बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ उनकी पार्टी जेडीयू विधायकों, सांसदों और जिला पदाधिकारियों के साथ सोमवार की मीटिंग अहम मानी जा रही थी.
मीटिंग में जेडीयू ने लालू प्रसाद की आरजेडी को 4 दिनों का अल्टीमेटम दिया है. जेडीयू का कहना है कि 4 दिनों के बाद फिर से पार्टी मीटिंग बुलाई जाएगी. तेजस्वी यादव के इस्तीफे पर सीधी बात या फैसला न करते हुए नीतीश की पार्टी के दिएअल्टीमेटम के कई मायने निकाले जा सकते हैं.
अपनी इमेज का बचाव
नीतीश कुमार ने कहा है कि भ्रष्टाचार पर उन्होंने हमेशा जीरो टोलरेंस की नीति अपनाई है. ऐसे में जेडीयू की ओर से मामले पर चुप्पी तोड़ना और फैसला लेने के लिए आरजेडी को और समय देना उनके एक्शन मोड में जाने का हिस्सा ही माना जाना चाहिए.
फैसला नहीं लिए जाने तक कयासों का दौर जारी रहेगा. महागठबंधन में एकजुटता वाले बयान को भी जारी रखा जा सकता है.
मजबूर लालू की मजबूरी और बढ़ेगी
ताबड़तोड़ छापेमारी और आरोपों को झेल रहे लालू यादव की मजबूरी और बढ़ेगी. फिलहाल, डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार के मामले में एफआईआर दर्ज हुआ है.
संभव है कि लालू को कांप्रोमाइज फार्मूला के तहत फैसला लेना पड़े. चार्जशीट दायर होने के बाद लालू खुद तेजस्वी को इस्तीफा देने का आदेश दे दें. ऐसे में अल्टीमेटम देते रहने से प्रेशर बढ़ाने और खुद लालू को फैसला लेने पर मजबूर करने का स्मार्ट तरीका काम कर सकता है.
महागठबंधन पर खतरा
पहले से ही बीजेपी के साथ कई मुद्दों पर समर्थन करने और पाने वाली नीतीश सरकार एक्शन मोड में जाती नजर आ रही है. बीजेपी के कार्यकाल में लालू का घेराव और नीतीश का झुकाव नजर आना महागठबंधन को खतरे में डालता नजर आ ही रहा है.
जोड़-तोड़ की राजनीति
महागठबंधन टूटा तो? फिर से बिहार में जोड़-तोड़ का खेल शुरू हो सकता है. इसके लिए दो विकल्प तैयार हो सकते हैं. आंकड़ों के खेल पर नजर डालना जरूरी है. फिलहाल जेडीयू के पास राज्य में 71 सीटें हैं. ऐसे में 122 का आंकड़ा पाने के लिए उसे 51 और सीटों का जुगाड़ करना पड़ेगा. अगर जेडीयू आरजेडी या कांग्रेस को अलग-थलग करने की राजनीति शुरू करे तो मुश्किल होगी ऐसे में बेहतर है कि वो आसानी से बीजेपी के साथ जाना पसंद करे.
अगर आरजेडी(80 सीटें) और कांग्रेस(27 सीटें) जोड़तोड़ करने की कोशिश करे तो संभव है कि 15 और सीट दोनों पार्टियां मिलकर जोड़ लें. लेकिन क्या ऐसी सरकार चल पाएगी? वो भी तब जब केंद्र की सरकार की किसी नए गठबंधन पर कड़ी नजर होगी. वैसे भी नीतीश की छवि वाले नेता को इतनी आसानी से रिप्लेस करना संभव नहीं होगा.
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