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पंजाब की परंपरा टूटी, AAP की ग्रैंड एंट्री के साथ तीसरी पार्टी की शुरू परिपाटी

Punjab में AAP के मुख्यमंत्री पद के दावेदार भगवंत मान के घर के सामने ढोल नगाड़े और भांगड़े के हुल्कारे लगने लगे हैं.

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देश के पांच राज्यों में के चुनावों की मतगणना चल रही है. शुरुआती रुझाने में ही पंजाब में आम आदमी पार्टी (AAP) बहुमत से आगे निकलती दिखाई देने लगी. सुबह 10 बजे के करीब पार्टी के मुख्यमंत्री पद के दावेदार भगवत मान के घर के सामने ढोल नगाड़े और भांगड़े के हुल्कारे लगने लगे. रुझानों में लगातार बढ़त बनाए रखने पर मान के घर में मिठाइयां भी तैयार होने लगी. ये सारी तैयारियां साफ कर रही हैं कि पंजाब में आप साफ बहुमत लेकर आगे निकल सकती है.

रुझानों में ही सही लेकिन इसने पंजाब की दो पार्टियों के बीच की लड़ाई की उस परिपाटी को भी न केवल तोड़ा है बल्कि प्रदेश में राजनीतिक समीकरण को नए सिरे से गढ़ने का भी काम किया है. अगर रुझानों का ट्रेंड इसी तरह कायम रहा तो पंजाब में तीसरी पार्टी की ग्रैंड एंट्री तय है. जो एक विशेष धार्मिक पहचान रखने वाले राज्य में तीसरी पार्टी की परिपाटी शुरू हो रही है.
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रुझानों में इतना फर्क कैसे

आप कैम्प

दरअसल चुनाव, फिर चाहे किसी पार्टी को लेकर हो या फिर नए रिश्ते जोड़ने की बात हो, हर कोई स्टेबिलिटी यानी स्थिरता और किए गए वादों पर सबसे ज्यादा गौर करता है. जहां विवाद हों, झगड़े हों, वर्चस्व की लड़ाई हो, ऐसे विकल्पों को मानसिक तौर से न तो जनता अपनाने के लिए राजी होती है और न ही पार्टी कार्यकर्ता, मतों का विभाजन बहुमत का दुश्मन है. जाहिर है यही लॉजिक शायद पंजाब के लोगों ने वोट डालते समय ध्यान में रखा होगा.

दोपहर 12 बजे तक रुझानों में 117 सीटों वाले पंजाब विधानसभा चुनाव में आप 80-90 सीटों के साथ आगे चल रही है. यही नहीं आम आदमी पार्टी (AAP) जिन वादों के बल पर चुनाव लड़ रही थी और महंगाई की चारों तरफ मार झेल रही जनता, जिस तौर भी सही लेकिन राहत की रोशनी की तलाश में थी, और ये रोशनी आप ने उन्हें दिखाई थी.

सस्ती बिजली, स्टुडेंट्स को लैपटॉप, दलित उपमुख्यमंत्री से लेकर प्रॉपर्टी टैक्स में छूट जैसे वादों पर जनता ने ऐतबार कर लिया. महिलाओं को नौकरी में 33 फीसदी आरक्षण और 400 युनिट तक बिजली बिल की दरें आधी करने के वादों ने वोट जुटाने में बड़ा रोल अदा किया. वादों में ही सही लेकिन मतदाता राहत की गुंजाइश की सरगर्मी से तलाश कर रहे थे. दिल्ली के सुशासन के तौर तरीके भी तो आखिर इसकी बड़ी गारंटी थे.

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कांग्रेस कैम्प

वहीं दूसरी ओर पंजाब कांग्रेस में चुनाव के अंतिम हफ्तों तक भारी उठा पटक चलती रही. तत्कालीन मुख्यमंत्री चन्नी और नवजोत सिंह सिद्धू की खींचातान का खुला तमाशा जनता देख रही थी. सिद्धू के सीएम को कमजोर बताने जैसे बयानों ने दलित वोट बैंक पर विपरीत असर डाला. पार्टी आलाकमान ने भी इस मसले को आखरी तक उलझाए रखा. क्लीन सीएम कैंडिडेट तो दिया, लेकिन फूट को रोकने के लिए मजबूत डैमेज कंट्रोल के उपाय पार्टी की ओर से होते नहीं दिखाई दिए.

जाहिर है इन सारी चीजों को भी जनता लगातार ऑबजर्व कर रही थी. 13 वादों के घोषणा पत्र में मुफ्त सिलेंडर, एक लाख लोगों को शुरुआती दौर में नौकरी और मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएं देना शामिल था. समाचार वेबसाइट टीवी9 ने सूत्रों के हवाले से तब लिखा था कि चुनाव प्रचार खत्म होने के चंद मिनट पहले घोषणापत्र में सिद्धू की बातों को शामिल कर विवाद खत्म करने की कोशिश की गई थी. आलम यह रहा कि सुबह 11 बजे जारी होने वाले घोषणापत्र में सिद्धू के पंजाब मॉडल को शामिल करने की वजह से उसे शाम 4 बजे देरी के साथ आनन-फानन में जारी किया गया.

जाहिर है इन सबको जनता भी कैलकुलेट कर रही थी. जहां विजन साफ न होने का खामियाजा कांग्रेस पार्टी रुझानों के दौर में उठाती दिखाई दे रही है.
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BJP और SAD कैम्प

वहीं दूसरी ओर सिद्धू संग टकराव को लेकर कांग्रेस छोड़ने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह का भी जादू नहीं चल पाया. पटियाला के राजसी परिवार के कैप्टन इस बार मात खा गए. इसके अलावा बीजेपी ने कैप्टन की पार्टी लोक कांग्रेस पार्टी और शिरोमणी अकाली दल(संयुक्त) के साथ गठबंधन किया था और मुख्यमंत्री के चेहरे को सामने नहीं लिया था. जाहिर है यहां भी जनता को क्लियर फेस नहीं दिखाई दिया. हालांकि बीजेपी खेमे को साल भर चले किसान आंदोलन की वजह से जोखिम का तो बड़ा खतरा था ही, जो रुझानों में भी दिखाई दे रहा है.

शाम ढलते पंजाब में स्थिति साफ हो जाएगी, कि रुझान क्या सच में आपके लिए हकीकत का हार पहनाते हैं या नहीं. लेकिन रुझान ये भी बतला रहे हैं कि पंजाब नए राजनीतिक समीकरण को गढ़ने और रूढ़ियों को तोड़ने के लिए अब पूरी तरह से तैयार है.

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