सबसे पहले बता दूं कि मुझे बाबाओं में कोई दिलचस्पी नहीं है. लेकिन पत्रकार हूं, तो खबरों को ट्रैक करना पड़ता है. राम रहीम के बारे में पिछले दो दिनों में काफी पढ़ना पड़ा. न चाहते हुए भी ऐसा करना पड़ा. एक हफ्ते से राम रहीम सुर्खियों में रहे हैं, मतलब ट्रेंड कर रहे हैं. और ट्रेंड के साथ बहना तो हमारी जाति की मजबूरी है.
कायदे से लिखना चाहिए कि ‘बाबा’ सुर्खियों में रहा है, क्योंकि ‘बाबा’ पर तो आरोप साबित हो चुका है. लेकिन एक दोषी ‘बाबा’ के लिए मैं अपनी मर्यादा क्यों तोड़ूं?
हर कहानी पढ़ने के बाद मुझे यही लगा कि वो कोई मामूली ‘बाबा’ नहीं हैं. ‘बाबा’ ने नियमों की कभी परवाह नहीं की. कभी भी फेयर ऑर फॉल के भेद को नहीं समझा. खुद ही नियम बनाए और दूसरों को उसे मानने के लिए मजबूर किया. और फॉल प्ले को छुपाने के लिए एक नया तिलिस्म. दुनिया का कोई भी काम ऐसा नहीं, जो उसने किया नहीं. शायद कोई ऐसा सगा नहीं, जिसको उसने ठगा नहीं. लेकिन जलवा फिर भी जस का तस.
कमाई का सोर्स भी कुबेर के भंडार की तरह. फिल्म प्रोडक्शन, खेल प्रतियोगिता, बड़े-बड़े आश्रम, तथाकथित चैरिटी का काम, हजारों कर्मचारियों की फौज, महंगी गाड़ियां-- सबमें पैसे खर्च होते हैं. ऐसा कुबेर का खजाना इनके हाथ कैसे लगा? इसका कोई जबाव नहीं और न ही किसी को इसमें दिलचस्पी है.
राजनीतिक कनेक्शन भी सॉलिड और फॉलोवर्स की बड़ी फौज. ताकत और कुबेर के खजाना की बात इसी से जुड़ी है. लेकिन मेरा सवाल थोड़ा अलग है. इस तरह के तिलस्मी ‘बाबा’ के अनुयायी बन कैसे जानते हैं? धर्म का मामला ये हो नहीं सकता. धर्म मॉब नहीं हो सकता. वो किसी को डरा नहीं सकता है. उसका भीड़तंत्र से वास्ता नहीं हो सकता है.
किसी मायावी के धार्मिक फॉलोअर हो ही नहीं सकते. यह पूरी तरह अजीब किस्म का रॉबिन हुडिज्म है.
दूसरे शब्दों में कहें, तो 100 को सताओ और 10 को पटाओ. और उस दस के जरिए 100 को इतना डराओ कि वो 100 अपनी औकात ही भूल जाए और 10 के आदेश का डर से पालन करता रहे. इस भ्रम में कि वो दस नहीं, 10,000 हैं. उसी दस चेलों की बदौलत दुनिया को बताते रहना कि हमारे तो करोड़ों फॉलोअर हैं.
मतलब कि पूरी तरह से झूठ का तिलिस्म. इस अजीब तरीके के राॉबिन हुडिज्म ने प्रशासन को ठेंगा दिखाया है, न्यायालयों को ब्लैकमैल किया है, नेताओं को फर्जी वोट का भरोसा दिलाकर भरमाया है. दुर्भाग्य की बात है कि ऐसी वीभत्सता रोकने के लिए हम इंस्टीट्यूशनल स्ट्रक्चर नहीं बना नहीं पाए हैं.
इनका गुमान किसी एक दबंग अधिकारी या किसी एक साहसी जज ने तोड़ा है और उसके बाद काला साम्राज्य ताश के पत्ते के तरह ढहा है. उम्मीद है कि इस ‘बाबा’ के मामले में ही ऐसा ही होगा.
लेकिन फिलहाल मुझे सबसे ज्यादा दुख इस बात पर है कि जिस न्यू इंडिया के हम सपने बुनने में लगे हैं, उसमें एक दिन ऐसा भी आता है जब एक ‘बाबा’ दो राज्यों की कानून-व्यवस्था की धज्जी उड़ा जाता है. लोगों की जानें जाती हैं, कर्फ्यू लग जाते हैं. सारी प्लानिंग धरी की धरी रह जाती है. करोड़ों लोग नॉर्मल जिंदगी के लिए तरसते रहते हैं और हम सबकुछ फिर भी सहते रहते हैं. हाय रे ‘बाबा’ और हाय रे हमारी लाचारी.
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