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स्वामी विवेकानंद पुण्यतिथि: "हर मंदिर के साथ आश्रम, स्कूल और अस्पताल हो"

केसरिया पहनने और सन्यास लेने के बावजूद Swami Vivekananda की सोच विज्ञान आधारित और व्यवहारिक थी

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स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) की जीवनी के कई अनछुए पहलु हैं.उनकी ज़िंदगी के उजले पक्ष से अधिकतर लोग वाकिफ़ हैं.हालांकि स्वामीजी के बेहद कष्ट और तकलीफ़ के दिनों के स्याह पक्ष से लोग कम ही परिचित हैं.आरम्भ के दिनों में भूखे रहकर उन्हें दिन गुजारना पड़ा.बेलूर मठ को कॉर्पोरेशन ने क्लब और शराब का अड्डा बताकर कॉमर्सियल टैक्स लगा दिया था.जब स्वामीजी विदेश से लौटकर भारत आए तो रूढ़िवादी हिंदुओं ने ही उनके सम्मान समारोह का बहिष्कार कर दिया था.

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वकील की फी चुकाने के लिए चोर बना दिए गए थे

स्वामी जी के परिवार में अधिकांश वकील थे.परिवार में आत्महत्या करने की प्रवृत्ति भी देखी गई .स्वामीजी जब डिप्रेस हो जाते थे तो उन्हें भी यह भय सताता था.स्वामीजी सन्यासी ज़रूर हो गए थे लेकिन अपनी मां का कष्ट उनसे देखा नहीं जाता था. उनसे उनका मोह था.जब उन्हें सूचना मिली कि चाचा ने कानूनी पेंच लगाकर मां को सम्पत्ति से बेदखल कर दिया है तो वे खुद अदालत जाने का सुझाव मां को दिया.

वकील को मोटी फी चाहिए थी.स्वामीजी का हाथ खाली था. उन्होंने दक्षिणेश्वर मंदिर से कुछ राशि लेकर वकील को पहुंचाया था.वकील के घर तक पैदल जाना पड़ा था.स्वामीजी बीमार थे. हाई सुगर और पांव में सूजन भी था. लौटकर हांफ रहे थे कि रानी रासमणि के भांजे ने उन्हें चोर बताकर मंदिर से निकाल दिया था.

वे बार-बार कह रहे थे कि यह राशि उपलब्ध होते ही लौटा देंगे, लेकिन उनकी नहीं सुनी गई थी. हालांकि विलंबित इंसाफ का शिकार वे भी हुए. अभी हाल में कुछ वर्षों पहले स्वामी जी की संपत्ति से अतिक्रमण हटा. इंक्रोचमेंट हटाने के लिए भी भुगतान करना पड़ा. अब यह सम्पत्ति राज्य सरकार को मिली है.

बीच में एकबार उचटकर वे कुछ साथियों के साथ बिहार के गया पहुंच गए थे. बौद्ध धर्म उन्हें अच्छा लगा था. रामकृष्ण परमहंस ने कहा था, देखना एक दिन वह फिर लौट आएगा. पानी, जल, नीर..कुछ भी बोलो..यह तो प्यास ही मिटाएगा.स्वामीजी फिर सनातन धर्म के प्रचार में लगे.

स्वामीजी नहीं चाहते थे कि उनके घर का कोई सदस्य अब वकील बने.हालांकि उनका भाई खेतड़ी नरेश से मदद लेकर बैरिस्टरी पढ़ने लंदन पहुंच गए थे. फिर जब वह भारत पहुंचा तो पता चला 39 साल की उम्र में स्वामीजी चिरनिद्रा में सो गए.

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हाजिर जवाब थे स्वामीजी

एक विदेशी महिला स्वामी विवेकानंद के करीब आकर बोली कि वो उनसे शादी करना चाहती है. इस तरह के आग्रह पर विवेकानंद बोले कि आखिर मुझसे ही क्यों? मैं तो एक सन्यासी हूं? औरत बोली कि मैं आपके जैसा ही गौरवशाली, सुशील और तेजोमयी पुत्र चाहती हूं और इसकी संभावना तभी है जब आप मुझसे विवाह करें.विवेकानंद बोले कि हमारी शादी तो संभव नहीं है लेकिन एक उपाय है.आज से मैं ही आपका पुत्र बन जाता हूं, आप मेरी मां बन जाओ आपको मेरे जैसा बेटा मिल जायेगा. औरत विवेकानंद के चरणों में गिर गयी और बोली की आप देवतुल्य हैं .

दर्जी तय नहीं करता हमारा चरित्र

स्वामी विवेकानंद विदेश गए तो उन्हें भगवा वस्त्र और पगड़ी देख कर लोगों ने पूछा - आपका बाकी सामान कहां है ? स्वामी जी बोले कि बस मेरे पास इतना ही सामान है, इस तरह के जवाब पर कुछ लोगों ने मजा लेते हुए कहा कि यह कैसी संस्कृति है ?आपने तन पर केवल एक भगवा चादर लपेट रखी है.कोट पतलून जैसा कुछ भी पहनावा नहीं है ?इस पर स्वामी विवेकानंद जी मुस्कुराए और बोले कि हमारी संस्कृति आपकी संस्कृति से भिन्न है.आपकी संस्कृति का निर्माण आपके दर्जी करते है जबकि हमारी संस्कृति का निर्माण हमारा चरित्र करता है.

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अंधविश्वास और रूढ़िवाद के विरोधी विवेकानंद

रामकृष्ण परमहंस को गले में कैंसर हो गया था.एक विदेशी डॉक्टर उन्हें देखने आए तो चिकित्सक के जाने के बाद वे उस जगह पर गंगा जल का छिड़काव कराएं.डॉक्टर ने कहा कि उन्हें मटन शूप पीना पड़ेगा.परमहंस ने कहा कि उस मयरा की दुकान से मांस लाना जिनके यहां कालीजी का फोटो हो.खूब गुस्साए थे विवेकानंद.कहे थे यह अंधविश्वास और गलत सोच के सिवाय कुछ नहीं है.

केसरिया पहनने और सन्यास लेने के बावजूद उनकी सोच विज्ञान आधारित और व्यवहारिक थी. वे कहते थे हर मंदिर के साथ एक स्कूल या अस्पताल अटैच होना ज़रूरी है.इसी सोच के तहत उन्होंने रामकृष्ण मिशन के रूप में अनगिनत स्कूल और आश्रम देश को दिए.वे युवाओं को कहते थे पूजा-अर्चना कम कर व्यायाम करें,किताबें पढ़ें. हर मुहल्ले में दस-दस अच्छे स्वास्थ्य वाले युवा साथ हो जाएंगे तो न सिर्फ एक मजबूत समाज बन जाएगा बल्कि भारत विश्व गुरू भी बन जाएगा.

अंतिम समय में वे काफी विचलित हो गए थे.सुगर बढ़ गया था.किडनी जवाब दे रही थी.मल्टी ऑर्गन फेल्योर के लक्षण दिख रहे थे.फिर भी पसन्द की मछली खाई. कहने लगे न जाने कब सांस धोखा दे दे.सांसें टूट भी गईं.39 साल की उम्र में स्वामीजी महाप्रस्थान कर गए.

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