे की सुबह अब कभी नहीं आएगी. न जाने कितने सवेरे, कितनी जिंदगियां लील गया ये रेल हादसा. मौत भले आंकड़ों का खेल होती हो, जिंदा लोग आंकड़े नहीं होते वो धड़कते हुए सपने होते हैं, उम्मीदें होते हैं. वो जिंदा होते हैं!

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×